पहले राहुल गांधी की मुंबई यात्रा और अब शाहरुख खान अभिनित फिल्म 'माई नेम...' की रिलीज पर चाक चौबंद सफल पुलिसिया बंदोबस्त! दोनों अवसरों पर यह साबित हुआ कि प्रशासन चाहे तब कानून-व्यवस्था को कोई चुनौती नहीं दे सकता, लोगों को सुरक्षा दी जा सकती है। लेकिन इसे लेकर फिर जो 'राजनीति' का दौर शुरू हुआ है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है।
महत्वपूर्ण यह नहीं कि मुंबई दंगल में कौन जीता और कौन हारा। महत्वपूर्ण है मुंबई को निशाने पर रखकर खेली जा रही खतरनाक राजनीति। जी हां! यह देश की पतित राजनीति का वह विद्रूप चेहरा है जो अलगाववाद का बीजारोपण करने को आतुर है। लोकतंत्र के प्रहरी सावधान हो जाएं। मुंबई की ताजा घटनाएं 30 साल पहले के पंजाब की यादें ताजा करने वाली हैं। अकाली दल के बढ़ते प्रभाव से चिंतित कांग्रेस ने संत जरनैलसिंह भिंडरावाले नामक कट्टरपंथी को विशुद्ध राजनीतिक लाभ के लिए वहां सींचा था। अरुचिकर सच यह भी है कि पहल स्वयं तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी। चंडीगढ़ में आज भी वह 'होटल रोमा' मौजूद है जहां ज्ञानी जैलसिंह (जो बाद में राष्ट्रपति बने) ने संत भिंडरावाले की इंदिरा गांधी से मुलाकात करवाई थी। बाद की सभी घटनाएं इतिहास मेंं दर्ज हैं। पंजाब में अलग खालिस्तान का हिंसक अभियान चला। भिंडरावाले कांग्रेस के लिए भस्मासुर बन गए। पवित्र स्वर्ण मंदिर में भिंडरावाले का शरण लेना, वहां सेना का प्रवेश, गोलीबारी, सैकड़ों मौत और फिर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के रूप में पूरी घटना की दुखद परिणति! यूं कहें कि संत भिंडरावाले और स्वयं इंदिरा गांधी पतित राजनीति के शिकार बने थे। मुंबई की 'राजनीति' के रणनीतिकार इतिहास के उन पन्नों को पलट लें। स्वार्थ, षडय़ंत्र, घृणा, विश्वासघात और खून खराबे से रंगे हुए पन्ने किसी के भी रोंगटे खड़े कर देंगे। लेकिन लगता है वर्तमान कालखंड में राजनीतिकों की मोटी खालों से रोंगटे गायब हो गए हैं। फिर एहसास अथवा अनुभूति इनके पास फटके तो कैसे? स्वार्थ में अंधे भी तो हो गए हैं ये! लोकतंत्रीय व शासकीय दायित्व का महत्व ये नहीं समझ पा रहे हैं। यह अवस्था प्रदेश व देश दोनों के लिए खतरनाक है।
महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष माणिकराव ठाकरे मुंबई की ताजा घटनाओं के लिए शरद पवार को दोषी ठहरा रहे हैं। कह रहे हैं कि शरद पवार की बाल ठाकरे से मुलाकात के कारण शिवसेना पुनर्जीवित हो गई। शिवसैनिकों की हिम्मत बढ़ी और वे सड़क पर निकल आए। कांग्रेस के ही मंत्री नारायण राणे ने निर्वाचन आयोग को पत्र लिखकर शिवसेना की मान्यता रद्द करने की मांग की है। कांग्रेस की केंद्रीय मंत्री अंबिका सोनी की टिप्पणी है कि शिवसेना 1600 लोगों की पार्टी बनकर रह गई है। क्या यह बताने की जरूरत है कि केंद्र में और प्रदेश में शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी कांग्रेस नेतृत्व