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Sunday, June 26, 2016

नगालैंड का अलग झंडा और पासपोर्ट वाली सनसनीखेज खबर को पचा गया मीडिया


खतरनाक, अत्यंत ही खतरनाक! मीडिया मंडी के पाठकीय बहिष्कार की पूर्व चेतावनी। अगर ऐसा होता है तो, किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। बिरादरी के कुछ सहोदरों के  कु-कर्म ही ऐसे हैं - बाजारू, दलाली, प्रेस्टीच्यूट, चापलूसी के आरोपों से आगे पाठकों के साथ गद्दारी!
पिछले दिनों 3 बड़ी घटनाएं देश में हुईं। पहला देश के एक बड़े व्यावसायिक घराने 'एस्सार' द्वारा कुछ नेताओं, व्यवसायियों, कलाकारों, मीडिया कर्मियों आदि के फोन टेपिंग का मामला। दूसरा भारत के एक राज्य नगालैंड के लिए अलग झंडा और पासपोर्ट पर केंद्र सरकार की सहमति। तीसरा, हरियाणा राज्यसभा चुनाव में 'कलम-स्याही कांड'। ये ऐसी खबरें थीं जिनका राष्ट्रीय महत्व था, पाठकों-दर्शकों को तथ्यों की जानकारी दी जानी चाहिए थी। लोकतंत्र में हर नागरिक का यह अधिकार है। मीडिया का दायित्व है कि वह ऐसी जानकारियों से देश को अवगत कराए। किंतु, स्वार्थ, प्रलोभन और दबाव को आत्मसात कर मीडिया ने इन खबरों से पाठकों-दर्शकों को वंचित करने की कोशिशें कीं। वह तो कुछ 'अपवाद' थे जिन्होंने उपलब्ध सीमित संसाधनों व मंच से जानकारियां पाठकों-दर्शकों तक पहुंचाने की कोशिश की। सचमुच मीडिया मंडी के लिए शर्मनाक घटना विकासक्रम है।
'नगालैंड का अलग झंडा और पासपोर्ट होगा'...! ...तमाम अन्य चौंकाने वाली बातों के साथ यह भी उस शांति समझौते का हिस्सा है जो अगस्त 2015 की शुरुआत में केंद्र और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इज़ाक मुइवा) के बीच हुआ था। पिछले कुछ दिनों से उत्तर पूर्व के अखबारों में इस बात को लेकर काफी चर्चा है, लेकिन मुख्यधारा के मीडिया में इसका रत्ती भर भी जिक्र नहीं है। योग-तमाशे की चकमक छवियां गढऩे और प्रसारित करने में जुटा मीडिया दरअसल, तमाम जरूरी चीजें छिपाने का उपकरण बन गया है। न सबसे तेज 'आज तक', न आपको आगे रखने वाला 'एबीपी न्यूज' और न ही राष्ट्रवाद के नाम पर नफरत और युद्धोन्माद फैलाने वाला 'टाइम्स नाऊ' और उसके तमाम क्लोन, किसी भी चैनल में इसकी चर्चा नहीं है। हिंदी के अखबारों की तो बात ही जाने दीजिए, 'टाइम्स ऑफ इंडिया' और 'इंडियन एक्सप्रेस' तक इस मुद्दे पर खामोश हैं जबकि पिछले कुछ दिनों से यह मुद्दा सोशल मीडिया में छाया हुआ है। केंद्र सरकार भी सन्नाटा खींचे हुए थी। बाद में कुछ सकुचाते हुए गृहराज्यमंत्री किरन रिजीजू ने कहा है कि अलग झंडे और पासपोर्ट की मांग अभी मानी नहीं गई हैं, लेकिन समझौते के जानकार इस पर सरकार की सहमति बताने पर अड़े हैं। बहरहाल, असल मुद्दा है कि मीडिया चुप क्यों है ? वह सच्चाई बताने से परहेज क्यों कर रहा है? वरिष्ठ पत्रकार पंकज चतुर्वेदी ने इसे शर्मनाक बताते हुए पूछा है कि क्या ऐसे 'मीडिया' के बहिष्कार का वक्त आ गया है?
पंकज चतुर्वेदी बताते हैं कि जिन दो खबरों को मैं अखबारों में तलाश रहा था, हिंदी के किसी भी अखबार में नहीं मिली, एक है नगालैंड में आतंकवादियों के साथ समझौता कर देश में नई रीत लागू करने की और दूसरी हरियाणा में भारत के लोकतांत्रिक इतिहास के सबसे बड़े घोटाले की जांच की। किसी भी अखबार ने इसे स्थान नहीं दिया। मीडिया के यह हालात चिंता का सबब हैं, यह तो आपातकाल से भी बदतर हालात हैं कि योग पर चार चार पेज रंगने वाले देश व समाज के सरोकार की खबरों को पाठकों से ना केवल छुपा कर बेईमानी कर रहे हैं, बल्कि अपनी विश्वसनीयता और स्वत़त्रता को गिरवी रख रहे हैं। ये खबरे हैं-
