अब इस विडंबना पर हंसूं या रोऊं? एक समय था जब पत्रकार राजनेताओं अर्थात्ï पॉलिटिशियन्स को भ्रष्ट, चोर, दलाल निरूपित किया करते थे। वैसे करते तो आज भी हैं, किंतु अब राजनेता पत्रकारों को भ्रष्ट, चोर, दलाल, निरूपित करने लगे हैं। क्यों और कैसे पैदा हुई ऐसी स्थिति? तथ्य बतात हैं कि स्वयं पत्रकार ऐसे अवसर उपलब्ध करवा रहे हैं। इस संदर्भ में बिहार से कुछ विस्फोटक जानकारियां प्राप्त हुईं। प्रचार तंत्रों को दागदार-कलंकित-पिछड़े बिहार की जगह स्वच्छ, समृद्ध और विकासशील बिहार दिख रहा है! बिहार से बाहर रहने वाले बिहारीजन प्रदेश की इस नई छवि से स्वाभाविक रूप से पुलकित हैं। किंतु परदे के पीछे का सच पत्रकार बिरादरी के लिए भयावह है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कार्यकाल के लगभग साढ़े चार वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। इस अवधि में बिहार के अखबार, वहां कार्यरत पत्रकार और विभिन्न टीवी चैनल नीतीश कुमार और बिहार का ऐसा चेहरा प्रस्तुत करते रहे मानो बिहार विकास के पायदान पर निरंतर छलांगें लगाता जा रहा है! जबकि साक्ष्य मौजूद हैं कि इसके पूर्व यही पत्रकार बिरादरी अन्य मुख्यमंत्रियों और बिहार को पिछड़ा, निकम्मा और एक अपराधी राज्य निरूपित करती रही थी। फिर अचानक क्या हो गया? क्या सचमुच नीतीश कुमार ने बिहार की तस्वीर बदल डाली है? बिहार अपराध मुक्त और बिहारी भयमुक्त हो चुके हैं? अब जातीय संघर्ष से दूर बिहार एक विकसित प्रदेश का दर्जा प्राप्त करने की ओर अग्रसर है? इस जिज्ञासा का जवाब लगभग 15 वर्ष पूर्व संपादक के पद से अवकाश प्राप्त कर चुके एक वरिष्ठ पत्रकार ने विगत कल सुबह दिया। जवाब से मैं स्तब्ध रह गया! उन्होंने कहा कि, ''नीतीश कुमार का बिहार विकास के लिए नहीं अपितु पत्रकारों के विनाश के लिए जाना जाएगा।'' नीतीश कुमार ने अपने कार्यकाल में अखबारों, चैनलों और पत्रकारों का मुंह बंद रखने के लिए अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी है। बिल्कुल बंधुआ मजदूर बना रखा है उन्हें। नीतीश और बिहार का गुणगान करने पर बिरादरी खुश है- सुखी है। आरोप है कि वे सबकुछ कर रहे हैं सिवाय पत्रकारीय ईमानदारी के। कोई आश्चर्य नहीं कि इस तथ्य पर परदा डाल दिया गया है कि बिहारवासी नीतीश कुमार से क्रोधित हैं और अगले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी (जदयू) की खटिया खड़ी होने वाली है।
