यह भी खूब रही! नितिन गडकरी ने एक दलित के घर भोजन क्या किया कि कांग्रेसी तिलमिला उठे। आनन-फानन में प्रचारित कर दिया गया कि गडकरी राहुल गांधी की नकल कर रहे हैं। कहा गया कि राहुल गांधी की दिन-ब-दिन बढ़ती लोकप्रियता से परेशान भाजपा नेतृत्व ने ऐसा किया। पूछा गया कि इससे पहले किसी दलित के घर भाजपा नेता क्यों नहीं गए? सुविधानुसार तथ्यों को तोड़-मरोड़कर इतिहास भी अपनी सुविधानुसार लिखवाए जाने में माहिर कांग्रेसी वस्तुत: ऐसे प्रयास में अपनी अज्ञानता का ही परिचय दे डालते हैं। जाहिर है, तब उन्हें बगले झांकने पड़ते हैं- मुंह छुपाने पड़ते हैं। एक दलित के यहां गडकरी का भोजन करना कांग्रेसियों की चुभन का कारण इसलिए बना कि गडकरी ने 'नाटक' के विरुद्ध 'वास्तविकता' को खड़ा कर दिया। जी हां, सच यही है। राहुल गांधी के दिखावे को गडकरी की वास्तविकता ने हाशिये पर खड़ा कर दिया। गडकरी की पहल को नकल करार दे चुनौती देने वाले कांग्रेसी पहले हकीकत को जान लें। किस राहुल गांधी की नकल की बात कर रहे हैं वे? राहुल गांधी न तो मोहनदास करमचंद गांधी के वंशज हैं, न ही उनकी तरह लंगोटी पहनते हैं, न ही उनकी तरह हरिजन बस्ती में रहते हैं और न ही उनकी तरह हरिजन बस्ती की गंदगी की सफाई कर रहे हैं। दलित परिवार में जाकर भोजन तो करते हैं किन्तु अगर मायावती की मानें तब भोजन के बाद राहुल गांधी कीटनाशक साबुन से अपने हाथ साफ किया करते हैं। गडकरी का एक दलित परिवार में जाकर भोजन करना कोई नई बात नहीं है। गडकरी दलितों के घरों में जाकर भोजन करते रहे हैं और दलित उनके घर आकर भोजन करते रहे हैं। गडकरी की जिंदगी का एक सामान्य-सरल पक्ष है यह। प्रचार या वोट के लिए उन्होंने ऐसा कभी नहीं किया। पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद ऐसा किया तो सतर्क-बेचैन मीडिया ने खबर बना दी! कांग्रेस ने चुनौती दे डाली कि इसके पहले कोई भाजपा नेता दलित के घर क्यों नहीं गया? ऐसा सवाल करने वाले या तो अज्ञानी हैं, अंधे हैं या फिर जानबूझकर अंजान बन रहे हैं। यदि किसी हरिजन के यहां भोजन करना ही दलित सेवा है तब मैं बता दूं कि देश में अगर कोई सबसे बड़ा दलित सेवक है तो वह अशोक सिंघल और विश्व हिन्दू परिषद है। जी हां, यह एक ऐतिहासिक सच है। अशोक सिंघल ने एक बार विश्व हिन्दू परिषद के अन्य साधु-संतों के साथ काशी में डोम राजा (क्षमा करेंगे, संदर्भवश मुझे इस शब्द का इस्तेमाल करना पड़ रहा है, अपने उसूलों के खिलाफ) के यहां भोजन ग्रहण किया था। कांग्रेस की ओर से गडकरी को चुनौती देने वाले यह तो जानते ही होंगे कि तब भारतीय समाज में (दुखद रूप से) डोम को दलित से भी नीचा माना जाता था। इस प्रकार अशोक सिंघल आदि ने तो हरिजन या दलित से नीचे की जाति वाले के यहां भोजन किया! उस जाति-वर्ग के यहां तो राहुल गांधी ने अभी तक बहुप्रचारित प्रायोजित भोजन नहीं किया। तब क्या हम यह मान लें कि राजनीति में आने के बाद मुखौटा पहनकर रोड शो राजनीति कर रहे राहुल गांधी अशोक सिंघल की नकल कर कभी-कभार दलितों के यहां भोजन करने लगे हैं?
राजनीति में प्रतिस्पर्धा के गिरते स्तर ने समाज-परिवार को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रखा है। इस तथ्य को भुलाया जा रहा है कि संस्कार परिवार देता है, संस्कृति देश। संस्कृति के विकास की सही तिथि की जानकारी का दावा इतिहासकार भी नहीं कर पाए हैं। हां, जानकार यह दावा अवश्य करते हैं कि देश में, समाज में जो कुछ भी दर्शनीय है, शुभ है वह भारतीय संस्कृति की देन है। कुछ पात्र-चरित्र जब देशी संस्कृति-सभ्यता का त्याग कर आयातित संस्कृति-सभ्यता का वरण कर लेते हैं तो पारिवारिक कुसंस्कारों के कारण। राहुल गांधी इस तथ्य को हृदयस्थ कर लें कि कुछ अच्छा करने की ललक तो ठीक है किन्तु राजनीतिक स्पर्धा में दूसरों का सम्मान भी जरूरी है। बेहतर हो, राहुल व उनकी मंडली गडकरी की नकल करते हुए उनके शब्दों को आत्मसात कर लें कि 'आप अपनी लकीर बड़ी करें, दूसरों की छोटी न करें।'
2 comments:
आपने ठीक लिखा है, देखते हैं कि कांग्रेस इसे कैसे लेती है.
कांग्रेस सदा से ही एक परिवार के इर्द गिर्द बसने वाली चाटुकार मंडली से ज्यादा कुछ नहीं रही है. आज भी मैडम और बबुआ की नज़रों में सुर्खरू होने के लिए यह चाटुकार मंडली विरोधियों को गरियाना ही अपना ध्येय समझती है. सत्ता के लिए कभी पंडित बन गए, कभी गाँधी. और जो कभी देशभक्त सत्याग्रहियों और क्रांतिकारियों पर जुल्म ढाने वाले अंग्रेजों के सहयोगी रहे थे वे आज इस चाटुकार मंडली का हिस्सा बने सत्ता की मलाई चाट रहे हैं. शहीद सैनिकों और पुलिसवालों से ज्यादा जरूरी इनके लिए आतंकवादी और माओवादी हैं. और आत्ममुग्धता ऐसी की नीरो भी कब्र में बेचैन होगा.......... जय हो!!
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