कृपया कोई लाशों पर राजनीति न करे। यह तो शहीदों का अपमान है, पूरी मानवता का अपमान है। आतंकी विस्फोट स्थल को राजनीति का दंगल बनाया जाना, क्षमा करेंगे, राष्ट्र विरोधी कार्रवाई मानी जाएगी। न चाहते हुए भी पुन: शिवसेना और ठाकरे को उद्धृत करने की मजबूरी है। शिवसेना ने पुणे आतंकी हमले के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को दोषी ठहराते हुए जिन भौंडे शब्दों का इस्तेमाल किया है, वे निंदनीय हैं। हमले को मुख्यमंत्री के पापों का फल बताकर उद्धव ठाकरे ने एक बार फिर यही साबित किया है कि शिवसेना सिर्फ सियासत का घिनौना खेल खेलना जानती है। इसके लिए वह लाश और कफन का भी सौदा कर सकती है। ठीक उसी तरह जैसा उसने 1993 के मुंबई सिलेसिलेवार बम विस्फोट के बाद किया था। शिवसेना की प्रतिक्रिया हमले में शहीद हुए लोगों का अपमान है, संपूर्ण मानवता का अपमान है और अपमान है महान मराठा संस्कृति का।
वैसे अपेक्षा तो नहीं है, फिर भी ठाकरे पिता-पुत्र-भतीजा से प्रार्थना है कि वे पुणे आतंकी हमले को राजनीतिक रंग न दें। अगर वे ऐसा करना जारी रखते हैं तब कटघरे में उन्हें भी खड़ा किया जाएगा। उन्हें जवाब देना होगा कि शाहरुख खान की फिल्म का विरोध नहीं करने का ऐलान करने वाले बाल ठाकरे ने अपने सैनिकों को सड़क पर उतर हुड़दंग मचाने का आदेश क्यों दिया था? कानून, व्यवस्था को शिवसैनिकों द्वारा हिंसक चुनौती दिए जाने के कारण ही तो अतिरिक्त कड़ी सुरक्षा व्यवस्था करने राज्य सरकार मजबूर हुई थी। नागरिकों की जान-माल की रक्षा की जिम्मेदारी सरकार पर है। शिवसैनिकों के हिंसक तेवर को देखते हुए राज्य सरकार अपने नागरिक-दायित्व का निर्वाह कर रही थी। पुणे की घटना के लिए इस व्यवस्था को दोषी ठहराकर ठाकरे ने संदेह के नए बिंदु खड़े कर दिए हैं। हो सकता है इसे मात्र लेखकीय कल्पना की श्रेणी में डाल दिया जाए, किंतु दो जोड़ दो चार का सच तो अपनी जगह कायम रहता ही है।
पूरे घटनाक्रम पर गौर करें। बाल ठाकरे के पीछे हटने के बाद शाहरूख की फिल्म के शांतिपूर्ण प्रदर्शन का माहौल बना था। मीडिया में इसे सकारात्मक स्थान भी मिला। अचानक केंद्रीय कृषि मंत्री और राकांपा अध्यक्ष शरद पवार अवतरित होते हैं। देश में महंगाई के मुद्दे पर चौतरफा हमला झेल रहे पवार बाल ठाकरे के दरबार में हाजिर होते हैं। दो घंटे तक गुफ्तगूं होती है। बाल ठाकरे के तेवर बदल जाते हैं। शाहरूख की फिल्म पर पलटी मार जाते हैं वे। फिल्म प्रदर्शन पर शांत हो चुका माहौल अचानक हिंसक हो जाता है। मुंबई सहित पूरे राज्य में खौफ पैदा कर दिया जाता है। माहौल कुछ ऐसा बना कि महंगाई का मुद्दा गायब हो जाता है। उसी दिन जारी खबर कि महंगाई दर लगभग 18 प्रतिशत पर पहुंच गई है, लोगों के ध्यान में नहीं आ सकी। चूंकि शिवसेना की चुनौती सरकार के अस्तित्व के लिए थी, स्वाभाविक रूप से सरकार ने सुरक्षा के कड़े कदम उठाए। राज्य सरकार की विफलता की स्थिति में ठाकरे की समानांतर सरकार चिह्नित हो जाती, लेकिन राज्य सरकार सफल रही। ठाकरे एवं उनके शिवसैनिक नंगे हो गए। किंतु अचानक पुणे दहल उठता है, आतंकी हमला होता है। 