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Sunday, August 8, 2010

राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ें मुस्लिम!

क्या मुस्लिम समुदाय हमेशा 'वोट बैंक' का कर्जदार बना रहेगा? बंधक बना रहेगा? राष्ट्र की मुख्य धारा से अलग-थलग बना रहेगा? विकास में भागीदारी से दूर रहेगा? अत्यंत ही संवेदनशील व असहज इन सवालों के जवाब चाहिए। सिर्फ जवाब ही नहीं सार्थक और तार्किक परिणति भी चाहिए। एक ऐसा समाधान भी चाहिए जो हिन्दू-मुस्लिम संप्रदायों के बीच परस्पर सम्मान और विश्वास को जन्म दे। आजाद भारत में बगैर किसी भेदभाव के हिन्दू-मुस्लिम समानता के आधार पर सम्मानपूर्वक जीवन यापन का अधिकार दे। दोनों संप्रदायों के बीच अविश्वास की रेखा मिटा दे। अब अगर ऐसा नहीं हुआ तो कड़वे वचन के रूप में घोषणा कर दी जा सकती है कि फिर मुस्लिम 'वोट बैंक' स्थायी बंधक बनकर रह जाएंगे। स्वार्थी राजनीतिक तुष्टीकरण की रोटी खिलाकर इन्हें हमेशा हाशिये पर रखने की कोशिश करते रहेंगे। देश-समाज की नजरों में संदिग्ध बनाकर पेश करते रहेंगे। भारत के राष्ट्रीय स्वरूप पर लगा सांप्रदायिकता का पैबंद फिर कभी हट नहीं पाएगा। पहले अंग्रेजों ने और अब स्वार्थी राजनीतिकों ने दोनों संप्रदायों के बीच अविश्वास का बीज बोया और बोते रहे हैं। यह बताया जाता रहा है कि इस्लामी विचारधारा ही वस्तुत: राष्ट्रीय एकता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। दूसरी ओर मुस्लिम संप्रदाय को विशुद्ध सांप्रदायिकता के आधार पर राष्ट्र की मुख्य धारा से अलग-थलग कर धर्मनिरपेक्षता का ताना-बाना तैयार किया जाता है। मुस्लिमों के लिए तुष्टीकरण के दाने तैयार करने वाले ये छद्मधर्मनिरपेक्षी ही हैं जो 'वोट बैंक' का दिवाला नहीं निकलने देते। इसे समृद्ध बनाए रखते हैं। मुस्लिमों के मन में भय पैदा कर उन्हें अलग-थलग रखने का षडय़ंत्र रचने वाले राजनीतिक इस्लाम के मूल तत्व पर भी परदा डाल देते हैं। दुखद रूप से कतिपय मुस्लिम नेता-संगठन भी, संभवत: असुरक्षा की भावना के कारण, इस्लाम की वास्तविकता की अनदेखी कर जाते हैं। इस सचाई को दरकिनार कर दिया जाता है कि इस्लाम एक सुसंगठित मजहब है। एक पैगंबर हजरत मोहम्मद के द्वारा ईश्वर के इशारे पर बोली गई कुरान पूरे मुस्लिम समुदाय के लिए एकल आस्था है। मुसलमान कुरान को अल्लाह के वचन मानते हैं। इसे चुनौती नहीं दी जा सकती। ऐसे में कुरान की ही इस उक्ति को सतह पर क्यों नहीं आने दिया जाता कि ''सारे मनुष्य एक समुदाय हैं।'' हालांकि इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि मनुष्य के एक समुदाय वाली बात को राजनीतिक स्वार्थ में फंसे मुस्लिम धर्म प्रचारक भी जानबूझकर दबा देते हैं। वस्तुत: ये तत्व राजनीतिकों के हाथों में खेलते होते हैं। हालांकि 'एक' ईश्वर की बात करने वाले हिन्दू धर्म प्रचारक भी आदर्श और व्यवहार में फर्क करने लगे हैं। मुस्लिम तुष्टीकरण और वोट बैंक ने पूरी की पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रखा है, मुस्लिम समुदाय को उनके वांछित हक से वंचित कर रखा है। मैं चाहूंगा कि अब और बगैर विलंब के सांप्रदायिकता से दूर मुस्लिम संप्रदाय राष्ट्र की मुख्य धारा का अविभाज्य और महत्वपूर्ण अंग बन जाए। याद दिला दूं कि जब संविधान सभा में जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष दर्जा का प्रस्ताव आया था तब मोहम्मद करीम छागला ने लगभग रूदन करते हुए संविधान निर्माताओं से विनती की थी कि उन्हें (मुसलमानों को) राष्ट्र की मुख्य धारा से अलग न किया जाए। अर्थात् समझदार मुस्लिम राष्ट्र की मुख्य धारा के साथ ही बना रहना चाहता है। भारतीय जनता पार्टी पर भी कथित धर्मनिरपेक्ष तत्व सांप्रदायिक राजनीति का आरोप लगाते रहे हैं, लेकिन परिवर्तन की बयार में सामने आ भाजपा के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने मुस्लिम समुदाय के विकास के लिए उल्लेखनीय पहल की है। मुस्लिम समाज के विकास और सशक्तिकरण की उनकी पहल को सही परिपे्रक्ष्य मेें लेते हुए निर्णायक कदम उठाए जाएं। गडकरी ने वक्फ संपत्तियों के प्रभावी ढंग से इस्तेमाल का सुझाव दिया है। उनके अनुसार 1.20 लाख करोड़ की वक्फ संपत्ति का सही इस्तेमाल किया जाए तो तकरीबन 12 हजार करोड़ रु. की वार्षिक आमदनी हो सकती है। यह एक बहुत बड़ी राशि है। इसका सही इस्तेमाल कर मुस्लिम समुदाय के आर्थिक और सामाजिक विकास के क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है। समुदाय की जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन हो सकता है। रोजगार के नए-नए द्वार खुल सकते हैं। राजनीतिक शंकाओं की पर्वाह न करते हुए गडकरी ने जब ऐसी पहल की है तब मुस्लिम समुदाय इस अवसर को हाथ से न निकलने दे। तुष्टीकरण और 'वोट बैंक' की राजनीति करने वाले तत्वों को दरकिनार कर गडकरी के सुझावों पर अमल करे। इससे समुदाय का विकास तो होगा ही, दोनों संप्रदायों के बीच अविश्वास की रेखा मिटेगी, विश्वास का नया इतिहास रचेगा। यह सब संभव है बशर्ते दोनों संप्रदाय पूर्वाग्रह और कुंठाओं को दफना दें।