कहते हैं यदाकदा जिन पत्रकारों ने सच को उजागर करने की कोशिश की, या तो उनका तबादला हो गया या तो फिर प्रबंधन की ओर से उन्हें शांत कर दिया गया। अखबारों, चैनलों को विज्ञापन के अलावा निजी तौर पर पत्रकारों को खुश रखने के लिए धन पानी की तरह बहाया गया। लेकिन कैसे? एक वरिष्ठ पत्रकार मित्र की जुबान में सुन लें- ''....पांच लाख का विज्ञापन तो दिया जाता है किंतु साथ में पांच जूतों का बोनस भी।'' और तुर्रा यह कि पत्रकार खुशी-खुशी सह रहे हैं, स्वीकार कर रहे हैं।
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालूप्रसाद यादव ने बिहार के विकास के मुद्दे पर पत्रकारों को चुनौती दी है। लेकिन उनकी चुनौती को कोई स्वीकार नहीं कर रहा है। कारण स्पष्ट है। बंद मुंह खोलें तो कैसे? लालू ने एक वरिष्ठ पत्रकार के नवनिर्मित बंगले पर निर्माण खर्च का ब्यौरा सार्वजनिक रूप से मांगा है। स्वीमिंग पुल की सुविधायुक्त बंगला उस पत्रकार की माली हैसियत के दायरे में तो नहीं ही आता है। इसी प्रकार एक दैनिक में छपी उस रिपोर्ट को लालू ने चुनौती दी है जिसमें छोटे से शहर की एक लड़की को बिहार की कथित उपलब्धियों पर गर्व करते प्रस्तुत किया गया था। लालू ने चुनौती दी है कि संपादक उक्त लड़की को प्रस्तुत करें। लालू के अनुसार पूरी की पूरी यह 'स्टोरी' कपोलकल्पित है और लड़की एक काल्पनिक पात्र! उसका कोई वजूद ही नहीं है। अगर लालू का आरोप सही है तो निश्चय ही वह अखबार और संपादक नीतीश कुमार की दलाली कर रहा है। अविश्वसनीय तो लगता है जब सुनता हंू कि नीतीश कुमार सरकारी खजाने से सैकड़ों करोड़ रुपये समाचारपत्रों, टी.वी. चैनलों और पत्रकारों को उपकृत करने के लिए खर्च कर चुके हैं। क्या इस आरोप की जांच के लिए कभी कोई पहल होगी? उपकृत पत्रकार तो नहीं ही करेंगे, लेकिन अपवाद की श्रेणी में मौजूद ईमानदार पवित्र हाथ तो पहल कर ही सकते हैं।
11 comments:
patrkaro ne socha hoga... loktantr ke pahle teen sthamb ko hi parivar palne ka haq nhi hai.... aghoshit chouthe sthamb ke pratinidhi bhi pahle teen ki rah pr nikal pade.aap khud hi dekho M.P. bechara patrika akela chana bn kr rah gaya hai.... kul milakar trapt aur atrapt ka saval hai...koi trapt hokar moun ho jata hai...koi km me to koi adhik me trapt hota hai.koi garib hokar bhi janmjat trapt hota hai.....jo bhi ho kranti aavashyak hai. nihsandeh aapke vichar bihar ki pol ujagar karte hai.....(sanjay parashar)
यह ठीक भी हो सकता है. लेकिन लालू ने रेलवे में क्या किया??? लोग टीवी पर कह रहे थे कि जमीन दी...श्वेत पत्र भी नहीं आया... नौकरी मिल गयी...
पत्रकार भी हमारे जैसे ही इन्सान हैं.. जनाब...
यानी, क्या सोनिया-मनमोहन-मिशनरी-मुल्ला के खरीदे हुए मीडिया से भी अधिक बुरे हैं बिहार के पत्रकार???
