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Saturday, August 20, 2016

... तो अब हो ही जाए अंतिम फैसला !



साफ नीयत, सुनिश्चित लक्ष्य, पवित्र उद्देश्य !
इन्हें कोई चुनौती नहीं। लेकिन सही सोच और ईमानदार क्रियान्वयन के बीच की रेखा भी निर्धारित करना आवश्यक।  दोनों के बीच के अंतर को भी पाटना जरूरी।
हां ! मैं चर्चा कर रहा हूं कश्मीर की ताजातरीन असहज घटनाओं की। बुरहान वानी की मौत के बाद से घाटी में जारी हिंसा, पाकिस्तानी स्वतंत्रता दिवस पर घाटी में पाकी झंडों के लहराए जाने की, अलगाववादी आतंकी तत्वों को पाक की मदद की, पाकिस्तान के कब्जेवाले कश्मीर पर भारतीय दावे की और भारत -पाक के बीच शांति वार्ता के मार्ग में अब खड़े किए जा रहे बड़े-बड़े अवरोधकों की। पाकिस्तान के बलूचिस्तान में पाकी सेना की दमनात्मक कार्रवाईयों की और भारत के अंदर राजनीतिक आधारों पर पैदा किए जा रहे मतभेदों की।
जिस दिन प्रधानमंत्री कार्यालय में पदस्थ केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने घोषणा की थी कि, अगले वर्ष स्वतंत्रता दिवस के दिन हम पाक के कब्जे वाले कश्मीर में भारतीय तिरंगा लहराएंगे, उसी दिन भारतीय नीति के लक्ष्य और उद्देश्य चिन्हित हो गए थे। और फिर स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त के दिन लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब पाकिस्तान के बलूचस्तिान का मुद्दा उठाया तब, भारतीय नीति सार्वजनिक हो गई। और अब जबकि भारत ने अधिकृत तौर पर पाकिस्तान को बता दिया है कि दोनों देशों के बीच अगर कोई चर्चा होती है तो इस बात पर होगी कि पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर को कब खाली कर रहा है? भारत ने पाकिस्तान को दो टूक शब्दों में जता दिया है कि वह अविलंब जम्मू-कश्मीर में हिंसा और आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद करे, सीमा पार से आतंकवादियों के आने को रोके, मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करे और अपनी जमीन पर आतंकवादियों को प्रशिक्षण दिए जाने पर रोक लगाए। भारत का यह ताजा रुख केवल जम्मू-कश्मीर के कथित विवाद में बल्कि, पाकिस्तान के प्रति भी भारतीय नीति में आमूलचूल परिवर्तन का संकेत है। स्वाभाविक रूप से इस 'परिवर्तनको लेकर बहसें शुरू हो गई हैं। एक ओर जहां आम जनता ने सरकार के इस ताजा कड़े रुख का समर्थन किया है वहीं कतिपय विदेश मामलों के जानकार विशेषकर कश्मीर और पाकिस्तान के मुद्दों पर विशेषज्ञता रखनेवाले समीक्षक आशंकित हैं कि कहीं सरकार का यह दांव उल्टा पड़ जाए। विभिन्न राजनीतिक दलों से भी मिश्रित प्रतिक्रियाएं रही हैं। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने तो मोदी सरकार पर धावा बोलते हुए आरोप जड़ दिया कि कश्मीर में जो दस सालों में उसने शांति स्थापित की थी उसे मोदी सरकार ने दो साल में तबाह कर दिया। कांग्रेस का कहना है कि वर्तमान मोदी सरकार देश को तबाही की ओर ले जा रही है। सरकार की नीति में कथित परिवर्तन को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी चिंता व्यक्त की जा रही है। दक्षिण एशिया से जुड़े मामलों के शीर्ष अमेरिकी विशेषज्ञों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बलूचिस्तान, गिलिगित और पाक अधिकृत कश्मीर पर की गई टिप्पणी को भारतीय नीति में बदलाव का संकेत बताते हुए भारत सरकार से स्पष्टीकरण की मांग कर दी है। इससे साफ संकेत मिलता है कि  भारत सरकार की नई नीति ने विश्व का ध्यान अपनी ओर खींचा है। जिन मुद्दों की चर्चा भारत की ओर से की जा रही है उनका समाधान सरल नहीं है। इनकी जटिलता के तार  भारत- पाकिस्तान की सीमा से बाहर निकल संयुक्त राष्ट्र की चारदीवारी तक पहुंचेंगे।