26/11 के बाद महाराष्ट्र में आतंक का तांडव होता है। राज्य सहित जब पूरा देश, हर राजनीतिक दल एकजुट होकर हमले को पड़ोसी पाकिस्तान की साजिश निरूपित करते हुए भरत्सना कर रहा होता है, पाकिस्तान के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की मांग करता है, ठाकरे राज्य के मुख्यमंत्री को निशाने पर लेकर विस्फोट के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं! अगर यह ठाकरे की शेखी भर है, तब वे मुख्यमंत्री और राज्य से माफी मांग लें, लोग भूल जाएंगे। अन्यथा दो और दो का जोड़ आगे बढ़ता जाएगा।
5 comments:
सर मै आपका प्रसंसक हू?
ठाकरे बन्धुओं को कोई सही नहीं कह सकता?
लेकिन साहरूख जो आई पी एल में टीम के मालिक हैं?
जो किसी भी देश के खिलाडी़ को खरीद सकते हैं?
अगर वो पाकिस्तानी क्रिकेटर को खरीद लेते,बाद में बयान नहीं देते
तो शायद यह बखेडा़ ही नहीं होता?
आप को नहीं लगता कि फिल्म के पब्लिशिटी के लिए ये सब किया गया?
शिवसेना सिर्फ सियासत का घिनौना खेल खेलना जानती है। इसके लिए वह लाश और कफन का भी सौदा कर सकती है। nice
प्रशान्त भाई, सारे सवाल सिर्फ़ शिवसेना और ठाकरे से ही किये जायेंगे… ऐसा रिवाज है…। कांग्रेस और शाहरुख से सवाल पूछने के लिये थोड़े अलग टाइप का पत्रकार होना चाहिये… :)
कहीं न कहीं दूसरा पक्ष के मुद्दों को आपने डाइल्यूट कर दिया.
भाई प्रशांतजी/सुरेशजी
अव्वल तो शाहरूख ने अपनी ओर से पहले कोई बयान नहीं दिया था। आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाडिय़ों को किसी भी टीम द्वारा नहीं लिए जाने पर पत्रकारों द्वारा पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने मत व्यक्त किया था कि 'पाक खिलाडिय़ों को भी लिया जाना चाहिए था!' इस पर ठाकरे ने आपत्ति की और फतवा जारी कर दिया कि शाहरूख की फिल्म का प्रदर्शन नहीं होने दिया जाएगा। पहले फिल्म की कोई चर्चा नहीं हुई थी। अगर इसे पब्लिसिटी स्टंट माना जाए तब तो इसे अंजाम देने वाले बाल ठाकरे ही माने जाएंगे! शाहरूख की मदद ठाकरे कैसे कर सकते हैं? हाँ, यह ठीक है कि विवाद के कारण फिल्म को काफी फायदा हुआ। लेकिन फिल्म को आईपीएल के साथ घसीटा ठाकरे ने - शाहरूख ने नहीं।
सुरेशजी, सवाल कांग्रेस से भी पूछे जाते रहे हैं - जब-जब वे कटघरे में खड़े हुए हैं। बगैर किसी पूर्वग्रह-पक्षपात के। इस ब्लॉग में अन्य आलेखों को पढ़ लें, आपका भ्रम टूट जाएगा। आप अलग टाइप के पत्रकार से रू-ब-रू भी जो जाएंगे।
प्रशांत वानखेडे
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