1. साल 2015 में जिस नगा समझौते को मोदी सरकार ने देख के लिए खुशखबरी बताया था, अब कुछ समाचारों ने उसके प्रावधानों पर सवाल खड़े कर दिए हैं. समाचारों के अनुसार नगालैंड में शांति समझौते के लिए भारत सरकार और विद्रोही समूह हृस्ष्टहृ-ढ्ढरू के बीच समझौते के अनुसार नगालैंड के लोग अपना अलग झंडा और पासपोर्ट रख सकेंगे.
आश्चर्यजनक रूप से इस बात का खुलासा समझौता होने के लगभग 1 साल बाद हुआ है और भारत सरकार ने भी इस पर चुप्पी साधी है. भारत की मुख्यधारा की मीडिया ने भी इस पर कोई समाचार नहीं प्रकाशित किया है जबकि उत्तर पूर्व के स्थानीय समाचार पत्रों ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया है .
हृस्ष्टहृ-ढ्ढरू के स्वघोषित गृह मंत्री किलो किनोंसेर के अनुसार भारत सरकार ने उनकी अलग झंडे और पासपोर्ट की मांग मान ली है और यह 2015 के समझौते का हिस्सा है.
पूर्व विद्रोही समूह के अनुसार हृस्ष्टहृ-ढ्ढरू और भारत सरकार के बीच का यह समझौता नगाओं के अलग राजनीतिक विचारधारा की जीत है.
केंद्र सरकार द्वारा इस समझौते को ऐतिहासिक बताया गया था और स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर कहा था कि देश को खुशखबरी मिलने वाली है.
2. राज्यसभा चुनाव में गलत स्याही के कारण रद्द हुए 13 वोट का मामला थमने का नाम नहीं ले रहा है। इसी मामले को लेकर हरियाणा कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष अशोक तंवर, कांग्रेस विधायक किरण चौधरी और कांग्रेस, इनेलो समर्थित उम्मीदवार आरके आनंद चंडीगढ़ के सेक्टर-3 थाने में एफआईआर दर्ज करवाने पहुंचे।
मामले पर एफआईआर दर्ज न होने को लेकर तीनों नेताओं व कांग्रेसियों ने थाने में प्रदर्शन किया। हालांकि इस मामले में पहले ऑनलाइन शिकायत दी जा चुकी है। किरण चौधरी ने आरोप लगया कि पुलिस दबाव में है, इसलिए उनकी शिकायत दर्ज नहीं की जा रही।
गौरतलब है कि आरके आनंद इससे पहले भी चंडीग? आईजी को शिकायत दे चुके हैं। इस बार तीनों ने अंबाला के बीजेपी विधायक असीम गोयल, निर्दलीय विधायक जयप्रकाश, विजयी राज्यसभा उम्मीदवार सुभाष चंद्रा और रिटर्निंग ऑफिसर आरके नांदल के नाम शिकायत दी है।
उल्लेखनीय है कि 11 जून को राज्यसभा के लिए हुए चुनाव में गलत पेन से वोट डालने के कारण 13 वोट रद्द हो गए थे। इनेलो कांग्रेस के कुल 37 वोटों का समर्थन होने पर भी एडवोकेट आरके आनंद हार गए थे। आनंद को कुल 21 'वैलिड' वोट मिले थे। जबकि भाजपा समर्थित सुभाष चंद्रा को 15 वोट ही मिले थे, लेकिन वह दूसरी वरीयता के वोटों की कारण चुनाव जीत गए थे। इस मामले में कांग्रेस और इनेलो ने आरोप लगाया कि सत्तापक्ष और अधिकारियों की मिलीभगत से 'स्याही का खेल' रचा गया था। जिसकी बाद में 13 जून को आर.के. आनंद, अशोक तंवर और कांग्रेस नेता बी.के. हरिप्रसाद ने चुनाव आयोग को दिल्ली में इसकी शिकायत दी। इस के बाद चुनाव आयोग की एक टीम दिल्ली से चंडीगढ़ विधानसभा जांच के लिए पहुंची। इस पूरे घटनाक्रम के बाद 16 जून को चुनाव आयोग ने तीनों प्रत्याशियों को चुनाव की पूरी वीडियो दिखाने का फैसला कर इन्हें वीडियो दिखाई लेकिन जिसके बाद 'इंक कंट्रोवर्सी' ने ओर तूल पकड़ लिया। इसकी जांच में सामने आ गया है कि कतिपय लोगों ने पेन बदला व एक निर्दलीय विधायक ने आनंद समर्थक वोट गिरने के बाद फिर से असली पेन रख दिया.

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