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Friday, July 15, 2016

कश्मीर : जरूरत 'निर्णायक' कदम की

कश्मीर के ताजा घटना विकासक्रम ने केंद्र ओर राज्य दोनों सरकारों को कटघरे  में खड़ा कर दिया है। हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने शांंति और संयम बरते जाने की अपील की है, स्वाभाविक प्रश्न यह कि अपील किसके लिए? कश्मीर घाटी की ताजा हिंसक घटनाएं किसी नेतृत्व विशेष के अंतर्गत घटित न होकर नेतृत्वविहीन आकस्मिक घटना के रूप में सामने आई है। तथापि शांति और संयम जरूरी है। अब मुख्य सवाल यह कि तात्कालिक शांति के पश्चात क्या घाटी में स्थायी शांति के मार्ग ढूंढ़े जा सकेंगे? भारतीय गणराज्य में  विशेष दर्जा प्राप्त जम्मू-कश्मीर की समस्याएं भी बिलकुल अलग हैं। घाटी में अशांति है तो  पाश्र्व में आतंकवाद और सक्रिय अलगाववादी तत्व हैं। और चूंकि, 'रोग' दशकों पुराना हो चुका है, कड़वी दवा की जरूरत से कोई इनकार नहीं कर सकता।
एक युवा आंतकी बुरहान वानी की मुठभेड़ में मौत के बाद अचानक राज्य में हिंसक घटनाओं की उत्पति अनेक सवाल खड़े कर रही हंै। बुरहान की शव यात्रा में हजारों हजार की संख्या में स्थानीय लोगों की मौजूदगी, पाकिस्तान झंडों का लहराया जाना, आजादी की मांग करना कोई सामान्य घटनाविकासक्रम नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी ने बुरहान को आतंकी तो निरूपित किया हैं किंतु, सच यह भी है कि यह आतंकी पाकिस्तान प्रशिक्षित और पाकिस्तान प्रायोजित था। बुरहान की मौत पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा दुख जताया जाना और कश्मीर के कथित विवाद के हल के लिए संयुक्त राष्ट्र के पुराने प्रस्ताव का हवाला दिया जाना उनकी कुटिल मंशा और बदनियती का परिचायक है।  स्थायी समाधान ढूंढ़ते समय भारत को पाकिस्तान के इस रुख का ध्यान रखना होगा।
शांति का पक्षधर भारत कश्मीर समस्या का हल ढूंढने के लिए पाकिस्तान के साथ बातचीत का रास्ता अपनाता रहा है। अनेक बार द्विपक्षीय वार्ताएं हुईं, कतिपय समझौते भी हुए। बावजूद इनके कश्मीर में शांति की जगह अशांति ही फैलती गई। दोनों देशों के बीच युद्ध भी हुए। पाकिस्तान दो टुकड़ों में भी बंटा किंतु, कश्मीर समस्या जस की तस। बल्कि, और भी जटिल होती चली गई। टिप्पणी कुछ कड़वी लग सकती है किंतु, सत्याधारित होने के कारण प्रकटीकरण जरूरी है। कभी- कभी अप्रिय, अरुचिकर बातें भी समाधान का मार्ग  बता जाती हैं।
सच और सच यह कि, विगत की सभी शांति वार्ताएं परिणाम शून्य साबित होती रही हैं। इस सच के आलोक में तो कोई वास्तविक शांति दूत भी और आगे कदम बढ़ाने से हिचक जाएगा। भारत ने हमेशा शांति के पक्ष में परस्पर बातचीत को महत्व दिया है। किंतु बुरहान के बहाने पाकिस्तान ने जो संदेश देने की कोशिश की है, उसे अब गंभीरता से लेना होगा। पाकिस्तान का आंतरिक राजनीतिक और फौजी समीकरण कभी भी शांति समर्थक नहीं रहा है। मिथ्या व कुटिलता आधारित संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का उल्लेख कर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने अपनी मंशा साफ कर दी है। जरूरत है कि भारत अब कोई निर्णायक कदम उठाए। पिछले सात दशकों के कटु अनुभव भी ऐसी पहल की चुगली कर रहे हैं। कठोर निर्णय दुखद हो सकते हैं किंतु अब घाटी में स्थायी शांति के लिए ऐसे कदम उठाने ही होंगे। यही संपूर्ण भारतीय मन की आकांक्षा है।  भारत सरकार इसे सम्मान दे।

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