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Thursday, April 7, 2016

फडणवीस की भावना को समझे विपक्ष!

शाब्दिक अर्थावली कभी-कभी वितंडावाद की जननी साबित हो जाती है। महाराष्ट्र के युवा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का 'भारत माता की जय' संबंधी वक्तव्य इसी का शिकार हुआ है । चूंकि, फडणवीस एक संवैधानिक पद पर विराजमान हैं, विपक्ष उनके वक्तव्य के शाब्दिक अर्थ निकाल उन्हें निशाने पर ले रहा है।  विपक्ष या अन्य आलोचक मुख्यमंत्री के शब्दों में निहित मर्म को जान-बूझकर अलग रख रहे हैं।  फडणवीस ने जब कहा कि जिस प्रकार लोग 'जयहिंद' कहते हैं उसी प्रकार 'भारत माता की जय' भी कहना होगा, तो उनकी भावना को समझा जाना चाहिए। उन्होंने स्पष्ट भी किया कि यह नारा किसी धर्म विशेष का नहीं बल्कि समूचे देश का है। राष्ट्र और मातृभूमि के सम्मान से ओत-प्रोत 'भारत माता की जय' के उद्घोष पर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। यह उद्घोष निश्चय ही किसी जाति या धर्म का अपमान नहीं करता।  युवा मुख्यमंत्री ने अपने भाषण के दौरान आवेश में यह अवश्य कह डाला था कि 'यदि इस देश में रहना है तो जिस प्रकार जयहिंद कहते हैं, उसी प्रकार भारत माता की जय कहना ही होगा'। निश्चय ही मुख्यमंत्री का आशय मातृभूमि के प्रति सम्मान प्रकट करने से था। राष्ट्र के साथ-साथ मातृभूमि के सम्मान में वंदना राष्ट्रीय स्वाभिमान को जागृत करता है। खेद है कि विपक्ष ने इसे राजनीतिक मुद्दा बनाकर मुख्यमंत्री से क्षमा की मांग की। बात अगर सामान्य राजनीतिक तुष्टिकरण तक सीमित होती तो संभवत: मुख्यमंत्री फडणवीस क्षमा मांग भी लेते, किंतु आलोच्य मामले में राजनीति से इतर भावना अगर जुड़ी है तो मातृभूमि के सम्मान के साथ, इस पाश्र्व में मुख्यमंत्री फडणवीस का जवाब स्तुति योग्य है कि चाहे मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी भी पड़े, माफी नहीं मांगेंगे। हर प्रसंग में राजनीति की घुसपैठ के आदी राजदल व राजनेता अपनी इस प्रवृति का त्याग कर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की भावना का आदर करें और खुद भी भारत राष्ट्र व मातृभूमि के सम्मान में समर्पण प्रदर्शित करें। भारत की धरती पर जन्म लेने वाला हर व्यक्ति चाहे वह किसी भी जाति - धर्म, संप्रदाय का क्यों ना हो, भारत माता की ही संतान है। अपनी मां की कोख से जन्म लेने वाला कोई संतान भला अपनी मां का जय-जयकार करने से कैसे इंकार कर सकता है?  किसी धर्म विशेष समुदाय को माता शब्द पर आपत्ति है तो उसका निराकरण उपलब्ध ग्रंथों के माध्यम से संभव है । मां अथवा माता को कोई भी धर्म संप्रदाय अपनी जननी के रूप में ही देखता है। महत्वपूर्ण है, इस भावना को समझना, सम्मान देना।  कुतर्कों का सहारा ले मुख्यमंत्री फडणवीस के शब्दों को चुनौती देना अनुचित है। इस मुद्दे पर राजनीति तो बिलकुल नहीं होनी चाहिए । कोई भी पक्ष यह न भूले कि 'भारतीय मन' राष्ट्र सम्मान की कीमत पर कोई समझौता नहीं करता, कुर्बानी देने को हमेशा तैयार रहता है।
यह ठीक है कि पूरा का पूरा विवाद अवांछित श्रेणी का है। परंतु जब बात उठ गई है तब इसे एक शालीन पूणविराम दिया जाना चाहिए - वितंडावाद से दूर, बहुत दूर। 

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