बावजूद इसके प्रत्येक भारतीय  चाहता है कि कश्मीर और इसके बहाने पाकिस्तानी आतंकवादी जो खूनी खेल रहे हैं उसके किलाफ तत्काल कार्रवाई की जाए। अनगिनत शांति वार्ताओं, समझौतों को ठेंगा दिखा पाकिस्तान निरंतर कश्मीर में हिंसक घटनाओं को अंजाम देने से बाज नहीं रहा। अपने यहां प्रशिक्षित आतकंवादियों को कश्मीर और भारत के अन्य क्षेत्रों में भेज खूनी खेल खेल रहा है। भीड़-भाड़ वाले मुंबई से लेकर भारतीय संसद भवन तक पर हमले से वह बाज नहीं आया है। हर थोड़े अंतराल पर हमारे निर्दोष नागरिक और जवान शहीद हो रहे हैं। लगभग 7 दशक से चले रहे पाकिस्तान के इस 'पापको भारत आखिर कब तक बर्दाश्त करता रहेगा।  जनभावना अब पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई के पक्ष में है। मोदी सरकार के ताजा कड़े रुख में भारतीय जनमानस की इच्छा समाहित दिखती है। लेकिन अमेरिका की जिज्ञासा को देखते हुए एक सवाल यह अवश्य खड़ा होता है कि ऐसी किसी 'निर्णायक कार्रवाईको अंजाम देने के पूर्व सार्वजनिक अभिव्यक्ति कहां तक उचित है। विशेषज्ञ-समीक्षकों का एक वर्ग पूर्ण गोपनीयता का पक्षधर है। ध्यान रहे अमेरिका ने स्पष्टीकरण तब मांगा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से सरकार की इच्छा को सार्वजनिक किया। सवाल वाजिब है कि क्या रणनीति के स्तर पर प्रधानमंत्री से चूक नहीं हुई? लेकिन, अब इस पर बहस नहीं।
इस प्रसंग में मैं चंद्रशेखर के प्रधानमंत्रित्व काल की चर्चा करना चाहूंगा। मुट्ठी भर सांसदों के साथ कांग्रेस के बाहरी समर्थन से प्रधानमंत्री बने चंद्रशेखर ने एक गुप्त  योजना बनाई थी। उक्त गोपनीय योजना के तहत पाक अधिकृत कश्मीर और पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में जारी आतंकवादी प्रशिक्षण केंद्रों पर एक साथ सैन्य कार्रवाई की तैयारी की गई थी। योजना थी कि सैन्य कार्रवाई कर केवल आतंकवादी प्रशिक्षण केंद्रों को तहस-नहस कर दिया जाए बल्कि, पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को भी मुक्त करा लिया जाए।  मेरे साथ हुई एक निजी बातचीत के दौरान उस काल में योजना आयोग के उपाध्यक्ष रह चुके चंद्रशेखर के अति विश्वस्त मोहन धारिया ने  बताया था कि उक्त गुप्त योजना की जानकारी किसी तरह राजीव गांधी को हो गई। मोहन धारिया के अनुसार, राजीव गांधी ने तब सोचा कि अगर चंद्रशेखर की योजना सफल हो गई तब तो वे 'हीरोबन जाएंगे और फिर देश पर उनकी पकड़ मजबूत हो जाएगी। राजीव ने योजना बनाई और पूरे देश को मालूम है कि कैसे 10 जनपथ की जासूसी संबंधी हास्यास्पद आरोप पर कांग्रेस ने चंद्रशेखर सरकार से समर्थन वापस ले सरकार गिरा दी थी। 
वर्तमान स्थिति भिन्न है। मोदी की भाजपा सरकार को संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त है। कुछ विफलताओं के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज भी देश  में सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। उनकी बातों को सुना जाता है और देश उन्हें समय देने को तैयार है। चुनावी वादों की पूर्ति किए जाने संबंधी आरोपों पर भी देश का बहुमत अभी भी उन्हें संदेह का लाभ देते हुए और समय देने में हिचकिचाएगा नहीं। अपनी इस मजबूत राजनीतिक और शासकीय स्थिति के बीच अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक कदम उठाते हैं तो  सफलता की हालत में वे निश्चय ही 'राष्ट्रीय हीरोबन जाएंगे, जिससे चंद्रशेखर को राजीव गांधी ने वंचित कर दिया था। निर्णायक कार्रवाई अर्थात सैन्य कार्रवाई। और साफ शब्दों में युद्ध! किसी के लिए भी यह अंतिम निवारण होता है। सारे दरवाजे बंद हो जाने के बाद ही ऐसे कदम उठाए जाते हैं। और चूंकि अब पाकिस्तान की नापाक हरकतों ने लगभग सारे दरवाजे बंद कर दिए हैं भारत को ऐसे किसी 'दु:साहससे हिचकिचाना नहीं चाहिए।  अंतिम निर्णायक फैसले के लिए यह जरूरी है। जोखिम तो उठाना ही होगाऔर तब, सोच और क्रियान्वयन के बीच अंतर स्वत: समाप्त हो जाएगा।

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