वैचारिकता का यह कैसा पतन! भारत की राजनीति एक दिन पतन की खाई में चली जाएगी, ऐसी कल्पना समीक्षक- विश्लेषक आजादी मिलने के साथ ही कर चुके थे। तब कारण प्रतिभा- योग्यता की उपेक्षा और अयोग्य चाटुकारों के उदय को बताया गया था। लेकिन कभी विचार पतित राजनीति के बोझ तले दब सिसकारी मारने को मज़बूर हो जाएगी, ऐसी कल्पना नहीं की गई थी। ऐसे में उत्तम विचार आए तो कहॉं से? भारतीय समाज चिंतित है, ऐसी अवस्था के प्रादुर्भाव को लेकर। कौन दिलाएगा समाज को ऐसी स्थिति से निजात?
विगत कल शनिवार के दिन मराठा छत्रप केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार नेहरू-गांधी परिवार के युवा भाजपा नेता वरूण गांधी, बाल ठाकरे के उत्तराधिकारी उद्धव ठाकरे और फिल्म अभिनेता शाहरूख खान सत्तामद, अयोग्यता, अहंकार और समर्पण का बेशर्म प्रदर्शन करते देखे गए। पूरे देश को अज्ञानी और विवश मान इन लोगों ने वस्तुत: भारतीय सोच को चुनौती दे डाली। इनके कृत्य पर पूरा का पूरा समाज हतप्रभ है। क्या हो गया है राजनीतिकों की सोच को। शरद पवार जैसा अनुभवी राजनीतिक अपनी विफलता को छुपाने के लिए जब यह कहे कि चीनी नहीं खाएंगे तो मर जाएंगे क्या? तब निश्चय ही उन्हें देश व समाज हितैषी नहीं माना जा सकता। चीनी की बढ़ती कीमतों के लिए दोषी करार दिए जाने पर आई उनकी यह प्रतिक्रिया, क्या उनकी हताशा व खीज को चिह्नित नहीं करती। विफलता स्वीकार कर मंत्रिपद से इस्तीफा देने की जगह जनता को यह बताना कि 45-50 फीसदी लोग डायबिटीज के कारण मरते हैं, क्या शासकीय विफलता को महिमामंडित करना नहीं है। लोगों को चीनी नहीं खाने की सलाह देकर पवार ने वस्तुत: यह स्वीकार कर लिया कि इस मुद्दे पर सरकार कोई राहत नहीं दे सकती, देश इसे स्वीकार नहीं करेगा। पवार ने जब यह स्वीकार कर लिया कि सरकार महंगाई पर काबू नहीं पा सकती, तब उन्हें सत्ता में बने रहने का कोई हक नहीं है। बेहतर हो वे तत्काल पद त्याग दें, अन्यथा जनता उन्हें इसके लिए मजबूर कर देगी। मुझे तो विश्वास ही नहीं होता कि मराठा छत्रप आम जनता के प्रति इतने असंवेदनशील हो सकते हैं। उन्हें महंगाई के कारण आम जनता की पीड़ा की अनुभूति कैसे नहीं हुई? सभी चकित हैं कि कभी प्रधानमंत्री पद के दावेदार शरद पवार एक मंत्री के रूप में आम जनता के दु:ख से तटस्थ कैसे रह सकते हैं? और तो और उन्होंने तो जनता के जख्मों पर नमक छिड़क दिया है। किसी ने बिल्कुल ठीक कहा है कि ज्ञान की तरह अनुभूति उधार नहीं मिलती। परम ज्ञानी को मिली अनुभूति का कारण उसका अपना अनुभव होता है। अनुभव ही सारे तर्कों- कुतर्कों और विश्लेषणों का जज होता है। फिर अनुभवी पवार ऐसी अनुभूति से वंचित कैसे रह गए? कहीं राजनीतिक व निजी स्वार्थ ने तो उन्हें पतित नहीं कर डाला।
