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Friday, February 5, 2016

लोकतंत्र की 'हत्या' पर मौन?


सलाम सर्वोच्च न्यायालय, सलाम। अरुणाचल प्रदेश में कथित रुप से लोकतांत्रिक प्रक्रिया की हत्या पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने जब यह टिप्पणी की कि, 'जब लोकतंत्र की हत्या हो रही हो, तब हम मूक दर्शक नहीं रह सकते,' तब भारत का लोकतंत्र और भारतवासी पुलकित हो उठे। लोकतंत्र की नींव जहां मजबूत हुई, वहीं लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति देशवासियों का विश्वास बढ़ा।
सचमुच जब लोकतंत्र की हत्या परिलक्षित हो तब राज्यपाल के विशेषाधिकार का तर्कदे 'अपराध' पर परदा नहीं डाला जा सकता।  राष्ट्रपति और राज्यपालों को कानून से ऊपर विशेषाधिकार प्राप्त हैं, किंतु  लोकतंत्र की जिस नींव पर संविधान खड़ा है, देश खड़ा है, संसद विद्यमान है, राष्ट्रपति या राज्यपाल उस लोकतंत्र की हत्या तो दूर, अवमानना भी नहीं कर सकते। आलोच्य मामले में भी यह मापदंड लागू है। न्यायपालिका को ऐसे किसी भी आदेश या निर्णय या फिर कानून की समीक्षा का अधिकार प्राप्त है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया की हत्या करती प्रतीत हों। अरुणाचल प्रदेश में जिस प्रकार राज्यपाल ने ताबड़-तोड़ निर्वाचित सरकार को अपदस्थ कर राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा की और केंद्र सरकार ने स्वीकार कर लिया, प्रथम द्रष्ट्या वह संदिग्ध है-लोकतंत्र के विरोधी है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसकी समीक्षा करने के पक्ष में फैसला कर बिल्कुल सही किया है। लोकतंत्र के विरोधी किसी भी निर्णय की समीक्षा का अधिकार न्यायपालिका को प्राप्त है। ध्यान रहे, संसद की सर्वोच्चता की मौजूदगी के बावजूद संसद द्वारा निर्मित कानूनों की संवैधानिकता की समीक्षा न्यायपालिका कर सकती है।
क्या यह चिह्नित करने की जरूरत है कि एक मजबूत लोकतंत्र में ही देश की एकता, अखंडता निहित है? सुरक्षित है? सच तो यह है कि आज अगर देश में लोकतंत्र सुरक्षित है तो पवित्र न्याय मंदिर के कारण ही। न्यायपालिका के प्रति देश का अटूट विश्वास यूं ही नहीं है। संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में निर्वाचित जन-प्रतिनिधि वस्तुत: देश का प्रतिनिधित्व करते हैं, विधायिका का अंग बन ये कानून बनाते हैं, फैसले लेते हैं। लेकिन, विविधता से परिपूर्ण देश में परस्पर संतुलन बनाए रखने के लिए अंकुश भी जरूरी है। दस्तावेज प्रमाणित करते हैं कि विधानसभाओं और संसद में पहुंचे सभी निर्वाचित जन-प्रतिनिधि 'बेदाग' नहीं हैं। प्रमाण अंकुश की चुगली कर रहे हैं। इस पाश्र्व में यह सर्वथा उचित है कि न केवल इनकी क्रिया-कलापों को निगरानी के दायरे में रखा जाए, बल्कि समय-समय पर अंकुश रुपी हथियार का उपयोग भी किया जाए। अगर ऐसे संदिग्ध तत्वों को 'बे-लगाम' छोड़ दिया जाए तो कोई आश्चर्य नहीं अगर ये किसी दिन देश को बेचते हुए पाए जाएं।
अरुणाचल प्रदेश का मामला न्यायालय के विचाराधीन है, उस पर फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं। हम आश्वस्त हैं कि न्यायपालिका अपनी जवाबदेही का निर्वाह करते हुए लोकतंत्र को सुरक्षित रखेगी।

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