'गुंडाराज' अथवा 'आतंकराज' को मराठा क्षत्रप शरद पवार की यह कैसी स्वीकृति? एक बार उद्धव ठाकरे ने घोषणा की थी कि ''हां, मुंबई मेरे बाप की जागीर है।'' बाल ठाकरे मुंबई को अपनी जागीर समझ कभी दक्षिण भारतीयों के खिलाफ, कभी उत्तर भारतीयों के खिलाफ, कभी पाकिस्तानी खिलाडिय़ों-गायकों के खिलाफ, तो कभी आस्ट्रेलियाई खिलाडिय़ों के खिलाफ आदेश-फरमान जारी करते रहते हैं। यहां तक कि किसी फिल्म का प्रदर्शन हो या न हो इस बात का एकतरफा फैसला करते रहने के वे आदी हैं। ये मशक्कत लोगों को सिर्फ यह एहसास दिलाने के लिए है कि मुंबई उनकी जागीर है, इस पर सिर्फ उनका अधिकार है। केंद्र व महाराष्ट्र सरकार से इतर मुंबई पर सिर्फ उनका शासन चलेगा। इसके विरुद्ध राष्ट्रीय रोष के बावजूद ठाकरे अविचलित अपनी मनमानी करते रहे। लेकिन ठाकरे के डर को अभी पिछले सप्ताह ही कांग्रेस के युवा महासचिव राहुल गांधी ने अपने पैरों तले रौंद डाला। ठाकरे व उनकी शिवसेना अवाक देखते रहे, राहुल गांधी ठाकरे की चेतावनी के बीच निर्भीक मुंबई में विचरते रहे। पूरे देश ने देख लिया कि अपनी मांद में कथित रूप से दहाडऩे वाला शेर वास्तव में शेर का खाल ओढ़े एक गीधड़ है। राहुल गांधी ने ठाकरे को हर तरह से बेनकाब कर दिया। सभी ने चैन की सांस ली थी। फिर शरद पवार राहुल की मुंबई यात्रा के 48 घंटे के अंदर ही ठाकरे के घर पहुंंच गिड़गिड़ा क्यों रहे थे? पवार भारत सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। हाल तक प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी रहे। फिर ऐसी कायरता! शिवसेना की गतिविधियों को अलोकतांत्रिक घोषित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम दिल्ली में घोषणा कर रहे थे कि शिवसेना जैसी पार्टियां आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा हैं, पवार के रूप में केंद्र सरकार का ताकतवर नुमाइंदा शिवसेना प्रमुख के घर हाजरी दे रहा था, विनती कर रहा था कि आईपीएल में आस्ट्रेलिया के खिलाडिय़ों को खेलने से वे न रोकें। संविधान और कानून-व्यवस्था को चुनौती देने वाले ठाकरे के खिलाफ कार्रवाई की जगह जब केंद्र सरकार का मंत्री उसके पांव पकड़े तब निश्चय ही उसे सरकार में रहने का हक नहीं। ठाकरे की संविधानेतर सत्ता के समक्ष समर्पण कर शरद पवार लोकतंत्र व संविधान के अपराधी बन गए हैं। या तो वे तत्काल इस्तीफा दे दें या प्रधानमंत्री उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दें। यह निष्पक्ष जनता का निष्पक्ष फैसला है।
मुंबई का अपना एक विशिष्ट चरित्र है। कड़वा तो लगेगा किन्तु यह सच मौजूद है कि अपनी कतिपय परेशानियों, समस्याओं से निजात पाने के लिए व्यापारी, नेता, अधिकारी और कुछ मामलों में सामान्य जन भी मोहल्ले- टोले के गुंडों से लेकर अंडरवल्र्ड की शरण में जाते हैं। उनकी मदद लेते हैं। ऐसी स्थिति प्रशासन की अकर्मण्यता के कारण पैदा हुई है। कानून- व्यवस्था और नागरी सुरक्षा के मुद्दे पर लोग प्रशासन पर विश्वास नहीं कर पाते। अंडरवल्र्ड या मोहल्ले- टोले के गुंडे घोपित असामाजिक तत्व हैं, किंतु बाल ठाकरे एवं उनकी शिवसेना? ये तो सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त राजदल के नेता हैं। विधानसभा व संसद में इनके निर्वाचित नुमाइंदे मौजूद हैं! ये जब संविधान को चुनौती देते हुए हर उस गैरकानूनी हरकतों को अंजाम देते हैं जो घोषित गुंडे या अंडरवल्र्ड के लोग किया करते हैं, तब उन्हें भी इसी वर्ग में शामिल क्यों न कर लिया जाए? इनकी पार्टी की मान्यता क्यों न रद्द की जाए? जब केंद्रीय गृहमंत्री सार्वजनिक रूप से शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना को आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा घोषित कर चुके हैं, तब विलंब क्यों?
लेकिन हम बात शरद पवार की कर रहे हैं। ठाकरे से उनकी मुलाकात को जितना सीधा-सरल दिखाने की कोशिश की जा रही है, वैसा है नहीं। राजनीति के चाणक्य माने जाने वाले चतुर पवार इतना सीधा खेल खेलते ही नहीं। क्रिकेट के बहाने उन्होंने प्रधानमंत्री और संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी को चेतावनी दी है। महंगाई के मुद्दे पर घिर जाने से परेशान पवार राजनीति में अपनी अपरिहार्यता को चिन्हित करना चाहते थे। एक ओर उन्होंने उत्तर भारतीयों व गैर मराठियों के मुद्दे पर अकेली पड़ी शिवसेना की हौसला अफजाई की, दूसरी ओर विकल्प के रूप में राज्य में नए राजनीतिक समीकरण का संकेत भी दे दिया। लेकिन भौंडे ढंग से। ऐसा कि वे स्वयं नंगे हो गए। जिस क्रिकेट खेल को उन्होंने बहाना बनाया, वह उनके ही गले की फांस बन गया। खिलाडिय़ों को सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। कानून-व्यवस्था के लिए जिम्मेदार गृह मंत्रालय पवार की ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के आर.आर.पाटिल के पास है। बाल ठाकरे के सामने गिड़गिड़ाकर पवार ने यही तो साबित किया कि स्वयं अपने ही गृहमंत्री पर उनको भरोसा नहीं है! पवार ने शायद इस पहलू की कल्पना नहीं की थी। शरद पवार ने पूरी की पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था को बाल ठाकरे के आतंकराज के समक्ष बौना साबित कर दिया है। क्या ऐसे व्यक्ति को और उनकी पार्टी को सरकार में बने रहने का हक है? कदापि नहीं- कानून व नैतिकता दोनों दृष्टि से।
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