नि:संदेह देवेंद्र फड़णवीस 'अखंड महाराष्ट्र' के मुख्यमंत्री हैं। भला, इस दावे को चुनौती कौन दे सकता है? लेकिन, सवाल यह भी कि देवेंद्र फड़णवीस को इस सच को सार्वजनिक रूप से दोहराने की जरूरत क्यों पड़ी? साफ है कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के इस कथन में न केवल सत्ता पक्ष बल्कि, विरोधी दलों के लिए भी एक कड़ा संदेश निहित है। हां ! यही सच है।
प्रसंग या संदर्भ पृथक विदर्भ राज्य की मांग से जुड़ा है। बिलकुल बेमौसम की बरसात की तरह अचानक पिछले दिनों इस मुद्दे को उछाला गया। आश्चर्यजनक रूप से विदर्भ निर्माण की विरोधी शिवसेना और समय-समय पर 'मौसमी समर्थक' के रूप में उभरनेवाली कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस ने विशुद्ध राजनीतिक लाभ के लिए इस मुद्दे को हवा दी है। मुख्यमंत्री के पुराने बयानों का हवाला दे इस मुद्दे पर उन्हें घेरने की कोशिश करनेवाले स्वयं बिछाए अपने ही जाल में उलझ गए हैं। न तो पहले, न ही अभी मुख्यमंत्री फड़णवीस ने विदर्भ राज्य के निर्माण का विरोध किया है। उन्होंने तो दो टूक शब्दों में दोहरा दिया कि भारतीय जनता पार्टी छोटे-छोटे राज्यों के गठन के पक्ष में रही है। यह दोहराना ही होगा कि वह भाजपा का शासनकाल ही था जब बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों का विभाजन कर क्रमश: झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ राज्यों का निर्माण किया गया। क्या यह भी दोहरा दिया जाए कि इनके निर्माण के आंदोलन वस्तुत: दशकों पुराने थे, मूर्त स्वरूप दिया भाजपा ने।
पृथक विदर्भ के मुद्दे पर भी भाजपा का रुख शुरू से साफ रहा है। देवेंद्र फड़णवीस अतीत में स्वयं भी इसके पक्ष में आंदोलन कर चुके हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जैसे कद्दावर नेता लिखित में विदर्भ राज्य निर्माण के पक्ष में अपना मत व्यक्त कर चुके हैं। और तो और पिछले दिनों लोकसभा में पृथक विदर्भ राज्य निर्माण हेतु एक गैर सरकारी विधेयक किसी और ने नहीं एक भाजपा सांसद ने प्रस्तुत किया। भाजपा की परेशानी यह रही है कि उसकी सहयोगी शिवसेना आरंभ से ही इसका विरोध करती रही है। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में पृथक विदर्भ को समर्थन दिए जाने की घोषणा के कारण ही भारतीय जनता पार्टी को विदर्भ की 62 में से 44 सीटें मिलीं थीं। इसी का हवाला देकर विदर्भ के लिए आंदोलनरत संगठन वर्तमान देवेंद्र फड़णवीस सरकार से आश्वासनपूर्ति की मांग कर रहे हैं। शिवसेना के विरोध के कारण 1995 की तरह इस बार भी भाजपा तत्काल निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है। विधानसभा में संख्या खेल भाजपा को इसकी अनुमति नहीं देता। और कोई भी दल सत्ता की कीमत पर ऐसा जोखिम उठाने को तैयार नहीं होगा। इसी राजनीतिक पेंच को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस और राकांपा के कुछ नेताओं ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत 'संयुक्त महाराष्ट्र' का पत्ता खेल इस मुद्दे को उछाला है और मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को घेरने की कोशिश की है। अर्थात ताजा नया गुबार विशुद्ध रूप से स्वार्थ आधारित बदनीयत राजनीति से प्रेरित है, विदर्भ या विदर्भवासियों की इच्छाओं, भावनाओं की पूर्ति के प्रति नहीं। यह राजनीति का वह गंदा खेल है, जो सही व उचित मांग को भी हाशिए पर डाल देती है। पृथक विदर्भ आंदोलन आरंभ से ही ऐसी ही गंदी, कुत्सित राजनीति के खेल का शिकार होता रहा है। पृथक विदर्भ निर्माण के ईमानदार पक्षधर दुखी हैं कि एक बार फिर उनकी सही मांग राजनीति की शिकार हो रही है।