की सरकार में सहयोगी पार्टी के रूप में शामिल है? भारतीय जनता पार्टी ने मुंबई में जारी कोहराम के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहराया है। दोषारोपण और चुटकी समस्या के समाधान नहीं हैं। भिंडरावाले के उदय पर किसी ने घटित परिणति की कल्पना नहीं की थी। तब कांग्रेस सिर्फ अपना राजनीतिक लाभ देख रही थी। कांग्र्रेस भले ही इंकार करे किन्तु यह तथ्य निर्विवादित है कि शिवसेना के खिलाफ कांग्रेस ने राज ठाकरे को प्रोत्साहित किया। पूरी मुंबई और आसपास के क्षेत्रों के राज ठाकरे के गुंडे भाषा, धर्म और क्षेत्रीयता के नाम पर जब अराजकता का तांडव कर रहे थे, तब कांग्रेस नेतृत्व की राज्य सरकार ने उनके खिलाफ कभी कोई गंभीर कदम नहीं उठाया। कांग्रेस को राजनीतिक लाभ मिला भी। सत्ता हथियाने का दावा करने वाली शिवसेना राज्य में चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई। राज ठाकरे मजबूत हुए। लेकिन राजनीति का खेल सचमुच निराला है। शरद पवार ने अपनी 'राजनीति' के लिए कुछ ऐसा दांव चलाया कि बाल ठाकरे और राज ठाकरे आमने-सामने हो गए। अब राज ठाकरे दबे नजर आ रहे हैं। अपनी सहयोगी शिवसेना को दूर होता देख भाजपा ने कांग्रेस-राकांपा सरकार को निशाने पर लिया। भाजपा ने इस तथ्य को चिन्हित कर दिया कि कांग्रेस-राकांपा मुंबई की शांति व विकास की कीमत पर अपनी राजनीति चमकाने में लगी हैं। इस खेल में विजेता का ताज चाहे जिसके सिर पर जाए, पराजित एक बार फिर लोकतंत्र हुआ है। आहत हुई है मुंबई की महान संस्कृति। आहत हुए हैं मुंबईकर। लेकिन जो खतरे संभावित हैं, मेरी चिंता उन्हें लेकर है। अलगाववाद के बीज को तत्काल अग्रि के हवाले कर दिया जाए, अन्यथा अंकुरित होकर यह सिर्फ मुंबई ही नहीं, पूरे महाराष्ट्र प्रदेश की हवा को जहरीला बना देगा। पंजाब पर तब अगर काबू पाया जा सका था तो इंदिरा गांधी की दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण। हालांकि कीमत उन्हें अपनी जान से चुकानी पड़ी। लेकिन राष्ट्रनेता कोई यूं ही नहीं बनता। आज मुंबई अराजकता और अलगाववाद के पहले पायदान पर है। अभी विलंब नहीं हुआ है। इसके पूर्व कि यह दूसरे-तीसरे पायदान को तय करे, इसके पैर काट डाले जाएं। दायित्व प्रदेश व केंद्र सरकार पर है। स्वार्थ का त्याग करें, समय की मांग को समझें। बचा लें मुंबई को, बचा लें महाराष्ट्र को- अलगाववाद के षडय़ंत्र से!
3 comments:
ापकी एक एक बात से सहमत हूँ अगर सरकार चाहे तो सब कुछ हो सकता है मगर आज के नेताओं मे अधिकतर वोट की राजनीति और दृढ इच्छा शक्ति की कमी है धन्यवाद्
महाराष्ट्र किसी भी सूरत में अलग नहीं हो सकता. अब आप यह वीडियो देखें और लिखें कि क्यों जरूरी है पाकी खिलाड़ियों को भारत में खिलाना
http://www.youtube.com/watch?v=_2IL-6YaCk0
जब तक सत्ता लोलुप कांग्रेसी नीतियां जीवित रहेंगी, पूरा देश ऐसे ही शिकार बनता रहेगा.
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