Wednesday, November 10, 2010
अब एक मजबूत प्रधानमंत्री !
शाबाश मनमोहन सिंह, शाबाश....!!! कम-अज-कम (फिलहाल) अब कोई मनमोहन सिंह को एक 'कमजोर प्रधानमंत्री' के रुप में तो संबोधित नहीं ही करेगा। विगत सोमवार को नई दिल्ली में जब मनमोहन सिंह अमेरिकी राष्टपति बराक ओबामा के साथ मीडिया से रू-ब-रू थे तब उनका सख्त दो टूक लहजा एक मजबूत देश के मजबूत प्रधानमंत्री की मौजूदगी को चिन्हित कर रहा था। मनमोहन सिंह के वे आलोचक भी भौचक्क रह गए जो प्रधानमंत्री पर अमेरिका के समक्ष नतमस्तक घुटने टेकने का आरोप लगाते रहे हैं। विनिवेश से लेकर परमाणु उर्जा तथा अनेक राजनीतिक व राजनयिक मामलों में मनमोहन सिंह अमेरिका के सामने गिडगिड़ाते नजर आते हैं। इस पाश्र्व में बराक ओबामा की भारत यात्रा के परिणाम को लेकर आलोचक-समीक्षक बहुत आश्वस्त नहीं थे। लेकिन विगत सोमवार ने एक नए मनमोहन सिंह को पेश किया। मनमोहन सिंह ने जब अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ रुख कर टिप्पणी की कि, ''मिस्टर प्रेसिडेंट, हम भारतीय नौकरी चोरी नहीं करते!'', तब ओबामा ही नही टेलीविजन पर कार्यवाही को देखनेवाला प्रत्येक भारतीय पहले तो स्तब्ध फिर प्रसन्न उछल पड़ा। पाकिस्तान और आतंकवाद के मुद्दे पर भी प्रधानमंत्री ने कह डाला कि आतंकवाद और बातचीत दोनों एकसाथ नहीं चल सकता। निश्चय ही मनमोहन सिंह ने राष्ट्रीय भावना को प्रदर्शित किया। इसमें दो राय नहीं कि भारत पूरे संसार के लिए अब एक अपरिहार्य व बड़ी आर्थिक और सामरिक शक्ति बन चुका है। उसकी उपेक्षा अब संभव नहीं। बावजूद इसके अगर शक्तिशाली अमेरिका चीन तथा तुलनात्मक दृष्टि से कमजोर पाकिस्तार अगर रह-रहकर हमें चुनौती देते हैं तो सिर्फ हमारी बटी हुई ताकत के कारण! केंद्र में खिचड़ी सरकार की जरुरतों के मद्देनजर नीतियों के साथ किए जा रहे समझौते हमें कमजोर बना देते हंै। नितियों की विफलता के लिए स्वयं शासक मिलीजुली सरकार के साझा कार्यक्रमों को दोषी ठहराने में नहीं हिचकते। एक मजबूत व स्थिर केंद्र सरकार की अपरिहार्यता के बावजूद खंडित जनादेश इस जरुरत को पूरा नहीं होने देते। अब समय आ गया है, जब मतदाता इस विडंबना को समझ निर्णायक कदम उठाएं।
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1 comment:
ये नूराकुश्ती है, आई-वाश है, दिखावा है, पर्दे के आगे का मंजर है... कहां हैं विनोद साहब.. एक कला होती है जिसमें बोलता कोई है और ओंठ किसी के हिलते हैं...
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