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Saturday, February 7, 2009


रामलला-1
रामसेतु-2
भाजपा-3


दिल्ली से आए मेरे एक पत्रकार-मित्र ने मोबाइल फोन पर लगभग चीखते हुए जानकारी दी- ''....द कैट इज नाऊ आउट ऑफ द बैग.... राजनाथ सिंह ने कह दिया कि अयोध्या में राममंदिर बन कर रहेगा.... हमें मौके का इन्तजार है.... (और यह भी कि हम रामेश्वरम् में रामसेतु को टूटने नहीं देंगे)!'' मित्र 'ब्रेकिंग न्यूज' दे रहे थे. टेलीविजन पर उद् घोषक भी देश को यह बताने में जुट गए कि आखिर चुनाव के समय भाजपा को फिर राम ही याद आ गए. आनन-फानन में टी.वी. पर रामलला और रामसेतु को लेकर विशेष चर्चाएं शुरू कर दी गईं. विशेषज्ञों के महान विचार देश की जनता तक पहुंचाए जाने लगे. कुछ यूं जैसे भाजपा ने 'राम-विस्फोट' कर देश भर में दूषित साम्प्रदायिक हवा फैला दी. कुछ विशेषज्ञों ने अपने बॉडी लैंग्वेज से ऐसा संकेत भी दे डाला कि रामलला और रामसेतु पर चल कर भाजपा ने लोकसभा चुनाव में जीत को सुनिश्चित कर लिया है.
यहां नागपुर में मौजूद देश-विदेश से करीब 450 मीडिया-कर्मियों की परेशानी यह थी कि कुछ घंटे पहले ही वे अपने-अपने मुख्यालयों को ऐसी खबर भेज चुके थे कि भाजपा ने 'राम' का दामन छोड़ कर गांधी का दामन थाम लिया है. लेकिन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने रामसेतु और रामलला के समक्ष नतमस्तक हो एक झटके में उन खबरों को झुठला दिया. रातोंरात भाजपा-रणनीतिकारों के विचार-परिवर्तन का कारण ढूंढऩा कठिन नहीं है. शुक्रवार को भाजपाध्यक्ष ने एक दार्शनिक की तरह साम्यवाद और पूंजीवाद के क्षरण से सीख लेते हुए नया मार्ग ढूंढऩे की वकालत की थी. मैं यहां यह चिह्नित कर दूं कि भाजपा राष्ट्रीय परिषद के लिए मौजूद लगभग 6000 प्रतिनिधियों में से छह प्रतिनिधि भी 'राजनाथ के गांधी दर्शन' को ग्रहण नहीं कर पाए थे. प्रतिनिधि तो प्रतीक्षा कर रहे थे किसी ऐसे गर्म मुद्दे की, जिसके बलबूते पार्टी लोकसभा चुनाव के नतीजों को अपने पक्ष में कर सके. तीसरा रास्ता ढूंढऩे के मूड में प्रतिनिधि नहीं दिखे. उन्हें तो मुद्दे के रूप में 'गर्म लावा' चाहिए था. प्रतिनिधियों के मूड को भांप रणनीतिकारों ने (कुछ ने बेमन से ही सही) 'राम' को चुनावी मैदान में उतारने का निर्णय ले लिया. प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने को आतुर लालकृष्ण आडवाणी ने भी सहमति देने में विलंब नहीं किया. भाजपा अध्यक्ष के लगभग सवा घंटे के भाषण के दौरान 'बोर' हो रहे प्रतिनिधियों की तो बांछें खिल गईं. करतल ध्वनि में उन्होंने राजनाथ की घोषणा का स्वागत किया.
वस्तुत: प्रतिनिधियों ने रणनीतिकारों को उलझन से निकाल मार्ग दिखाया. भाजपा नेतृत्व भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव में संभावित युद्ध को लेकर परेशान था. युद्ध की स्थिति में वे कांग्रेस के खाते में शानदार विजय देख रहे थे. तो क्या भाजपा राम मुद्दे को उछाल चुनाव जीत लेगी? 2 से 82 और फिर लगभग दो सौ सीटों पर विजयश्री दिलवाने वाला यह 'मुद्दा' पूर्व परीक्षित है. फिर पार्टी इस मुद्दे के कारण लगे साम्प्रदायिक लेबल से परहेज क्यों करे? धर्म और राजनीति का घालमेल बौद्धिक स्तर पर बहस को आमंत्रित करता रहा है. लेकिन कठोर या अरुचिकर सत्य यही है कि इसके विरोध में स्वर राजनीतिक मंच से ही उठते रहे हैं.
भारतीय समाज से धर्म को अलग नहीं किया जा सकता, लेकिन इसका राजनीतिक इस्तेमाल सामाजिक ताने-बाने को ध्वस्त करता रहा है. जिम्मेदार निश्चय ही राजनेता और राजनीतिक दल हैं. संसार के हर समाज में बहुसंख्यक सम्प्रदाय ही नहीं, अल्पसंख्यक सम्प्रदाय भी धर्म की संवेदनशीलता का आग्रही है. गलत है तो धर्म का विशुद्ध राजनीतिक इस्तेमाल. ऐसा नहीं होना चाहिए. जनसाधारण में मौजूद प्रबल धार्मिक भावनाओं पर राजनीतिक ठप्पा अनुचित है. बावजूद इसके यह सच सभी के हृदय को कचोट जाता है कि क्या हिन्दू, क्या मुसलमान और क्या सिख-ईसाई आदि सभी राजनीतिक स्वार्थ से वशीभूत धर्म का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं? बहुसंस्कृति पोषक भारतीय समाज के लिए यह अवस्था एक बड़ी चुनौती है. इस रोग की जड़ को पहचान निदान ढूंढ़े जाएं. इसकी खोज सभी राजदल करें- अगर सचमुच ये एक पंथनिरपेक्ष लोकतांत्रिक भारत में सर्वधर्म समभाव को फलता-फूलता देखना चाहते हैं. यह इसलिए नहीं कि भाजपा ने राममंदिर को चुनावी मुद्दा बनाया है. यह तो उन परिस्थितियों की परिणति है, जिसे भाजपा व कांग्रेस के साथ-साथ राजदल सींच रहे हैं. यह तो निर्विवाद है कि राममंदिर विवाद का समाधान न्यायालय द्वारा नहीं किया जा सकता. जनसामान्य की भावनाओं के मद्देनजर हर धर्म-सम्प्रदाय के लोग पहल कर इसका समुचित समाधान निकालें. भारत में तो मंदिरों के घंटे, मस्जिदों की अजान, गुरुद्वारों के कीर्तन और गिरिजाघरों की प्रार्थनाएं गुंजायमान रहती हैं. कोई स्पर्धा नहीं- कोई द्वेष नहीं! फिर विवाद क्यों?
- एस. एन. विनोद
8 फरवरी 2009

1 comment:

प्रदीप मिश्र said...

sir, bjp ke ram ke jawab mein congress kya chunavi mudda banayegi ya banaba chahiye? is par aapke vicharon ka intezar hai