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Friday, August 12, 2016

प्रिय प्रधानमंत्री!



70 वें स्वतंत्रता दिवस पर सभी देशवासियों के साथ-साथ आपको भी बधाई। अभिनंदन, शुभकामनाएं।
इस वार्षिक औपचारिकता के पश्चात अब हम सीधे उन मुद्दों की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहेंगे जिन्हें स्वतंत्रता दिवस पर पुनर्संकल्पित किया जाना चाहिए -  देश के ताजा हालात के पाश्र्व में।
प्रधानमंत्रीजी! पद की शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री के रूप में 15 अगस्त 2014 को लालकिले की प्राचीर से देश के नाम अपने पहले संबोधन में आपने स्वयं को प्रधान सेवक बताते हुए कहा था कि, 'कभी - कभी पुराने घर की मरम्मत पर खर्चा ज्यादा आता है और संतुष्टि नहीं होती, फिर लगता है कि नया ही घर बना दिया जाए। ‘ हालांकि आपने यह बात योजना आयोग के संदर्भ में कही थी लेकिन, इसमें निहित संदेश की व्यापकता तब चिन्हित की गई थी। चर्चा हुई थी नये भारत के निर्माण पर। आपकी अन्य घोषणाएं भी बिलकुल भारत के नवनिर्माण के पक्ष में सामग्री उपलब्ध करानेवाली थी। आपके प्रधानमंत्री बनने के बाद पूरे देश में विश्वास, स्वावलंबन और स्वाभिमान से युक्त एक नई सीढ़ी का निर्माण हुआ था। आशाओं, अपेक्षाओं के जिस झूले पर सवार हो आप इंद्रधनुष की भांति विश्व नीलाभ में अवतरित हुए थे, आज भी राजनीतिक पंडितों के लिए अकल्पनीय है। बावजूद इसके नरेंद्र दामोदारदास मोदी के रूप में देश के सामने एक 'महानायक’ का उदय हुआ था। पूरे देश में एक नई आशा का संचार हुआ था, नई ऊर्जा जागृत हुई थी।  पूरा देश एक करिश्माई बदलाव - परिवर्तन की आस के साथ प्रफुल्लित था। और यह आस आपने और आपके नेतृत्व में आपकी पार्टी ने ही पैदा की थी।  याद कीजिए 2014 के आम चुनाव प्रचार अभियान के दौरान ऐसी आस जगाई गई थी कि मोदी सरकार आई नहीं कि सब-कुछ बदल जाएगा, सब-कुछ बेहतर हो जाएगा। प्रधानमंत्रीजी! उम्मीद और सपनों की ऐसी ही लहरों पर सवार होकर आप और आपकी पार्टी सत्ता की चौखट पर पहुंची। चूंकि, अब आपके शासन के 2 साल से अधिक हो चुके हैं, जनता अगर बदलाव-परिवर्तन की खोज कर रही है तो बिलकुल सही ही।  गुमशुदा अथवा अपेक्षित बदलाव की गैर-मौजूदगी किसी को कुबूल नहीं। बदलाव में विलम्ब स्वीकार्य नहीं। प्रधानमंत्रीजी! इस सच को स्वीकार कीजिए कि आज लगभग सवा दो वर्ष पश्चात आम लोग मायूस हैं, चिंतित हैं। अपेक्षाओं की पूर्ति की कसौटी पर सवालों के ढेर के बीच से एक चीत्कार उठ रही है 'आखिर कब आएंगे अच्छे दिन।’
प्रधानमंत्रीजी! स्वतंत्रता दिवस पर पूरा देश नया संकल्प लेता है, आप भी लेते रहे हैं। आपके पूर्व अन्य प्रधानमंत्री भी लेते रहे हैं । लेकिन, उनमें और आप में फर्क है। एक ऐसा फर्क जिसे स्वयं आपने देश के सामने मोटी रेखाओं से चिन्हित किया था। बदलाव की इंद्रधनुषी आस आपने ही तो जगाई थी। फिर ऐसी मायूसी और निराशा क्यों? जवाब आपको ही देना होगा।
प्रधानमंत्रीजी! 60 वर्ष बनाम 2 वर्ष का तर्क दे बचा नहीं जा सकता क्योंकि, अब तक के परिणाम कोई बहुत उत्साहवर्धक नहीं हैं। अगर देश आपको संदेह का लाभ दे भी दे, आपके सलाहकारों की 'नीयत’ के प्रति संशय चुगली कर रहे हैं। आपने संसद में अपने पहले भाषण में 'दाग मुक्त सांसद और दाग मुक्त संसद’ की बात कही थी। इसके लिए आपने एक वर्ष की समय सीमा भी निर्धारित की थी। लेकिन, परिणाम? सबके सामने हैं पूर्ववत दागदार सांसद, दागदार संसद और क्षमा करेंगे दागदार मंत्रिपरिषद!