3 comments:

talib د عا ؤ ں کا طا لب said...

aap jaise संघ के लोगों को इस बात पर भी आपत्ति रही है कि मुसलामानों की इतनी आबादी है उन्हें अल्पसंख्यक क्यों कहा जाए.
ठीक है भाइयो मत कहो लेकिन जब संघ की राजीनीतिक इकाई भाजपा की सरकार थी तो संशोधन कर इस शब्द को क्यों नहीं हटा दिया गया.
और आज भी भाजपा में अल्पसंख्यक सेल क्यों है ! क्यों नहीं उसे भंग कर दिया जाता !


mukhdhara yani sangh ki dhara !!
hai na sahab !!

एस.एन. विनोद ! said...

क्षमा करेंगे, आप किसी भ्रम के शिकार प्रतीत होते हैं। संघ या किसी भी अन्य संगठन से मेरा दूर-दूर का भी रिश्ता नहीं। मैं आपकी इस बात से इत्तेफाक रखता हूं कि मुस्लिमों को अल्पसंख्यक कहना ठीक नहीं। यही वह विभाजक रेखा है जो मुस्लिम समुदाय को राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग रखने में सहायता करती है। ऐसा नहीं होना चाहिए। राष्ट्र की मुख्यधारा वह है जिसमें जाति, धर्म या संप्रदाय से प्रथक सभी एक भारतीय की तरह कदमताल करते हैं। जिसदिन मुस्लिम समुदाय 'वोट बैंकÓ के बाड़े को तोड़ देंगे, देश में क्रांतिकारी परिवर्तन हो जाएगा। राजनीतिक और राजदल उनका राजनीतिक इस्तेमान नहीं कर पाएंगे। यह भारत देश किसी एक धर्म-समुदाय की बपौती नहीं है। जितना हक देश पर हिंदुओं का है उतना ही मुसलमानों का भी।
एस.एन. विनोद

लोकेन्द्र सिंह said...

जब तक देश में सबके लिए एक कानून लागू नहीं होगा समानता की बात नहीं हो सकती। गरीबी और अल्पसंख्यक कह कर एक समुदाय को जिस तरह से तमाम सुविधाएं दी जा रही हैं वे सरासर गलत हैं। देश में सभी को समान अवसर मिलना चाहिए। तुष्टिकरण से जब तक नेता बाज नहीं आएंगे तब तक तो कुछ नहीं होने वाला ये पक्की बात है। मुस्लिमों को गलत बात के विरोध में आना होगा और अच्छी बात के समर्थन में। यथा वन्देमातरम इस देश का राष्ट्रगीत है उसका सम्मान सब को करना चाहिए। धर्म के नाम पर उसका अपमान सरासर गलत है।
कपटी लोगों का धर्म इस्लाम
चर्च में जलाई जाएंगी कुरान
खबर है कि फ्लोरिडा के एक चर्च में ११ सितंबर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुरान को जलाने (इंटरनेशनल बर्न ए कुरान डे) के दिवस के तौर पर मनाया जाएगा। न्यूयॉर्क के समाचार पत्रों के अनुसार ११ सिंतबर २००१ को हुए आतंकी हमले की घटना की नौवीं बरसी पर चर्च ने यह कदम उठाने का फै सला लिया है। फ्लोरिडा के 'द डोव वल्र्ड आउटरीच सेंटरÓ में ९/११ की बरसी पर एक शोक सभा आयोजित की जाएगी। जिसके तहत इस्लाम को कपटी और बुरे लोगों का धर्म बताकर कुरान को जलाया जाएगा।
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