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Friday, November 5, 2010

साम्प्रदायिकता को हवा न दे कांग्रेस!

देश सावधान हो जाए। विशेषकर युवा पीढ़ी। देश को सांप्रदायिकता की आग में झोंकने और फिर टुकड़े करने की साजिश रची जा रही है। ठीक आजादी के पूर्व की भांति। 'फूट डालो राज करोÓ की ब्रिटिश (कु) नीति को कब्र से निकाल संजीवनी पिलाई जा रही है। इस बार कोई गोरा ब्रिटिश हाथ नहीं, भारतीय हाथ इसे अंजाम दे रहे हैं। धिक्कार है ऐसी भारतीय नस्लों को जो अपनी ही धरती के खिलाफ रचे जा रहे षडय़ंत्र में शामिल हैं- सिर्फ तात्कालिक निज स्वार्थ पूर्ति के लिए। जरा इन घटना विकासक्रमों पर गौर करें। राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में भारतीय करदाताओं के 70,000 करोड़ रुपये का घोटाला। मुंबई में गठित आदर्श सोसाइटी में आबंटन की प्रक्रिया में सैनिकों की विधवाओं, उनके पीडि़त परिवारों के बदन से उनके हिस्से के कपड़े छिन लेने की शर्मनाक घटना। हजारों करोड़ रुपये का 2-जी स्पेक्ट्रम आदि घोटालों की घटनाओं पर सत्तारूढ़ कांगे्रस का मौन। किन्तु उसी कांग्रेस द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आतंकवादी संगठन घोषित करना! अयोध्या की विवादित जमीन (राममंदिर-बाबरी मस्जिद) के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की मूल भावना को हाशिये पर रख कांगे्रस द्वारा यह घोषित करना कि मस्जिद विध्वंस करने वालों को माफी नहीं मिल जाती! यह प्रचारित करना कि फैसले से मुसलमानों की भावना आहत हुई है! यह भी प्रचारित करना कि उच्च न्यायालय का दरवाजा खुला है! जब फैसले को पूरा देश सराह रहा था, कांगे्रस द्वारा फैसले के खिलाफ मुस्लिम संगठनों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने के लिए उकसाना! और अब जबकि पूरा देश घोर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कांगे्रस नेतृत्व से दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की अपेक्षा कर रहा था, उन्हें दंडित किए जाने की प्रतीक्षा कर रहा था, कांग्रेस नेतृत्व ने इन सभी पापों पर परदा डाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आतंकवादी और भारतीय जनता पार्टी को सांप्रदायिक साबित करने की मुहिम छेड़ दी! लानत है ऐसी सोच पर और लानत है ऐसे तत्वों पर। बात इतनी सरल भी नहीं। अमीरों के लिए एक इंडिया और गरीबों के लिए दूसरा भारत की बातें करने वाले कांगे्रस महासचिव राहुल गांधी बाबर से लेकर कलावती तक की बातें करते हैं, साथ ही भारत में प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिमी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को तराजू के एक ही पलड़े में रख देते हैं। गांव-गांव में पहुंचकर गरीबों की सुध लेने का ढोंग करते हैं, ट्रेन के साधारण डिब्बे में यात्रा कर स्वयं को गरीब भारत का हिस्सा बताने की कोशिश करते हैं। किन्तु जब बात राष्ट्रीय एकता-अखंडता की आती है तब सांप्रदायिकता और आतंकवाद उनके सिर चढ़ बोलने लगता है। यह देश के लोकतंत्र के खिलाफ एक गहरी साजिश है। केंद्रीय सत्ता का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस नहीं चाहती कि राष्ट्रीय स्तर पर उसका कोई विकल्प तैयार हो। विकल्प के रूप में केंद्रीय सत्ता का नेतृत्व कर चुकी भारतीय जनता पार्टी को जमींदोज करने की चाल चली जा रही है। लोकतंत्र में स्वस्थ राजनीतिक प्रतिस्पर्धा का तो स्वागत है किन्तु अलोकतांत्रिक देश विरोधी हथकंडों का कदापि नहीं। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की विगत मंगलवार को हुई बैठक की कार्यवाही हर दृष्टि से देश के लोकतांत्रिक बुनियादी ढांचे को आहत करने वाली है। अयोध्या पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के बाद सांप्रदायिक सौहाद्र्र के पक्ष में देश ने जो एकजुटता दिखाई थी, उसे तोडऩे की कोशिश कर रही है कांगे्रस। क्या यह वही कांगे्रस है जिसे आगे कर महात्मा गांधी ने भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराया था? क्या यह वही कांग्रेस है जिसने डा. राजेंद्र प्रसाद जैसा प्रथम राष्ट्रपति, पं. जवाहरलाल नेहरू जैसा प्रथम प्रधानमंत्री, सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसा गृहमंत्री और डा. भीमराव आंबेडकर जैसा संविधान का शिल्पकार दिया था? राजनीतिक दल के रूप में सत्ता प्राप्ति के लिए होड़ तो वह करे किन्तु सांप्रदायिकता और अलगाववाद की नाव पर चढ़ सत्ता की वैतरणी पार करने की कोशिश वह न करे।

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