विनोद जी, आप नाहक इस झमेले में पड़ गए हैं. अशोक ने भी अपनी बात आम लोगों तक पहुंचाने के लिए अश्मास्तंभों का सहारा लिया था. क्या वे बुरे हो गए. लालू की बातों पर अब भी आपको यकीन आ रहा है. अब सत्ता, उद्योगपतियों का चरण चुंबन करने वाली मीडिया पर आपको भरोसा रह गया है. जो बिक सकते हैं उन्हें खरीदे जाने में क्या बुराई है. नीतीश ने ऐसा किसी व्यक्ति को नहीं खरीदा जो बिकने लायक नहीं हो. फिर शिकायत कैसी. जहां तक बात विकास की है तो नीतीश पांच साल में बिहार को कहां ले जाएंगे. उन्होंने क्या पहले कभी दावा किया था कि हम वो कह देंगे(जैसा कि आपको लालू कि बात याद होगी कि वो रेल को नब्बे हजार करोड़ का मुनाफा देने का ढिंढौरा पीट रहे थे, और मनमोहन-सोनिया तालिया बजाते थे.) नीतीश ने ऐसा कुछ दावा नहीं किया. उन्होंने कहा कि बिहार को हम बेहतर बनाएंगे. आप अगर पहले बिहार गए हैं तो एकबार फिर जाकर देखिए, चूंकि मैं बिहार का हूं और जाते-आते रहता हूं, दावे के साथ कह सकता हूं कि बिहार बेहतर है. कानून व्यवस्था का राज है. लोग रात-बिरात निकल सकते हैं, लोग काम पर जा सकते हैं. सड़कें अच्छी बन गईं हैं. अस्पतालों की स्थिति पहले से बेहतर है, हां बिजली की स्थिति बदतर है, जो इतनी जल्द सुधरने वाली नहीं है, लोग क्या कहते हैं, इस पर मत जाइए, कुछ तो लोग कहेंगे...
नागपुर में बैठे-बैठे अपने किसी दोस्त की बात को मानकर बिहार के बारे में कोई छवि बना लेना मेरे हिसाब से सही नहीं है। विनोद जी के जिस मित्र का एक वरिष्ठ पत्रकार होना वो बता रहे हैं, उनकी बात की सच्चाई का प्रमाण क्या है? पत्रकारिता के जिस समाज को विनोद जी और उनके तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार मित्र बिका हुआ और झूठा बता रहे हैं, वो शायद ये भूल गए हैं कि वो खुद भी उसी समाज से आते हैं। विनोद जी और उनके मित्र ने बिहारी पत्रकारों को नितीश कुमार के हाथों बिका हुआ बता दिया और हम विश्वास कर लेते हैं। मैं विनोद जी और उनके मित्र को लालू यादव के हाथों बिका हुआ बताता हूँ, क्या आप मेरा विश्वास करेंगे? आप करें या न करें, इसका फैसला इस टिप्पणी को पढ़कर या मुझसे फ़ोन पर बात करके नही लिया जा सकता। हकीकत देखनी है तो आइये बिहार और देखिये। 5 साल पहले का बिहार और आज के बिहार में अंतर है। मैं पटना का हूँ और अभी अभी मैं रात के 1 बजे , 35 किलोमीटर की दूरी तय करके घर आ रहा हूँ। इस दूरी को तय करने में मुझे डेढ़ घंटे लगे। 5 साल पहले भी डेढ़ घंटे ही लगते थे मगर कारण अलग था। पहले सड़क में गड्ढे ही गड्ढे थे जिसके कारण गाड़ी रफ़्तार नहीं पकड़ती थी। आज सड़क पर रात के 1 बजे भी ट्रैफिक रहता है जिसके कारण गाड़ी रफ़्तार नहीं पकड़ पाती। क़ानून व्यवस्था में सुधार की इससे बड़ी मिसाल शायद आपको कहीं और न मिले।
किसी मित्र के बारे में झूठी अफवाह फैलाता हूँ मित्रों के बीच में कि उसकी शादी होने वाली है तो दो दिन के बाद मुझे ही कुछ और मित्र लड़की का नाम-गाँव इत्यादि भी बता देते हैं। बात निकलती है तो सच में दूर तलक जाती है। मेरी कही बातों में मिर्च-मसाले लगाकर दो दिन के बाद मुझे ही सनसनीखेज खबर के रूप में बताया जाता है। ये है हकीकत इंसानी मानसिकता की। मैं किसी को कुछ बोलूँगा वो उसी बात को किसी और से कुछ बोलेगा और आप तक पहुँचते-पहुँचते राम श्याम बन जाता है। विनोद जी से एक आग्रह है कि किसी से सुनी बात पर इतनी बड़ी छवि बना लेने से पहले तथ्यों को थोडा परख लें। आइये बिहार, देखिये इसे। 15 साल से गर्त में जा रहे बिहार को आज ज़मीन पर आते हुए देखिये। नितीश अगले 5 सालों के लिए आयेंगे या नहीं मालूम नहीं, मगर इतना जरूर है कि हर पढ़ा-लिखा बिहारी यही चाहता है। ये सच्चाई है। मैं पत्रकार नहीं, इसलिए इसे बिहारी पत्रकारों की सफाई मत समझिएगा। मैं डॉक्टर हूँ, आम नागरिक हूँ बिहार का और लिख भी रहा हूँ इसी हैसियत से। कम से कम किसी बिहारी का दिल न दुखाइए!!!