प्रसंग या संदर्भ पृथक विदर्भ राज्य की मांग से जुड़ा है। बिलकुल बेमौसम की बरसात की तरह अचानक पिछले दिनों इस मुद्दे को उछाला गया। आश्चर्यजनक रूप से विदर्भ निर्माण की विरोधी शिवसेना और समय-समय पर 'मौसमी समर्थक' के रूप में उभरनेवाली कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस ने विशुद्ध राजनीतिक लाभ के लिए इस मुद्दे को हवा दी है। मुख्यमंत्री के पुराने बयानों का हवाला दे इस मुद्दे पर उन्हें घेरने की कोशिश करनेवाले स्वयं बिछाए अपने ही जाल में उलझ गए हैं। न तो पहले, न ही अभी मुख्यमंत्री फड़णवीस ने विदर्भ राज्य के निर्माण का विरोध किया है। उन्होंने तो दो टूक शब्दों में दोहरा दिया कि भारतीय जनता पार्टी छोटे-छोटे राज्यों के गठन के पक्ष में रही है। यह दोहराना ही होगा कि वह भाजपा का शासनकाल ही था जब बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों का विभाजन कर क्रमश: झारखंड, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ राज्यों का निर्माण किया गया। क्या यह भी दोहरा दिया जाए कि इनके निर्माण के आंदोलन वस्तुत: दशकों पुराने थे, मूर्त स्वरूप दिया भाजपा ने।
पृथक विदर्भ के मुद्दे पर भी भाजपा का रुख शुरू से साफ रहा है। देवेंद्र फड़णवीस अतीत में स्वयं भी इसके पक्ष में आंदोलन कर चुके हैं। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी जैसे कद्दावर नेता लिखित में विदर्भ राज्य निर्माण के पक्ष में अपना मत व्यक्त कर चुके हैं। और तो और पिछले दिनों लोकसभा में पृथक विदर्भ राज्य निर्माण हेतु एक गैर सरकारी विधेयक किसी और ने नहीं एक भाजपा सांसद ने प्रस्तुत किया। भाजपा की परेशानी यह रही है कि उसकी सहयोगी शिवसेना आरंभ से ही इसका विरोध करती रही है। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में पृथक विदर्भ को समर्थन दिए जाने की घोषणा के कारण ही भारतीय जनता पार्टी को विदर्भ की 62 में से 44 सीटें मिलीं थीं। इसी का हवाला देकर विदर्भ के लिए आंदोलनरत संगठन वर्तमान देवेंद्र फड़णवीस सरकार से आश्वासनपूर्ति की मांग कर रहे हैं। शिवसेना के विरोध के कारण 1995 की तरह इस बार भी भाजपा तत्काल निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है। विधानसभा में संख्या खेल भाजपा को इसकी अनुमति नहीं देता। और कोई भी दल सत्ता की कीमत पर ऐसा जोखिम उठाने को तैयार नहीं होगा। इसी राजनीतिक पेंच को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस और राकांपा के कुछ नेताओं ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत 'संयुक्त महाराष्ट्र' का पत्ता खेल इस मुद्दे को उछाला है और मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस को घेरने की कोशिश की है। अर्थात ताजा नया गुबार विशुद्ध रूप से स्वार्थ आधारित बदनीयत राजनीति से प्रेरित है, विदर्भ या विदर्भवासियों की इच्छाओं, भावनाओं की पूर्ति के प्रति नहीं। यह राजनीति का वह गंदा खेल है, जो सही व उचित मांग को भी हाशिए पर डाल देती है। पृथक विदर्भ आंदोलन आरंभ से ही ऐसी ही गंदी, कुत्सित राजनीति के खेल का शिकार होता रहा है। पृथक विदर्भ निर्माण के ईमानदार पक्षधर दुखी हैं कि एक बार फिर उनकी सही मांग राजनीति की शिकार हो रही है।
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