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Sunday, November 8, 2009

सावधान ! फतवा जारी करने वालों

लगता है मुस्लिम कट्टरपंथी महान इस्लाम धर्म की पवित्रता और अल्लाह के नाम पर दाग लगाने पर आमदा हैं। ध्यान रहे वंदे मातरम् के बाद योग गुरु बाबा रामदेव के खिलाफ फतवा जारी कर इन कट्टरपंथियों ने देश के साथ-साथ इस्लाम धर्म की भी खिलाफत की है। मातृभूमि की वंदना करने वाली राष्ट्रगीत का विरोध कोई देशद्रोही ही कर सकता है। इस विरोध के साथ इस्लाम का नाम जोड़कर ये तत्व पवित्र और महान इस धर्म को अपमानित कर रहे हैं। क्या इन कट्टरपंथियों को इस बात का एहसास है? अगर नहीं और अनजाने में वे ऐसा कर रहे हैं तब समय रहते चेत जाएं। धर्मनिरपेक्ष भारत की जमीन पर हर धर्म फल-फूल रहा है। बगैर किसी भेद-भाव के भारतीय संस्कृति सभी को आत्मसात् करती आई है। धर्म के नाम पर जब कभी दुर्भावना से वशीभूत तत्वों ने सांप्रदायिक उन्माद पैदा कर समाज को बांटने के प्रयास किए हैं, तब दोनों समुदाय के लोगों ने मिल-बैठकर उनका निषेध किया है। देश के किसी भी सुदूर गांव में चले जाएं वहां हिंदू-मुस्लिम परिवारों के बीच कोई भेद-भाव नहीं मिलेगा। सांप्रदायिक सौहाद्र्र की सुखद अनुभूति कोई भी महसूस कर सकता है। ये तो दोनों संप्रदायों के कट्टरपंथी तत्व हैं जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए धर्म के नाम पर समाज को विभाजित करने का कुत्सित प्रयास करते रहते हैं। अगर समाज में स्थायी सांप्रदायिक सौहाद्र्र को स्थापित करना है तब दोनों समुदाय के समझदार लोग मिलकर ऐसे समाज विरोधी तत्वों को सबक सीखा दें। समाजिक बहिष्कार कर दें इनका। ऐसे ही तत्व अब फतवा दे रहे हैं कि वे रामदेव बाबा के कैंप में न जाएं क्योंकि वहां कार्यक्रम की शुरुआत वंदे मातरम् से होती है। यह आपत्तिजनक ही नहीं हास्यास्पद भी है। राष्ट्रगीत राष्ट्र की सरजमीं पर नहीं तो कहां गायी जाएगी? बाबा रामदेव के योग कार्यक्रम की शुरुआत अगर वंदे मातरम् से होती है तो यह सराहनीय ही नहीं अनुकरणीय भी है। इस दिशा में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रशंसा करनी होगी। उसकी इस पहल का स्वागत कि वंदे मातरम् का उर्दू अनुवाद कराकर मुस्लिम समुदाय के बीच वितरित किया जाएगा ताकि वे गीत के मर्म को अपनी भाषा में समझ सकें। संघ के पूर्व सरसंघचालक के. सी. सुदर्शन ने यह बताकर कि अल्लाह ने जो 1,24,000 पैगंबर भेजे थे संभवत: राम और कृष्ण भी उन्हीं में से थे, एक ऐसा संदेश दिया है जो धर्म के आधार पर हिंदू-मुसलमान के बीच विभाजक रेखा खींचने वाले तत्वों को मिटा कर रख देगा। सचमुच अगर मुसलमान राम और कृष्ण को अल्लाह के भेजे हुए दूत मान लें तो सारे मतभेद स्वत: समाप्त हो जाएंगे। क्योंकि तब यह स्थापित हो जाएगा कि हिंदू और मुसलमान अलग नहीं बल्कि एक ही खुदा के बंदे हैं। फिर विलंब क्यों? कट्टरपंथियों को उनकी औकात बता दें। बता दें उन्हें कि धर्म के नाम पर हिंदुस्तान का बंटवारा कराने वालों की अब नहीं चलेगी। तब कुछ राजनेताओं ने सत्ता-वासना की अपनी इच्छा पूर्ति के लिए धर्म का सहारा लिया था। उस युग का अंत हो चुका। अब का नव समाज धर्म और संप्रदाय के नाम पर विभाजित होने को कतई तैयार नहीं। फतवा देने वाले राष्ट्रविरोधी ऐसी हरकतें तत्काल बंद कर दें।

6 comments:

अवधिया चाचा said...

बहुत अच्‍छा लिखा आपने, अब नव समाज धर्म और संप्रदाय के नाम पर विभाजित होने को कतई तैयार नहीं। उर्दू वालों को इसका अनुवाद इसकी हकीकत से जरूर अवगत होना चाहिये, इसी का एक प्रयास हमने किया हैं देखें
‘वन्दे मातरम्’ का अनुवाद, हकीक़त, & नफ़रत की आग बुझाइएः -डा. अनवर जमाल
hamarianjuman.blogspot.com/2009/11/vande-matram-islamic-answer.html

अवधिया चाचा
जो कभी अवध ना गया

prashant said...

सबसे ज्यादा अखरा चिदंबरम का वहाँ होना ,कान्ग्रेसी खुद को धर्म निर्पेक्ष कहते हैं सरम आनी चाहिये

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

इसकी हकीकत का एक स्टिंग आपरेशन साल भर पहले किसी चैनल पर देखा था।

अजय कुमार झा said...

ये फ़तवे अब फ़टे हुए चीथडे हैं ...हां राजनीति खूब होती है इनपे ..

Anil Pusadkar said...

क्या रखा है इन फ़तवो में?क्या मुसलमान बैंक मे रकम नही रखते?क्या ब्याज़ को वापस लौटा देते हैं?एक सम्प्रदाय द्वारा बैंक मे रकम रखने के खिलाफ़ फ़तवा भी जारी हुआ था।क्या हुआ उस फ़तवे का?फ़तवा हिंदुओ को भड़का कर राजनैतिक लाभ लेने का हथियार भर बस है और कुछ नही।

Saleem Khan said...

अगर आप वन्दे मातरम की वक़ालत करते हैं और साथ ही पूर्व जन्म में भी अकीदा रखते है तो यह पूर्ण रूप से परस्पर विरोधी विचारधारा होगी और यह संभव नहीं कि दोनों एक साथ लागू हो सकेंगे. कैसे ? आईये मैं बताता हूँ कि कैसे राष्ट्रवाद एक बुनियाद-रहित विचारधारा है, यदि आप पूर्वजन्म में विश्वाश रखते है तो यह संभव है कि आपका जन्म दोबारा मनुष्य के रूप में हो सकता है और हो सकता है कि आप भारत के अलावा दुसरे मुल्क में पैदा हो सकते हैं. मिसाल के तौर पे आप अगर आपके पिता जी या दादा जी दोबारा जन्म लेते हैं और अबकी बार वह अफगानिस्तान या पकिस्तान या चाइना आदि में कहीं जन्म लेते हैं तो क्या वह भारत के खिलाफ़ लडेंगे तो नहीं? क्या वह भारत से नफ़रत तो नहीं करेंगे?? ऐसा तो नहीं कि वे इस जन्म में तालिबान से मिलकर अपने प्यारे हिन्दोस्तान के खिलाफ़ आतंकी घटनाओं में तो लिप्त नहीं रहेंगे???