http://draashu.blogspot.com/2010/05/blog-post_30.html
सर जरा उन वरिष्ठ पत्रकार जी का नाम बता देते तो भला होता....आप ऐसी गलती कर रहे हैं विश्वास नही होता. आप को गलत जानकारी दी गई है..एक बार जाकर देखें...बिहार की ताकत अब भी सो रही है....ये कड़वा सच है जिसे आप भी जानते हैं..मैं भी और दुनिया भी। जिस दिन जाति से ऊपर उठ गया बिहार तो भारत की तस्वीर भी वही होगा..वरना क्या कारण है कि कई प्रदेशों की प्रगति औऱ धन की बरसात के बावजूद दुनिया में भारत गरीब देश ही कहलाता रहा है आज तक...????????
Bihar ne pichle 5 salon mein jo pragati ki hai wo bhale duniya ko na dikhti ho, par yahan rehne walon ko pata hai ki sach kya hai.Aur jahan tak election ki baat hai to aap ya apki biradri ke log itne bare surma nahi hai jo election ka result bata dein. Sach jane bina kisi ke bare mein kuch bhi likh dena yeh patrakarita nahi hoti, agar ap wakai apne peshe ke prati imandar hai to sach janne ki koshish kariye, baithe baithe baatein na banaiye.
Khair baki bataon ko choriye jis lalu prasad ki baat ka ap hawala de rahe hain uski baat man lene kam se kam biharion ke liye to kisi paap se kaam nahi hai. Bihar to choriye usne pure mulk ko topi pehni di aur phir bhi ap jaise log use sunne se baj nahi ate. Ab aise mein hum kya kahein apse.................
मैं आज ही लौटा हूं बिहार से। पहले पटना से अपने गांव (वाया महुआ - समस्ती पुर) जाने में हमें छह से आठ घंटे लग जाया करते थे, इस बार सिर्फ़ दो घंटे लगे।
पिछली बार हम शाम होने से पहले हर हाल में पहुंच जाना चहते थे। इस बार हम खिली चांदनी में धूल भरी सड़कॊं पर लुत्फ़ उठाते हुए देर शाम ढले (दस बजे) पहुंचे।
शिक्षा -- गांव की लड़कियां सायकल से घर से तीन कोस दूर के विद्यालय में पढने जा रही थी।
गांव मे सारवजनिक जल निकास के लिए नाला बन रहा था।
पार्दर्शिता का यह आलम कि उस नाले से संबंधित सारी जानकारी एक बोर्ड पर लिखी थी, आरंभ तिथि, समाप्ति तिथि, लागत, दूरी, आदि-आदि...
और बताऊं क्या?
भाई आप किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित है या फिर ... छोड़िए...।
पिछले तीस सालों में बिहार का इतना विकास नहीं देखा।
vinod ji ne ye lekh shayad saal bhar pehle likha hoga .....aj ek saal bad nitish prachand bahumat ke sath satta me hai lalu paswann aur apne rahul gandhi gayab ho gaye......ab aap khud andaza laga le ki ye vinod ji kaha bike the lalu k ghar me ya rahul gandhi k tukdon par pal rahe the ye lekh likhte samay...........
Post a Comment