संसद में सत्ता पक्ष की ओर से मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा विपक्ष को दिए गए जोशीले जवाब के बावजूद यह तथ्य कायम रह गया कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और छात्रों की गिरफ्तारी से उत्पन्न यक्ष प्रश्न, देशद्रोही कौन या फिर आखिर देशद्रोह है क्या, के उत्तर नहीं मिले। दु:खद रूप से आलोच्य प्रसंग ने पूरे देश में देशभक्ति बनाम देशद्रोह पर एक अरुचिकर बहस छेड़ दी है। पक्ष-विपक्ष दोनों चाहें जितने तर्क-वितर्क दें, ताजा बहस हर दृष्टि से देश के लिए घातक सिद्ध होगा। विकास की वैश्विक दौड़ में अग्रिम स्थान प्राप्त करने को व्यग्र भारत को ऐसे अरुचिकर विवाद में उलझानेवाले राष्ट्रभक्त कदापि नहीं हो सकते। विकास के मार्ग में 'बहस' को खड़ा कर इसे बाधित करने की कोशिश है यह। साफ है कि जाने-अनजाने दोनों पक्ष भारत को विकास के मार्ग पर आगे बढऩे से रोकने वाला दिखने लगा है। क्या दोनों ऐसा ही चाहते हैं? बहस इस पर हो कि देश को सफलता के शीर्ष पर कैसे पहुंचाया जाए। इस पर नहीं कि देश के एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान पर कब्जा सत्तापक्ष का हो या विपक्ष का। यह राजनीति ही है जिसे शिक्षण परिसरों में प्रवेश देकर राजदल पूर्व में आत्मघाती कदम उठा चुके हैं। देर से ही सही पूर्णविराम इस प्रगति पर लगाया जाए।
विपक्ष के आरोपों के जवाब में सत्तापक्ष की ओर से स्मृति ईरानी ने भावनात्मक जवाब तो दिए किंतु उनमें कहीं कोई गहराई नहीं है। 'सिर काट कर कदमों में रख दूंगी' या 'कोई बता दे कि मेरी जाति क्या है', संसद के बाहर कोई चुनावी भाषण तो बन सकता है, किंतु संसद के अंदर तथ्याधारित तर्कपूर्ण जवाब ही स्वीकार किए जा सकते हैं। लेकिन जिस प्रकार स्मृति ईरानी ने विपक्षी नेताओं पर नाम लेकर हमले किए उससे संकेत साफ है कि सत्तापक्ष का इरादा देशभक्ति बनाम देशद्रोह की चिंगारी को दावानल का रूप देने का है। ऐसे में तो पूरा का पूरा भारत देश झुलस जाएगा। और फिर कौन सा विकास और किसका विकास? विश्वगुरु बनने का सपना तो दूर पूरे विश्व में भारत एक घोर साम्प्रदायिक सोच वाले देश के रूप में स्थापित हो जाएगा। क्या यही चाहता है सत्तापक्ष और यही चाहता है विपक्ष। बेहतर हो दोनों पक्ष ऐसी प्रवृति का त्याग कर दें।
भारत जिस दृढ़ता के साथ 'सबका साथ सबका विकास' के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है, उस मार्ग में बाधा उत्पन्न करनेवाले वस्तुत: राष्ट्रविरोधी हैं, किंतु इन्हें भी राष्ट्रद्रोही निरुपित नहीं किया जा सकता। सत्तापक्ष, विशेषकर प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय अभिभावक की भूमिका में आना होगा। विपक्ष या कुछ दिगभ्रमित तत्वों के प्रहार को स्वाभाविक अथवा नैसर्गिक मान, उपेक्षा कर ही प्रधानमंत्री देश के सच्चे अभिभावक की भूमिका अदा कर पाएंगे।
विपक्ष के आरोपों के जवाब में सत्तापक्ष की ओर से स्मृति ईरानी ने भावनात्मक जवाब तो दिए किंतु उनमें कहीं कोई गहराई नहीं है। 'सिर काट कर कदमों में रख दूंगी' या 'कोई बता दे कि मेरी जाति क्या है', संसद के बाहर कोई चुनावी भाषण तो बन सकता है, किंतु संसद के अंदर तथ्याधारित तर्कपूर्ण जवाब ही स्वीकार किए जा सकते हैं। लेकिन जिस प्रकार स्मृति ईरानी ने विपक्षी नेताओं पर नाम लेकर हमले किए उससे संकेत साफ है कि सत्तापक्ष का इरादा देशभक्ति बनाम देशद्रोह की चिंगारी को दावानल का रूप देने का है। ऐसे में तो पूरा का पूरा भारत देश झुलस जाएगा। और फिर कौन सा विकास और किसका विकास? विश्वगुरु बनने का सपना तो दूर पूरे विश्व में भारत एक घोर साम्प्रदायिक सोच वाले देश के रूप में स्थापित हो जाएगा। क्या यही चाहता है सत्तापक्ष और यही चाहता है विपक्ष। बेहतर हो दोनों पक्ष ऐसी प्रवृति का त्याग कर दें।
भारत जिस दृढ़ता के साथ 'सबका साथ सबका विकास' के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है, उस मार्ग में बाधा उत्पन्न करनेवाले वस्तुत: राष्ट्रविरोधी हैं, किंतु इन्हें भी राष्ट्रद्रोही निरुपित नहीं किया जा सकता। सत्तापक्ष, विशेषकर प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय अभिभावक की भूमिका में आना होगा। विपक्ष या कुछ दिगभ्रमित तत्वों के प्रहार को स्वाभाविक अथवा नैसर्गिक मान, उपेक्षा कर ही प्रधानमंत्री देश के सच्चे अभिभावक की भूमिका अदा कर पाएंगे।
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