लोग- बाग निराश वरूण गांधी से भी हुए। पिछली भूल को दोहराते हुए महंगाई को आधार बना वरूण ने शरद पवार को रावण और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को शूर्पणखा करार देकर उस भारतीय संस्कृति और सभ्यता को छलनी करने की कोशिश की है, जो उनकी पार्टी भाजपा का लक्ष्य-मंत्र है। भारतीय समाज निहायत निजी स्तर पर किसी के चरित्र हनन की इजाजत नहीं देता। राजनीतिक विरोध अथवा प्रतिद्वंदिता जब स्तरहीन हो जाता है तब भी वरूण जैसा निम्न स्तर प्राप्त नहीं करता। वरूण ने बिल्कुल सड़क छाप राजनीति का प्रदर्शन किया है। टपोरी बना दिया अपने को। देश के युवाओं के एक बड़े वर्ग को वरूण ने अपनी इस आपत्तिजनक हरकत से निराश किया है।
पवार और वरूण इस बिंदु पर श्रीकृष्ण के शब्दों को याद कर लें। कृष्ण ने कहा है कि राजनीति कर्मयोग से जुड़ी हुई है। केवल कर्मयोगी ही राजनीति के शीर्ष पर पहुंच सकता है। कर्म के बिना मनुष्य सहित किसी भी प्राणी का अस्तित्व नहीं है। जो मूढ़ व्यक्ति अपने कर्मेद्रियों का इस्तेमाल नहीं करता, वह नष्ट हो जाता है।
क्या पवार और वरूण ऐसी गति को प्राप्त करना चाहेंगे? अगर हां तो बेशक वे जीवनावश्यक वस्तुओं से जनता को वंचित करते रहें, समाज में रावण व शूर्पणखा पैदा करते रहें। लेकिन हां, तब जनता न्यायाधीश की भूमिका में न्यायदंड के साथ तत्पर मिलेगी।
शाहरूख और उद्धव ठाकरे के घालमेल ने भी पतित राजनीति का एक घिनौना चरित्र सामने ला दिया है। राहुल गांधी के मुंबई मिशन की सफलता से घबराए बाल ठाकरे ने अपने पहले के फरमान को वापस ले लिया कि शाहरूख खान की फिल्म के प्रदर्शन पर उन्हें कोई ऐतराज नहीं। समय की नजाकत को देखते हुए अनुभवी बाल ठाकरे का यह फैसला बिल्कुल सही था। किंतु पुत्र उद्धव अपने दंभ को फिर भी प्रदर्शित करते रहे। मुंबई पर अपने एकाधिकार का भ्रम वे त्याग नहीं पा रहे। 'मुंबई राजा' की तरह शाहरूख खान को कह डाला कि अगर वे अपना पक्ष रखना चाहते हैं, तब घर पर आकर बाल ठाकरे से मिल लें। कितना हास्यास्पद है उद्धव का यह फरमान! क्या 'मातोश्री' मुंबई का राज-दरबार है, जहां शाहरूख अपनी फरियाद लेकर पहुंचे। ठाकरे का यह अंहकार बिल्कुल रावण के अहंकार की तरह है। ऐसे में रावण- दर्प की तरह ठाकरे- दर्प को भी एक दिन चूर- चूर तो होना ही है। अभिनेता शाहरूख ने विदेश से मुंबई लौटकर एक कुटिल बयान दे डाला। कहा कि वे आज जो कुछ हैं, मुंबई की वजह से हैं। मुंबई के कथित राजा ठाकरे प्रसन्न हो गए। लेकिन ठाकरे यह नहीं समझ पाए कि वस्तुत: शाहरूख के कहने का अर्थ क्या था। शाहरूख ने अपनी उपलब्धियों का श्रेय तो मुंबई को दिया किंतु यह तो नहीं कहा कि वे जो कुछ हैं ठाकरे की वजह से हैं। यानि ठाकरे, मुंबई तो कतई नहीं है।
2 comments:
सटीक विश्लेषण. वरुण को कुछ ठोस करना चाहिये अन्यथा वह राजनीति में दूर तक नहीं जा सकेंगे.
सटीक विश्लेषण...
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