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Sunday, June 26, 2016

...तो खून-खराबा हो जाएगा! ( सनकी स्वामी की नई सनक! )


अपने चरित्र और राजनीतिक समीक्षकों की शंका के अनुरूप भाजपा के विवादास्पद सांसद सुब्रमण्यम स्वामी की सनक है कि रुकती ही नहीं। अपनी ही सरकार और पार्टी के कुछ लोगों को निशाने पर रखनेवाले इस घोर अविश्वसनीय स्वामी ने चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने अनुसासन तोड़ दिया तो खून-खराबा हो जाएगा। अपने अनुसासन के लिए विख्यात भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कभी ऐसी दु:स्थिति की कल्पना नहीं की होगी कि जब उनका अपना सांसद शिष्टता और अनुशासन की सारी मर्यादा तोड़ खून-खराबे की बाते करने लगेगा।
पिछले दिनों जब स्वामी ने केंद्र सरकार के मुख्य वित्तीय सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम पर गंभीर तीखे आरोप लगाए थे तब वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उन्हें अनुशासन की सीमा में रहने की सलाह दी थी। जेटली की इस सलाह से बिफरे सुब्रमण्यम स्वामी ने एक ऐसा ट्वीट कर दिया जिससे पूरी पार्टी और केंद्र सरकार सकते में आ गई है।
स्वामी ने ट्वीट में लिखा कि 'मुझे बिना मांगे अनुशासन में रहने की सलाह देनेवालों को यह अंदाज नहीं है कि अगर मैंने अनुशासन तोड़ दिया तो खून-खराबा हो जाएगा। ' भाजपा का कोई वरिष्ठ सांसद खून-खराबे की बात करे, यह उसके चाल,चरित्र,चेहरा के घोष वाक्य को सीधी-सीध चुनौती है। भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं के बीच ताजा टिप्पणी को लेकर घोर असंतोष है। पार्टी के अंदर जो वर्ग किन्हीं कारणों से स्वामी को समर्थन दे रहा है वह भी खून-खराबे वाली बात को पचा नहीं पा रहा है। यह तो बिलकुल सड़कछाप नेता की बात हो गई। लगता है स्वामी अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं अन्यथा स्वयं के सुशिक्षित, सुसंस्कृत होने का दावा करनेवाले 'हार्वर्ड रिटर्न ' सुब्रमण्यम स्वामी ऐसी घटिया बात नहीं करते। भाजपा नेतृत्व और संघ दोनों स्वामी की ताजा सनक से चिंतित हैं।
 स्वामी ने अपने ट्वीट में किसी का नाम तो नहीं लिया, लेकिन साफ है कि उनका इशारा जेटली की ओर ही था। यह तब और साफ हो गया जब एक दूसरे ट्वीट में स्वामी ने लिखा कि ' विदेश यात्रा के दौरान मंत्रियों को पारम्परिक आधुनिक भारतीय ड्रेस पहनना चाहिए। कोट-टाई में वे वेटर जैसे दिखते हैं।' चूकि स्वामी के ट्वीट वाले दिन ही अखबारों में अपनी विदेश यात्रा में अरुण जेटली की कोट -टाई पहने तस्वीर छपी है, स्वामी का इशारा साफ है।
रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन, वित्तीय सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम और आर्थिक मामलों के सचिव शशिकांत दास के खिलाफ गंभीर आरोप लगानेवाले स्वामी के खिलाफ केंद्र सरकार के बड़े अधिकार लामबंद होने लगे हैं। इन अधिकारियों ने साफ कह दिया है कि अगर स्वामी पर अंकुश नहीं लगा तो वे भारत सरकार को मुश्किल में डाल देंगे। सरकारी अधिकारियों का यह रुख चिंताजनक है। पूरे प्रसंग में सर्वाधिक विस्मयकारी प्रश्न यह पूछा जा रहा है कि आखिर स्वामी किसकी शह पर इतना उछल रहे हैं? यह सवाल तब गंभीरता से पूछा गया जब स्वामी ने जेटली को उनकी औकात बताते हुए कह डाला कि 'जेटली से मेरा कोई लेना-देना नहीं है।  जरूरत पडऩे पर मैं प्रधानमंत्री मोदी या पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से बात करुंगा।' राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि पार्टी का एक वर्ग अपने किसी खास मकसद की पूर्ति के लिए स्वामी का 'उपयोग' कर रहा है। उन्हें सत्ताशीर्ष का ही नहीं बल्कि संघ का भी समर्थन प्राप्त है। कतिपय आर्थिक मुद्दों पर सरकार की नीति निर्णयों से क्षुब्ध संघ आर्थिक क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन चाहता है। इधर स्वामी भी अर्थव्यवस्था व वित्त मंत्रालय को लेकर आक्रामक हैं। स्वामी के कदमों से विपक्ष को केंद्र सरकार को घेरने का अवसर मिल गया है। कारण और संभावित परिणाम से पृथक यह तो तय है कि केंद्र सरकार और भाजपा संगठन में समानांतर शक्ति केंद्र के पैदा होने के संकेत मिलने लगे हैं। मात्र दो वर्ष पूर्व ऐतिहासिक बहुमत के साथ सत्ता में आई भाजपा की यह स्थिति हानिकारक सिद्ध होगी। भाजपा व केंद्र की मोदी सरकार से लोगों ने बड़ी-बड़ी आशाएं लगा रखी हैं। आम जनता की अपेक्षा है कि पूर्व की कांग्रेस नेतृत्व की सरकारों के विपरीत मोदी सरकार सत्ता में परिवर्तन ला भ्रष्टाचार मुक्त काम करनेवाली सरकार के रूप में पहचान बनाएगी। ऐसे में स्वामी जैसे विघटनकारी तत्वों को अगर समर्थन, प्रश्रय मिलता है तो मोदी सरकार लोगों की आकाक्षांओं को पूरा कर पाएगी इसमें संदेह है। अगर आरोप सही है कि किसी विशेष 'योजना' को क्रियान्वित करने के लिए स्वामी का उपयोग किया जा रहा है तो यह एक अत्यंत ही गलत हथकंडा साबित होगा। गलत परम्परा की नींव पड़ेगी। देश की जनता सरल व पारदर्शी सत्ता की आकांक्षी है। 'योजना' व  'लक्ष्य' की पूर्ति के लिए अन्य सरल उपाय भी निश्चय ही उपलब्ध होंगे। स्वामी कदापि ऐसे लक्ष्यपूर्ति के लिए उपयोगी नहीं हो सकते।

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