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Tuesday, June 26, 2012

दिग्विजय और शिवानंद की राह न चलें बलवीर!


पता नहीं आज के नेताओं को क्या हो गया है! मतिभ्रम के शिकार ये नेता 'छपास' की भूख से आगे बढ़ 'बकवास' के रोग से ग्रसित दिखने लगे हैं। जद यू अध्यक्ष शरद यादव ने अपने दल के प्रवक्ताओं को बकवास करने से तो रोका, किंतु स्वयं दो कदम आगे बढ़ बकवास करने लगे। अपने दल के लिए कायदे-कानून या फिर नीति बनाने के लिए अध्यक्ष के रूप में उन्हें अधिकार प्राप्त हो सकता है। किंतु किसी दूसरे दल के लिए ऐसे फैसले लेने का अधिकार उन्हें किसने दिया। भाजपा अगला लोकसभा चुनाव किसके नेतृत्व में लड़ेगी और प्रधानमंत्री पद के लिए किसे नामित करेगी, इसका फैसला तो पार्टी नेतृत्व ही कर सकता है। राजग अध्यक्ष होने के बावजूद शरद यादव को ये अधिकार नहीं मिल जाता कि वे भाजपा के आंतरिक मामलों में दखल दें। कुछ दिनों पूर्व जदयू के कद्दावर नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके सहयोगी प्रवक्ता शिवानंद तिवारी ने भी ऐसी गलती की थी। स्वयं शरद यादव को यह नागवार लगा थाौर  उन्होंने अनावश्यक टिप्पणी करने से पार्टी नेताओं को परहेज बरतने का निर्देश दिया था। तब वे सही भी थे। किंतु, अब जब भाजपा के एक प्रवक्ता बलवीर पुंज ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा में कुछ बातें कहीं तब, शरद यादव को मिर्ची कैसे लग गई। हांलाकि 2014 अभी दूर है। भाजपा के अंदर प्रधानमंत्री पद की उम्मीद्वारी को लेकर उठा बवंडर निश्वय ही अनावश्यक है। नरेंद्र मोदी को लक्ष्य बनाकर समर्थन  और विरोध में आ रहे बयान किसी भी कोण से राजनीतिक परिपक्वता को रेखांकित नहीं करते। लोकतंत्र की मूल भावना को भी ऐसे विचार चुनौती देते हैं। चुनावी राजनीति में जब रातों-रात मतदाता अपने विचार बदल लेता है, तब दो साल बाद के संभावित परिणाम पर कोई आज प्रधानमंत्री की नियुक्ति करने लगे, क्या हास्यास्पद नहीं? वैसे, राजनीतिक समीक्षक बलवीर पुंज की बातों पर भी संदेह प्रकट कर रहे हैं। पुंज ने जिस प्रकार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा द्वारा आगामी चुनाव लड़े जाने की बात कही और मोदी को पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीद्वार घोषित कर डाला, निश्चय ही ये पार्टी नेतृत्व द्वारा लिए गए निर्णय नहीं हैं। पेशे से पत्रकार बलवीर पुंज को भी संयम से काम लेना चाहिए। अपनी टिप्पणी के पूर्व उन्होंने पाटी नेतृत्व से अनुमति ली होगी या नेतृत्व को विश्वास में लिया होगा, ऐसा नहीं लगता। पार्टी नेतृत्व पहले ही घोषणा कर चुका है कि उचित समय पर इस संबंध में दल के नेता मिल-जुलकर फैसला लेंगे। इस पाश्र्व में बलवीर पुंज को दिग्विजय सिंह और शिवानंद तिवारी के मार्ग पर चलते देख आश्चर्य तो होगा ही!

1 comment:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सही कहा आपने, विनोद जी !