जी-न्यूज!
एक खबर चल रही है 'ओपी शर्मा पर पिटाई का आरोप'। इस खबर के साथ बगल में 'स्क्रीन' पर पिटाई की तस्वीर चल रही है, जिसमें ओपी शर्मा और उसके समर्थक सड़क पर गिरे हुए एक सीपीआई कार्यकर्ता की बुरी तरह पिटाई कर रहे हैं, बूटों तले रौंदते दिख रहे हैं। और पास में खड़ी पुलिस तमाशबीन बनी हुई है।
अब अगर पत्रकारिता का कोई विद्यार्थी यह पूछे कि फिर 'पिटाई का आरोप' कैसे? कोई संपादक जवाब नहीं दे पाएगा। लेकिन खुलासा किया इसी 'जी-न्यूज' के पत्रकार विश्वदीपक ने। दीपक उस समय ड्यूटी पर थे। उन्होंने जब 'आरोप' पर अपने वरिष्ठ से पूछा, तब जवाब मिला, 'ऊपर' से कहा गया है।
इलेट्रॉनिक मीडिया की दुनिया में देश में सबसे बड़े नेटवर्क के साथ 'जी-न्यूज' खबरिया चैनल इन दिनों सुर्खियों में है। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) परिसर में कथित देश-द्रोही गतिविधियों की खबर के बाद 'जी-न्यूज' के ही 'फुटेज' के आधार पर दिल्ली पुलिस ने छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ देश-द्रोह का मामला दर्ज करते हुए उसे गिरफ्तार कर लिया। 'जी-न्यूज' ने बार-बार 9 फरवरी की उक्त घटना के वीडियो चलाए, जिसमें कन्हैया कुमार सहित जेएनयू के कुछ अन्य छात्रों को 'पाकिस्तान जिंदाबाद' और भारत विरोधी नारे लगाते हुए दिखाया गया। कुछ अन्य खबरिया चैनलों ने जी-न्यूज में दिखाए गए वीडियो की प्रमाणिकता को चुनौती देते हुए दूसरे वीडियो दिखाए, जो जी-न्यूज के वीडियो को फर्जी साबित कर रहे थे।
आरोप-प्रत्यारोप चल ही रहे थे कि बीच में संस्थान के एक पत्रकार विश्वदीपक ने 'जी-न्यूज' पर यह आरोप लगाते हुए कि संस्थान ने षड्यंत्र रचकर कन्हैया कुमार को देश-द्रोही साबित करने की कोशिश की है, इस्तीफा दे दिया। भावनात्मक और मार्मिक शब्दों से युक्त अपने त्याग-पत्र में विश्वदीपक ने पेशेवर जिम्मेदारी और नागरिक-दायित्व को चिह्नित करते हुए आरोप लगाया कि कमोबेश अब देश के हर 'न्यूज रुम' का संप्रदायीकरण हुआ है, लेकिन हमारे यहां ('जी-न्यूज') स्थितियां और भी भयावह हैं। विश्वदीपक ने सवाल उठाया है कि एक पत्रकार के तौर पर हमें क्या हक है किसी को देश-द्रोही की डिग्री बांटने का? ये काम तो न्यायालय का है न?
बिल्कुल ठीक। हमें, आपको या किसी भी मीडिया संस्थान को ये अधिकार नहीं कि वह किसी को देश-द्रोही घोषित करे। ये काम न्यायालय का है और आलोच्य मामले में भी कानून अपना काम कर रहा है। बहरहाल, उपलब्ध प्रमाण 'जी-न्यूज' द्वारा प्रसारित वीडियो के फर्जी होने की चुगली कर रहे हैं। यह पूरी की पूरी पत्रकारीय विरादरी के लिए शर्मनाक है।
विश्वदीपक ने भी अपने त्याग-पत्र में साफ-साफ लिखा है कि जब वे स्टूडियो में 'फुटेज' का संपादन कर रहे थे तब कहीं भी 'पाकिस्तान-जिंदाबाद' का नारा नहीं सुनाई दे रहा था। विश्वदीपक के अनुसार, कन्हैया को जान-बूझकर 'फ्रेम' किया गया। मजे की बात यह कि 'जी-न्यूज' के संपादक सुधीर चौधरी ने डंके की चोट पर बयान दिया कि वे प्रसारित वीडियो की सत्यता पर कायम हैं।
बात चूंकि सुधीर चौधरी की आई है तो जरा इनके पाश्र्व की भी जानकारी लें। ये वही सुधीर चौधरी हैं, जिन्होंने 2007 में 'जनमत' चैनल (जो बिक जाने के बाद अब लाइव-इंडिया के नाम से चल रहा है) में रहते हुए एक शिक्षिका का फर्जी 'स्टिंग' का प्रसारण कर चैनल को मुसीबत में डाल दिया था। भारत सरकार ने तब कार्रवाई करते हुए एक महीने के लिए चैनल का लाइसेंस निलंबित कर दिया था। चैनल बिक गया।
सन 2012! भारत की पत्रकार बिरादरी तब शर्मिंदा हुई थी, जब 'जी-न्यूज' के संपादक के रुप में सुधीर चौधरी अपने एक सहयोगी के साथ 100 करोड़ रुपए की कथित वसूली के आरोप में दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए थे। करतूत ऐसी कि चैनल के मालिक डॉ. सुभाष चंद्रा को भी आरोपी बना दिया गया। सभी अभी जमानत पर हैं।
जब कोई घटना होती है तब संबंधित का पाश्र्व भी जांच का आधार बनता है, सबूत बनता है। जेएनयू प्रकरण में जिस प्रकार सुधीर चौधरी के संपादकत्व में फर्जीवाड़ा का खेल खेला गया, चौधरी का पाश्र्व फर्जीवाड़े की सत्यता की चुगली कर रहा है।
राजदल या राजनीतिक अपने-अपने 'एजेंडे' चलाते हैं, इस पर कोई आपत्ति नहीं। पत्रकारों का कर्तव्य सामाजिक दायित्व से जुड़ा है। तटस्थता इसकी पहली शर्त होती है। ऐसे में अगर पत्रकार राजदलों के 'एजेंडों', विशेषकर जब वे किसी खास विचारधारा से प्रभावित हों, का विस्तार करने लगे तब वे स्वयं एक पक्ष बन जाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। जेएनयू के आलोच्य मामले में कुछ मीडिया घरानों की भूमिका उन 'दलालों' की तरह रही जो न केवल अपने मालिकों के तलवे चाटते दिख रहे हैं, बल्कि शर्म-हया त्यागकर 'कुछ भी' करने को तत्पर हो जाते हैं । नैतिकता, ईमानदारी, तटस्थता और मूल्य तब किसी कोने में रुदन को विवश हो जाते हैं। इसकी पटकथा लिखने का जिम्मेदार इस बार 'जी-न्यूज' बना।
एक खबर चल रही है 'ओपी शर्मा पर पिटाई का आरोप'। इस खबर के साथ बगल में 'स्क्रीन' पर पिटाई की तस्वीर चल रही है, जिसमें ओपी शर्मा और उसके समर्थक सड़क पर गिरे हुए एक सीपीआई कार्यकर्ता की बुरी तरह पिटाई कर रहे हैं, बूटों तले रौंदते दिख रहे हैं। और पास में खड़ी पुलिस तमाशबीन बनी हुई है।
अब अगर पत्रकारिता का कोई विद्यार्थी यह पूछे कि फिर 'पिटाई का आरोप' कैसे? कोई संपादक जवाब नहीं दे पाएगा। लेकिन खुलासा किया इसी 'जी-न्यूज' के पत्रकार विश्वदीपक ने। दीपक उस समय ड्यूटी पर थे। उन्होंने जब 'आरोप' पर अपने वरिष्ठ से पूछा, तब जवाब मिला, 'ऊपर' से कहा गया है।
इलेट्रॉनिक मीडिया की दुनिया में देश में सबसे बड़े नेटवर्क के साथ 'जी-न्यूज' खबरिया चैनल इन दिनों सुर्खियों में है। जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) परिसर में कथित देश-द्रोही गतिविधियों की खबर के बाद 'जी-न्यूज' के ही 'फुटेज' के आधार पर दिल्ली पुलिस ने छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ देश-द्रोह का मामला दर्ज करते हुए उसे गिरफ्तार कर लिया। 'जी-न्यूज' ने बार-बार 9 फरवरी की उक्त घटना के वीडियो चलाए, जिसमें कन्हैया कुमार सहित जेएनयू के कुछ अन्य छात्रों को 'पाकिस्तान जिंदाबाद' और भारत विरोधी नारे लगाते हुए दिखाया गया। कुछ अन्य खबरिया चैनलों ने जी-न्यूज में दिखाए गए वीडियो की प्रमाणिकता को चुनौती देते हुए दूसरे वीडियो दिखाए, जो जी-न्यूज के वीडियो को फर्जी साबित कर रहे थे।
आरोप-प्रत्यारोप चल ही रहे थे कि बीच में संस्थान के एक पत्रकार विश्वदीपक ने 'जी-न्यूज' पर यह आरोप लगाते हुए कि संस्थान ने षड्यंत्र रचकर कन्हैया कुमार को देश-द्रोही साबित करने की कोशिश की है, इस्तीफा दे दिया। भावनात्मक और मार्मिक शब्दों से युक्त अपने त्याग-पत्र में विश्वदीपक ने पेशेवर जिम्मेदारी और नागरिक-दायित्व को चिह्नित करते हुए आरोप लगाया कि कमोबेश अब देश के हर 'न्यूज रुम' का संप्रदायीकरण हुआ है, लेकिन हमारे यहां ('जी-न्यूज') स्थितियां और भी भयावह हैं। विश्वदीपक ने सवाल उठाया है कि एक पत्रकार के तौर पर हमें क्या हक है किसी को देश-द्रोही की डिग्री बांटने का? ये काम तो न्यायालय का है न?
