महाराष्ट्र के महाधिवक्ता श्रीहरि अणे को सिर्फमहाराष्ट्र प्रदेश का नहीं, बल्कि पूरे देश का बड़ा सलाम। लकीरी परंपरा से पृथक श्रीहरि अणे ने आत्महत्या कर रहे किसानों की सचाई से अदालत को अवगत कराते हुए सरकारी 'बाबुओं' की न केवल जमकर खिंचाई की बल्कि उन्हें नंगा भी कर डाला। श्री अणे ने एक सजग, प्रदेश-देश हित के प्रति चिंतित प्रहरी की भूमिका अदा की है। सरकार उनकी इस टिप्पणी के मर्म को समझे कि एक किसान अपना आत्म-सम्मान बचाने के लिए खुदकुशी करता है। वह भी जब भीख मांगने की नौबत आ जाए। यह एक ऐसा कड़वा सच है, जिसे कोई भी झूठला नहीं सकता। सचमुच, वातानुकूलित कमरों में बैठकर योजना बनाने वाले सरकारी अधिकारी इस मर्म को नहीं समझ पाते। विडंबना के रुप में कृषि-प्रधान भारत का किसान कर्ज से मुक्ति पाने के लिए आत्महत्या कर रहा है। एक ओर खबर आती है कि राष्ट्रीयकृत बैंक बड़े-बड़े कर्जदारों के हजारों-लाखों करोड़ के कर्ज माफ कर दे रहे हैं, वही दूसरी ओर किसान सरीखे छोटे कर्जदार बैंकों की प्रताडि़त करने वाली वसूली नीति से घबराकर अपने प्राण त्याग रहे हैं? ऐसी असमानता, ऐसा भेद-भाव उस लोकतांत्रिक देश में कैसे बर्दाश्त किया जा रहा है, जहां 'सबका साथ-सबका विकास' रुपी समानता का नारा दिया जा रहा हो। यह हमें स्वीकार्य नहीं।
महाराष्ट्र अभी एक युवा नेतृत्व से संचालित है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस प्रदेश के किसानों की समस्याओं, उनके दर्द से अच्छी तरह परिचित हैं। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ही उन्होंने प्राथमिकता के आधार पर किसानों का दु:ख-दर्द दूर करने की घोषणा की थी। व्यावहारिक कदम उठाते हुए उन्होंने कहा था कि सिर्फ कर्जमाफी समस्या का समाधान नहीं। प्रदेश प्रतीक्षारत है कि मुख्यमंत्री किसानों के हक में ऐसा स्थायी हल ढूंढ निकालेंगे कि च्किसान-आत्महत्याज् के कलंक से महाराष्ट्र प्रदेश मुक्त हो सके।
श्रीहरि अणे द्वारा किसानों की आत्महत्या का चित्रण प्रस्तुत करने पर बंबई उच्च न्यायालय ने जो कड़ा रूख अपनाया उसका भी स्वागत। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार का ध्यान भी आकृष्ट करते हुए समस्या निदान के प्रति सहभागी बनने की जरूरत को चिह्नित किया है। उच्च न्यायालय ने बिल्कुल ठीक ही व्यवस्था दी कि किसानों की समस्या के निदान के लिए मुख्यमंत्री की निगरानी में एक अलग प्रकोष्ठ बने। अब आशा की जानी चाहिए कि फड़णवीस सरकार पहल करते हुए शीघ्र ही किसानों के हक में ऐसा फैसले लेगी ताकि किसान आत्महत्या जैसे बदनुमा दाग से महाराष्ट्र को मुक्ति मिल सके।
महाराष्ट्र अभी एक युवा नेतृत्व से संचालित है। मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस प्रदेश के किसानों की समस्याओं, उनके दर्द से अच्छी तरह परिचित हैं। मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद ही उन्होंने प्राथमिकता के आधार पर किसानों का दु:ख-दर्द दूर करने की घोषणा की थी। व्यावहारिक कदम उठाते हुए उन्होंने कहा था कि सिर्फ कर्जमाफी समस्या का समाधान नहीं। प्रदेश प्रतीक्षारत है कि मुख्यमंत्री किसानों के हक में ऐसा स्थायी हल ढूंढ निकालेंगे कि च्किसान-आत्महत्याज् के कलंक से महाराष्ट्र प्रदेश मुक्त हो सके।
श्रीहरि अणे द्वारा किसानों की आत्महत्या का चित्रण प्रस्तुत करने पर बंबई उच्च न्यायालय ने जो कड़ा रूख अपनाया उसका भी स्वागत। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के साथ-साथ केंद्र सरकार का ध्यान भी आकृष्ट करते हुए समस्या निदान के प्रति सहभागी बनने की जरूरत को चिह्नित किया है। उच्च न्यायालय ने बिल्कुल ठीक ही व्यवस्था दी कि किसानों की समस्या के निदान के लिए मुख्यमंत्री की निगरानी में एक अलग प्रकोष्ठ बने। अब आशा की जानी चाहिए कि फड़णवीस सरकार पहल करते हुए शीघ्र ही किसानों के हक में ऐसा फैसले लेगी ताकि किसान आत्महत्या जैसे बदनुमा दाग से महाराष्ट्र को मुक्ति मिल सके।
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