क्या देश गृह-युद्ध की ओर अग्रसर है? संकेत खतरनाक हैं, विचलित कर देने वाले हैं। देश-समाज की रीढ़, भविष्य छात्र समुदाय को निशाने पर लेकर अराजकता को आमंत्रित करने के क्या मायने? छात्रों को निशाने पर लिया जा रहा है, विश्वविद्यालयों को निशाने पर लिया जा रहा है, शिक्षकों को निशाने पर लिया जा रहा है, कुलपतियों को निशाने पर लिया जा रहा है और इससे आगे बढ़ते हुए न्यायपालिका और संविधान की भी अवमानना हो रही है। कानून-व्यवस्था के जिम्मेदार पुलिस प्रशासन की विश्वसनीयता कठघरे में है।
अगर ये अनायास हो रहे हैं तो कारण अथवा कारणों की पहचान कर 'भ्रूण-हत्या' कर दी जाए। अगर किसी साजिश के तहत देश-विरोधी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है तो इन देश-द्रोहियों की पहचान कर दंडित किया जाए। घटनाएं सामान्य नहीं हैं। देश में एक समय ऐसा आया था जब जाति और धर्म को आधार बना मंडल बनाम कमंडल का संघर्ष उभरा था। तब पूरे देश को जाति और धर्म के नाम पर विभाजित करने के कुत्सित प्रयास हुए थे। सुखद रुप से तब समाज ने उन्हें अस्वीकार कर दिया था। दु:खद रुप से आज राष्ट्र-प्रेम बनाम राष्ट्र-द्रोह का एक अभिनव टंटा शुरू कर दिया गया है।
छात्रों और न्याय के पैरोकार वकीलों को सामने कर अराजकता को आमंत्रित करने का प्रयास शुरू हो चुका है। जेएनयू के बहाने कथित राष्ट्र भक्ति और कथित विचारधारा पर सड़कों पर फैसले की तैयारी गृह-युद्ध का ही तो आमंत्रण है। न्याय की सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमिटी के सदस्यों पर काला कोट धारण किए वकीलों के एक वर्ग द्वारा हमला निश्चय ही न्यायपालिका और संविधान को चुनौती है। यह सिर्फन्यायपालिका की अवमानना नहीं बल्कि संविधान के उन अनुच्छेदों के साथ बलात्कार है, जिसने न्यायपालिका को लोकतंत्र के रक्षक के रुप में चिह्नित किया है। इस व्यवस्था को चुनौती देने वाले राष्ट्र-भक्त नहीं, राष्ट्र-द्रोही हैं। चूंकि इस असामान्य घटना विकास-क्रम से पूरा भारत देश और उसका लोकतंत्र प्रतिकूल रुप से प्रभावित होगा, सभी पक्ष अगर वे सचमुच में भारतीय हैं तो दलीय प्रतिबद्धता अथवा विचारधारा से इतर एकजुट हो पहले लोकतंत्र और न्याय के मंदिर को सुरक्षित रखें। जब ये मंदिर सुरक्षित रहेंगे तभी तो भारत देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित हो पाएगी। गृह-युद्ध की ओर बढऩे वाले हर पैर और हाथ तत्काल काट दिए जाएं-बगैर किसी भेद-भाव के। ये तत्व देश-भक्त नहीं, देश-द्रोही हैं। भारत का लोकतंत्र और भारतीय मन राष्ट्रीय सद्भावना और सदाचार का आग्रही रहा है-अराजकता और अलोकतांत्रिक व्यवहार का नहीं।
अगर ये अनायास हो रहे हैं तो कारण अथवा कारणों की पहचान कर 'भ्रूण-हत्या' कर दी जाए। अगर किसी साजिश के तहत देश-विरोधी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है तो इन देश-द्रोहियों की पहचान कर दंडित किया जाए। घटनाएं सामान्य नहीं हैं। देश में एक समय ऐसा आया था जब जाति और धर्म को आधार बना मंडल बनाम कमंडल का संघर्ष उभरा था। तब पूरे देश को जाति और धर्म के नाम पर विभाजित करने के कुत्सित प्रयास हुए थे। सुखद रुप से तब समाज ने उन्हें अस्वीकार कर दिया था। दु:खद रुप से आज राष्ट्र-प्रेम बनाम राष्ट्र-द्रोह का एक अभिनव टंटा शुरू कर दिया गया है।
छात्रों और न्याय के पैरोकार वकीलों को सामने कर अराजकता को आमंत्रित करने का प्रयास शुरू हो चुका है। जेएनयू के बहाने कथित राष्ट्र भक्ति और कथित विचारधारा पर सड़कों पर फैसले की तैयारी गृह-युद्ध का ही तो आमंत्रण है। न्याय की सर्वोच्च संस्था सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमिटी के सदस्यों पर काला कोट धारण किए वकीलों के एक वर्ग द्वारा हमला निश्चय ही न्यायपालिका और संविधान को चुनौती है। यह सिर्फन्यायपालिका की अवमानना नहीं बल्कि संविधान के उन अनुच्छेदों के साथ बलात्कार है, जिसने न्यायपालिका को लोकतंत्र के रक्षक के रुप में चिह्नित किया है। इस व्यवस्था को चुनौती देने वाले राष्ट्र-भक्त नहीं, राष्ट्र-द्रोही हैं। चूंकि इस असामान्य घटना विकास-क्रम से पूरा भारत देश और उसका लोकतंत्र प्रतिकूल रुप से प्रभावित होगा, सभी पक्ष अगर वे सचमुच में भारतीय हैं तो दलीय प्रतिबद्धता अथवा विचारधारा से इतर एकजुट हो पहले लोकतंत्र और न्याय के मंदिर को सुरक्षित रखें। जब ये मंदिर सुरक्षित रहेंगे तभी तो भारत देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित हो पाएगी। गृह-युद्ध की ओर बढऩे वाले हर पैर और हाथ तत्काल काट दिए जाएं-बगैर किसी भेद-भाव के। ये तत्व देश-भक्त नहीं, देश-द्रोही हैं। भारत का लोकतंत्र और भारतीय मन राष्ट्रीय सद्भावना और सदाचार का आग्रही रहा है-अराजकता और अलोकतांत्रिक व्यवहार का नहीं।
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