बिल्कुल ठीक। हमें, आपको या किसी भी मीडिया संस्थान को ये अधिकार नहीं कि वह किसी को देश-द्रोही घोषित करे। ये काम न्यायालय का है और आलोच्य मामले में भी कानून अपना काम कर रहा है। बहरहाल, उपलब्ध प्रमाण 'जी-न्यूज' द्वारा प्रसारित वीडियो के फर्जी होने की चुगली कर रहे हैं। यह पूरी की पूरी पत्रकारीय विरादरी के लिए शर्मनाक है।
विश्वदीपक ने भी अपने त्याग-पत्र में साफ-साफ लिखा है कि जब वे स्टूडियो में 'फुटेज' का संपादन कर रहे थे तब कहीं भी 'पाकिस्तान-जिंदाबाद' का नारा नहीं सुनाई दे रहा था। विश्वदीपक के अनुसार, कन्हैया को जान-बूझकर 'फ्रेम' किया गया। मजे की बात यह कि 'जी-न्यूज' के संपादक सुधीर चौधरी ने डंके की चोट पर बयान दिया कि वे प्रसारित वीडियो की सत्यता पर कायम हैं।
बात चूंकि सुधीर चौधरी की आई है तो जरा इनके पाश्र्व की भी जानकारी लें। ये वही सुधीर चौधरी हैं, जिन्होंने 2007 में 'जनमत' चैनल (जो बिक जाने के बाद अब लाइव-इंडिया के नाम से चल रहा है) में रहते हुए एक शिक्षिका का फर्जी 'स्टिंग' का प्रसारण कर चैनल को मुसीबत में डाल दिया था। भारत सरकार ने तब कार्रवाई करते हुए एक महीने के लिए चैनल का लाइसेंस निलंबित कर दिया था। चैनल बिक गया।
सन 2012! भारत की पत्रकार बिरादरी तब शर्मिंदा हुई थी, जब 'जी-न्यूज' के संपादक के रुप में सुधीर चौधरी अपने एक सहयोगी के साथ 100 करोड़ रुपए की कथित वसूली के आरोप में दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए थे। करतूत ऐसी कि चैनल के मालिक डॉ. सुभाष चंद्रा को भी आरोपी बना दिया गया। सभी अभी जमानत पर हैं।
जब कोई घटना होती है तब संबंधित का पाश्र्व भी जांच का आधार बनता है, सबूत बनता है। जेएनयू प्रकरण में जिस प्रकार सुधीर चौधरी के संपादकत्व में फर्जीवाड़ा का खेल खेला गया, चौधरी का पाश्र्व फर्जीवाड़े की सत्यता की चुगली कर रहा है।
राजदल या राजनीतिक अपने-अपने 'एजेंडे' चलाते हैं, इस पर कोई आपत्ति नहीं। पत्रकारों का कर्तव्य सामाजिक दायित्व से जुड़ा है। तटस्थता इसकी पहली शर्त होती है। ऐसे में अगर पत्रकार राजदलों के 'एजेंडों', विशेषकर जब वे किसी खास विचारधारा से प्रभावित हों, का विस्तार करने लगे तब वे स्वयं एक पक्ष बन जाते हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। जेएनयू के आलोच्य मामले में कुछ मीडिया घरानों की भूमिका उन 'दलालों' की तरह रही जो न केवल अपने मालिकों के तलवे चाटते दिख रहे हैं, बल्कि शर्म-हया त्यागकर 'कुछ भी' करने को तत्पर हो जाते हैं । नैतिकता, ईमानदारी, तटस्थता और मूल्य तब किसी कोने में रुदन को विवश हो जाते हैं। इसकी पटकथा लिखने का जिम्मेदार इस बार 'जी-न्यूज' बना।
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