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Sunday, January 23, 2011

प्रधानमंत्रीजी! धिक्कार है आपके भारतीय होने पर!

क्या हो गया है हमारे देश के विद्वान प्रधानमंत्री को! क्या वे किसी दबाव में हैं? किसी अदृश्य ताकत के हाथों की कठपुतली तो नहीं बन गए हैं? ऐसे असहज सवाल से आज पूरा देश रूबरू है। शंका के आधार मौजूद हैं। भला भारत जैसे लोकतांत्रिक देश का प्रधानमंत्री अपने ही देश के एक प्रदेश में राष्ट्रध्वज तिरंगा फहराने के उपक्रम को 'राजनीति' से कैसे जोड़ सकता है? गणतंत्र दिवस पर देश के एक भाग में कोई तिरंगा फहराना चाहता है तो वह विभाजनकारी एजेंडा कैसे हो गया? प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को इसका जवाब देना होगा। वे स्पष्ट करें कि उनकी पार्टी और सरकार जम्मू-कश्मीर को भारत का अंग मानती है या नहीं? यह जिज्ञासा दु:खदायी तो है किंतु इसके लिए प्रेरित स्वयं प्रधानमंत्री ने किया है। भारतीय जनता पार्टी की युवा शाखा द्वारा श्रीनगर के लाल चौक पर गणतंत्र दिवस के दिन तिरंगा फहराने के कार्यक्रम पर आपत्ति जड़ प्रधानमंत्री ने राष्ट्रविरोधी अलगाववादी ताकतों का साथ दिया है। डॉ. मनमोहन सिंह जैसा प्रधानमंत्री पद पर आसीन विद्वान व्यक्ति अनजाने में तो ऐसी टिप्पणी नहीं कर सकता। सो इन्हें संदेह का लाभ भी नहीं मिल पाएगा। तिरंगा फहराने के कार्यक्रम को 'राजनीतिक फायदा' निरूपित कर उन्होंने वस्तुत: स्वयं राजनीति की हैं। जम्मू-कश्मीर के मामले में संयम बरतने की उनकी सलाह प्रधानमंत्री पद की गरिमा के विपरित है। इस क्रम में वे अपनी पार्टी द्वारा बार बार देश की एकता और अखंडता के पक्ष में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कुर्बानी की याद दिलाए जाने की बात भूल गए। वे भूल गए कि उनका प्रदेश पंजाब जब अलगाववादी आतंक की आग में झुलस रहा था तब इंदिरा गांधी ने कड़े कदम उठाते हुए अलगाववादियों को कुचल डाला था। परिणति के रूप में उन्हें अपने प्राण गंवाने पड़े थे। शहीद हो गई थीं वे। फिर आज प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों के समक्ष घुटने क्यों टेक रहे हैं। तिरंगा फहराने का विरोध कर वे जम्मू कश्मीर को भारत से अलग चिन्हित कर रहे हैं। निश्चय ही इससे पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों की बांछें खिल गई होंगी। यही तो चाहते हैं वे। क्या प्रधानमंत्री चाहते हैं कि जम्मू-कश्मीर अंतरराष्ट्रीय विवाद का मुद्दा बन कालांतर में भारत के एक और विभाजन का कारण बने। अगर प्रधानमंत्री की ऐसी नीयत है तब न तो उन्हें प्रधानमंत्री बने रहने का हक है और न ही भारतीय। क्या वे ऐसी अवस्था के लिए तैयार हैं? अगर हां, तो वे तत्काल प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर किसी और देश में शरण ले लें। अगर नहीं, तो वे देश से क्षमा मांग ले और तिरंगा फहराए जाने का विरोध करने वाले जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की सरकार को तुरंत बर्खास्त कर दें। उमर के पिता फारूख अब्दुल्ला को केंद्रिय मंत्रिमंडल से निकाल बाहर कर दोनों पिता-पुत्र को गिरफ्तार कर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाएं। जब विनायक सेन देश के नक्सवादियों से संपर्क रखने के कारण राष्ट्रद्रोही घोषित कर दंडित किए जा सकते हैं, तब विदेशी आतंकवादियों के मनसूबों का साथ देने वाले क्यों नहीं? अगर ऐसा नहीं हुआ, तो क्षमा करेंगे, देशवासी धिक्कारेंगे प्रधानमंत्री भारतीय होने पर!