सचमुच अब बहुत हो चुका। आखिर कब तक चलता रहेगा मंदिर-मस्जिद रूपी चूहे-बिल्ली का खतरनाक देश-तोड़क खेल? वोट की राजनीति की पोषक और सत्ता के लिए सामाजिक सौहाद्र्र को भी दांव पर लगाने में नहीं हिचकिचाने वाली तथाकथित धर्मनिरपेक्ष शक्तियां भारतीय जनता पार्टी को साम्प्रदायिक निरूपित कर उस पर प्रहार करती हैं। सुनियोजित तरीके से उसे बचाव की भूमिका अपनाने को मजबूर करने की कोशिशें होती रहीं। उसे अल्पसंख्यक विरोधी के रूप में पेश किया जाना एक फैशन बन गया। साम्प्रदायिकता के पर्याय के रूप में भाजपा को प्रस्तुत करने की एक बड़ी साजिश इन कथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने रची। लेकिन अब?
इसी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व से जब इतिहास बदल डालने का आह्वान अल्पसंख्यक मुस्लिमों के लिए आया है तब इस अवसर को व्यर्थ न जाने दिया जाए। भाजपा के नए अध्यक्ष नितिन गडकरी ने मंदिर और मस्जिद दोनों बनाए जाने का आह्वान कर स्वघोषित धर्मनिरपेक्ष ताकतों को चुनौती दी है। धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा पहन राजनीति की रोटी सेंकने वाली ये ताकतें बेचैन हो उठी हैं। अगर मंदिर-मस्जिद का मसला शांतिपूर्ण तरीके से सुलझ गया तब तो इनका 'वोटबैंक' दिवालिया हो जाएगा। जाहिर है कि अब ये नई साजिश रचेंगे। विवाद को जीवित रखने के नए तरीके इजाद किए जाएंगे। अंग्रेजों की अंग्रेजियत का लबादा ढोने वाली ये राजनीतिक शक्तियां शासन करने की अंग्रेजी नीति 'फूट डालो और राज करो' की पोषक भी तो हैं! लेकिन छल-कपट की राजनीति का अंत होता ही है। ब्रिटिश शासकों को अंतत: सात समंदर पार इंग्लैंड वापस लौटना ही पड़ा था। हिन्दू व मुसलमानों के बीच फूट डाल राज करने वाले नए देशी हुक्मरान इस सचाई को न भूलें।
मंदिर-मस्जिद के दुर्भाग्यपूर्ण, संवेदनशील विवाद को सुलझाने की दिशा में उठाया गया नितिन गडकरी का सकारात्मक कदम सर्वमान्य-सुखद परिणति का आकांक्षी रहेगा। तेजी से विकसित देशों की श्रेणी में प्रवेश की ओर अग्रसर भारत की जनता अब ऐसी साजिशों का शिकार होना नहीं चाहती। धर्म निहायत निजी आस्था का मामला है। हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, बौद्ध सभी की धार्मिक परंपराओं को भारतीय समाज में सम्मानजनक स्थान प्राप्त है। इसे छिन्न-भिन्न करने वाले राष्ट्रभक्त नहीं हो सकते। अयोध्या में मंदिर और मस्जिद विवाद को हल करने की दिशा में पहली बार भाजपा ने व्यावहारिक कदम उठाने की पहल की है। सराहनीय है यह। इसके पूर्व ऐसा ठोस फैसला कभी नहीं किया गया। यह सुखदायी परिवर्तन का पूर्व संकेत है। हिन्दू-मुसलमान के बीच दूरी पैदा करने का घृणित खेल अंग्रेजी शासकों ने शुरू किया था। 'फूट डालो और राज करो' की उनकी नीति के कारण ही देश का विभाजन हुआ। हां, यह कड़वा सच अवश्य मौजूद है कि तब हिन्दू-मुस्लिम संप्रदाय के कुछ कथित नुमाइंदे भी अंग्रेजों की चाल में फंस दोनों संप्रदायों के बीच दूरियां बढ़ाते रहे। एक-दूसरे के दिलों में परस्पर नफरत पैदा करते रहे। अब तो उन्हें यहां से विदा हुए छह दशक से अधिक हो गए। फिर अब दोनों संप्रदायों के बीच पुराने सद्भाव को वापस क्यों न लाया जाए? इतिहास गवाह है कि सैकड़ों वर्षों तक ये दोनों एक परिवार-एक भाई की तरह मिल-जुलकर रहते आए थे।
विलंब अभी भी नहीं हुआ है। अयोध्या में राम मंदिर और मस्जिद दोनों के निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करने की पहल गडकरी ने की है। यह एक अवसर है सभी शिक्षित समाज के मुंह पर साम्प्रदायिकता की कालिख पोतने वालों को बेनकाब कर समुद्र में डुबो देने का। यह अवसर है कड़वाहट को खत्म कर मिठासपूर्ण साम्प्रदायिक सौहाद्र्र कायम करने का। यह अवसर है पूरे विश्व को संदेश भेज देने का कि भारत में विश्व गुरु बनने की सभी पात्रताएं मौजूद हैं। यह अवसर है आतंकवाद की बैसाखी के सहारे देश में सांप्रदायिक आग फैलाने वालों को मौत दे देने का। निश्चय मानिए, तब सचमुच इतिहास बदल जाएगा और तब दिखेगा असली हिन्दुस्तान।
2 comments:
यह भी तो बतायें कि आपकी नजर में कौन साम्प्रदायिक है और कौन धर्मनिरपेक्ष. किस पार्टी का चेहरा कैसा है और आपकी नजर में साम्प्रदायिक और धर्मनिरपेक्षता का पैमाना क्या है.
यह भी तो बतायें कि आपकी नजर में कौन साम्प्रदायिक है और कौन धर्मनिरपेक्ष. किस पार्टी का चेहरा कैसा है और आपकी नजर में साम्प्रदायिक और धर्मनिरपेक्षता का पैमाना क्या है.
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