प्रधानमंत्रीजी! लालकिले की प्राचीर से अपने पहले संबोधन में आपने सांप्रदायिकता और हिंसा पर पीड़ा व्यक्त करते हुए इसे खत्म करने की अपील की थी और कहा था कि 'खून से धरती लाल ही होगी, और कुछ नहीं मिलेगा।  10 साल में हम विकसित समाज की ओर जाना चाहते हैं।’ क्या ऐसा हुआ? क्या ऐसा हो रहा के कोई संकेत सामने हैं? फिलहाल ऐसा कुछ दृष्टिगोचर नहीं है।
खून से धरती लाल हो रही है। सांप्रदायिकता और हिंसा ने लगभग पूरे देश को अपने आगोश में ले रखा है। इस आकलन को कोई चुनौती नहीं कि पिछले दो - सवा दो वर्ष में पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव में खतरनाक वृद्धि हुई है। हम यहां कारण और दोषियों को रेखांकित नहीं कर रहे, सत्ताशीर्ष पर होने के कारण आपको इनकी जानकारी होगी ही। हालांकि हाल के दिनों में आपने ऐसी घटनाओं की निंदा करते हुए, आक्रोश व्यक्त करते हुए कड़े कदम उठाए जाने के पक्ष में बातें कही हैं। देश प्रतीक्षारत है सकारात्मक परिणाम के लिए। प्रधानमंत्रीजी! कारण और दोषी दोनों सामने हैं। प्रधानसेवक की भूमिका में अवतरति हो निष्पक्षतापूर्वक, निडरतापूर्वक बल्कि, क्रूरतापूर्वक इनका दमन कर दें। देश आपसे यही चाहता है। आप ऐसा कर सकते हैं, बशर्ते दलीय, जातीय, धार्मिक वर्जनाओं से इतर 'महानायक’ बन इनके खिलाफ कठोर कदम उठाएं। फिर दोहरा दें, यह संभव है। आप सिर्फ अपनी दृढ़- इच्छाशक्ति का इस्तेमाल करें। एक सच्चे 'महानायक’ से देश ऐसी अपेक्षा करता है। क्या आप देश को निराश करना चाहेंगे? एक विकसित समाज के पक्ष में भी देश को आपसे ऐसी अपेक्षा है। हमें पूरा विश्वास है आप निराश नहीं करेंगे।
प्रधानमंत्रीजी! एक और असहज बल्कि, कड़वा प्रश्न।   क्या अब तक के अपने शासनकाल में आप 'राजधर्म’ का अक्षरश: पालन कर पाए हैं? विचारधारा के आधार पर आपको मिल रही चुनौतियों से देश विचलित है। इस विचारधारा के पोषक संविधान की आत्मा को चुनौती दे रहे हैं। वर्तमान संविधान की मौजूदगी में उनके क्रियाकलाप घोर असंवैधानिक हैं। वे संवैधानिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करने पर उतारू हैं। आपने संविधान की शपथ ली है, संविधान की रक्षा का दायित्व आप पर है। सांप्रदायिकता व जातीयता का खतरनाक जहर सत्ता की चादर की आड़ में फैलाया जा रहा है। ये तत्व दावा करते हैं कि उन्हें सत्ता का संरक्षण प्राप्त है, उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। क्या आप इनसे निपट पाएंगे? यह आल्हादकारी है कि गोरक्षा के नाम पर फैलाई जा रही गुंडागर्दी पर संज्ञान लेते हुए आपने उन असामाजिक तत्वों को कड़ा संदेश दिया है। देश ने इसका स्वागत किया है। उन्हें आशा बंधी है कि अब आप मजबूरी के बंधनों से स्वयं को मुक्त कर कदम उठाएंगे, देश से किए गए वादों को पूरा करेंगे। देश को विश्वास है कि 'सबका साथ, सबका विकास’ की अवधारणा को मूर्त रूप देते हुए , देर से ही सही, बदलाव-परिवर्तन के द्वार को खोल देंगे। प्रधानमंत्रीजी! सहनशील भारत देश अपने नायकों को विश्वापूर्वक 'समय’ और 'अवसर’ देता आया है। आपको भी समय मिला है, अवसर मिला है। गोरक्षक संदर्भ में आपके बयान से, रुख से यह सुखद संदेश पूरे देश में गया है कि नरेंद्र दामोदारदास मोदी नामक प्रधानमंत्री अब दबावमुक्त हो परिवर्तन की दिशा में कदमताल करेंगे।
स्वतंत्रता की 70 वीं वर्षगांठ पर महान भारत देश की अपेक्षाओं को, जिन्हें नि:संदेह आपने पैदा की हैं, पूरा करने का आप पुनर्संकल्प लेंगे, ऐसी आशा हम करें?
पुन: स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाओं के साथ

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