centeral observer

centeral observer

To read

To read
click here

Monday, July 2, 2012

डॉ. कलाम का सच, डॉ. कलाम का झूठ!


भारतीय राजनीत और समाज का यह कैसा विद्रूप चेहरा जो डॉ. कलाम जैसे सर्वमान्य व्यक्तित्व को कटघरे में खड़ा कर दे! डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम न केवल देश के पूर्व राष्ट्रपति हैं बल्कि, अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त वैज्ञानिक भी हैं। राष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल को विवादों से दूर स्वच्छ-निर्मल निरूपित किया जाता रहा है। कोई आश्चर्य नहीं कि देश का बहुमत उन्हें फिर राष्ट्रपति के रूप में देखने का इच्छुक था। वही डॉ. कलाम आज अगर विवादों के घेरे में हैं तो क्यों ? दु:खद तो यह कि इस दु:स्थिति के लिए स्वयं डॉ. कलाम जिम्मेदार हैं। ताजा तथ्य, जो स्वयं डॉ. कलाम ने उपलब्ध करवाये हैं,  इसी बात की चुगली कर रहे हैं।
डॉ. कलाम का यह कहना कि सन् 2005 में जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार विधानसभा भंग करने के निर्णय को असंवैधानिक करार दिया था, तब उन्होंने स्व-विवेक की जगह देश हित को तरजीह दी थी। ऐसा उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 'गिड़गिड़ाने' पर किया था। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से विचलित राष्ट्रपति कलाम ने तब राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने का मन बना लिया था। अपना त्याग पत्र भी लिख चुके थे। लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 'मिन्नत' की कि अगर वे इस्तीफा देंगे तब सरकार गिर जाएगी। राष्ट्रपति कलाम मान गए । क्या कलाम का वह कदम सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का अनादर नहीं था? जब सर्वोच्च न्यायालय ने बिहार विधानसभा भंग करने की कार्रवाई असंवैधानिक बताया था तो विधानसभा भंग करने के आदेश पर विदेश की धरती पर अर्धरात्रि में हस्ताक्षर करने वाले कलाम को पद पर बने रहने का कोई हक नहीं था। कम से कम नैतिकता की तो यही मांग थी। सरकार गिरती, तो गिरती। बहुमत होने के कारण सरकार तो कांग्रेस नेतृत्व के संप्रग की ही बनती। हां, प्रधानमंत्री बदल जाता । लेकिन, तब डॉ. कलाम अपनी ख्याति के अनुकूल आदर्श पुरुष बन जाते। डॉ. कलाम वहां चूक गए । अपनी पुस्तक में उक्त घटना का वर्णन कर डॉ. कलाम 'नायक' नहीं 'खलनायक' बन गए।
डॉ. कलाम अपनी ताजा पुस्तक 'टर्निंग प्वाइंट्स' में यह भी खुलासा करते हैं कि सन 2004 में उन्होंने सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनने से नहीं रोका था। राजनीतिक दलों के भारी दबाव के बावजूद वे सोनिया को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाने के लिए पूरी तरह तैयार थे। ध्यान रहे, तब यह बात सामने आई थी कि कलाम के विरोध के कारण सोनिया ने 'त्याग' करते हुए मनमोहनसिंह को प्रधानमंत्री बनाया था। हमेशा विवादस्पद मुद्दों को उठा चर्चा में रहने वाले सुब्रमह्ण्यम स्वामी के अनुसार कलाम ने गलतबयानी की है। स्वामी का दावा है कि कलाम ने ही सोनिया को प्रधानमंत्री बनने से रोका था। स्वामी ने कलाम को चुनौती दी है कि वे17 मई 2004 को सोनिया को लिखी चिट्ठी को सार्वजनिक करें, जिसमें उन्होंने सोनिया के साथ पूर्व निर्धारित मुलाकात को रद्द करते हुए बाद में प्रधानमंत्री के मुद्दे पर चर्चा के लिए बुलाया था। स्वामी यहां तक दावा करते है कि उस दिन स्वयं कलाम ने उन्हें बताया था कि सोनिया गांधी के प्रधानमंत्री बनने में कानूनी अड़चन है। अब, या तो डॉ. कलाम झूठ बोल रहे हैं या फिर डॉ. सुब्रमह्ण्यम स्वामी। एक ओर देश के पूर्व राष्ट्रपति, दूसरी ओर प्रतिष्ठित हार्वर्ड यूनिर्वसिटी के पूर्व प्रोफेसर! झूठ और सच के इस भंवर जाल में कौन झूठा और कौन सच्चा? इसका फैसला एक न एक दिन जनता कर ही देगी।

No comments: