पता नहीं हमारा महान भारत किन-किन क्षेत्रों में 'महानताÓ की ऊंचाइयों को किन उपकरणों से या फिर हथियारों से नापना चाहता है। गुजरात के मामले को लेकर केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की ताजा पहल हमारी पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती है। गुजरात के एक असरदार नेता अमित शाह की गिरफ्तारी के बाद अदालत से सीबीआई की यह गुजारिश कि उनके मामले की सुनवाई गुजरात से बाहर किसी अन्य राज्य में की जाए, अविश्वास का एक अत्यंत ही विद्रुप चेहरा है। सीबीआई का यह अविश्वास देश के संघीय ढांचे पर व्यक्त अविश्वास है। यह तो पूरी की पूरी संघीय व्यवस्था को तोडऩे का प्रयास है। इस पहल को एक सामान्य न्यायिक कार्यवाही अथवा पुलिसिया जांच का अंग मानने की भूल कोई न करे।
एक प्रदेश विशेष की अदालतों, अधिवक्ताओं और न्यायाधीशों को संदेह के कटघरे में क्यों खड़ा किया जा रहा है? क्या गुजरात की अदालतें अक्षम हैं या फिर ऐसी पक्षपाती कि वे अपने प्रदेश के किसी नेता के खिलाफ दोष प्रमाणित होने पर फैसला नहीं सुना सकतीं? मैं यहां सीबीआई के इस मंतव्य को स्वीकार करने को तैयार नहीं कि गुजरात के असरदार नेता और नौकरशाह अदालती सुनवाई और न्याय को प्रभावित कर सकते हैं। सीबीआई का यह कथन पूर्वाग्रह से ग्रासित है। उनका यह दावा कि न्याय को प्रभावित करने की बात को मानने के उनके पास पर्याप्त कारण हैं, आश्चर्यजनक है। किसी जांच एजेंसी का न्यायपालिका के प्रति ऐसा अविश्वास अगर जारी रहा तब कोई आश्चर्य नहीं कि आने वाले दिनों में देश की पूरी की पूरी संघीय व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो जाए। गुजरात के मुख्यमंत्री अगर सीबीआई के इस कदम को गुजरात सरकार और स्वयं अपने विरुद्ध षडय़ंत्र बता रहे हैं, तो इसका औचित्य मौजूद है। केंद्रीय सत्ता द्वारा सीबीआई के दुरुपयोग की बात अब आम है। यह भी किसी से छुपा नहीं है कि पिछले 8 वर्षों से नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व वाली गुजरात सरकार को अस्थिर करने की केंद्रीय सत्ता की कोशिशें जारी हैं। गुजरात के पिछले विधानसभा चुनाव में तो मोदी और उनकी सरकार को 'मौत का सौदागरÓ तक निरूपित कर दिया गया था। बावजूद इसके यह सच भी बार-बार रेखांकित हुआ कि गुजरात हर क्षेत्र में उल्लेखनीय विकास कर रहा है। राजनीतिक लड़ाई और अपराध को एक पलड़े पर रखने की कोशिशें हमेशा विनाश के द्वार खोलती हैं। अमित शाह के मामले को आधार बना पूरे के पूरे गुजरात को निशाने पर लिया जाना अनुचित है। राजनीतिक विश्लेषक पुष्टि करेंगे कि पूरा का पूरा खेल नरेंद्र मोदी को घेरे में लेने के लिए खेला जा रहा है। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा बिहार विधानसभा के चुनाव में नरेंद्र मोदी को स्टार प्रचारक के रूप में उतारने का संकेत भी एक कारण हो सकता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। इस खेल में न्यायिक व्यवस्था पर संदेह प्रकट कर सीबीआई ने एक अक्षम्य अपराध किया है। अविश्वास की ऐसी प्रवृत्ति तो एक दिन पूरे देश की न्यायिक व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर देगी। और तब प्रभावित पक्ष और विपक्ष दोनों होंगे।
1 comment:
सीबीआई द्वारा मामले का विचारण गुजरात के बाहर करने की मांग को न्यायिक व्यवस्था पर अविश्वास के रूप में क्यों देखा जा रहा है। क्या ऐसी कोई बात सीबीआई के आवेदन में कही गई है?
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