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Monday, July 30, 2012

राहुल पर न्यौछावर लोकतंत्र!


'...विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र...! गौरवशाली लोकतंत्र...!! सफल लोकतंत्र !!!
देश-विदेश में गर्व के साथ इन शब्दों को प्रचारित - प्रसारित किया जाता है। सीना तान कर बताया जाता है कि भारत वह देश है, जहां पिछले छह दशक से अधिक समय से संसदीय लोकतंत्र सफलता पूर्वक चल रहा हैं। व्यस्क मताधिकार द्वारा जनता के द्वारा चुने हुए प्रतीनिधि सत्ता संचालित करते हैं। नि:संदेह ऐसा ही होता हैं। किंतु, यह सब कुछ कागजों पर। व्यवहार के स्तर पर ,लोकतंत्र की आड़ में  छल और सिर्फ छल होता है। विशेषकर जब शीर्ष पद अर्थात प्रधानमंत्री के चयन की बात आती है। तब लोकतांत्रिक पद्धति से निर्वाचन नहीं बल्कि नेतृत्व द्वारा 'नामित' किए जाने की परंपरा चल पड़ी है। राजतंत्र में जारी वंशवाद की परंपरा के अनुरूप लोकतंत्र के साथ छल और बलात्कार की बेशर्म गाथा है यह। छल इसलिए कि सब कुछ लोकतंत्र के आवरण में, बलात्कार इसलिए कि परिवार विशेष में तैयार किसी 'खास' की तयशुदा ताजपोशी! बानगी देखना है, तो देख लें- '.....राहुल गांधी को इसलिए केंद्रीय मंत्रि मंडल में शामिल हो जाना चाहिए ताकि वे सरकारी कामकाज के अनुभव प्राप्त कर भविष्य में प्रधानमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाल सके'। नेहरू-गांधी परिवार के खुशामदी कांग्रेसी नेता मंत्री खुलेआम ऐसा बयान दे रहे हैं। क्या यह लोकतंत्र क ी अवधारणा के साथ बलात्कार नहीं? लोकतांत्रिक देश के साथ छल नहीं। बिल्कुल ऐसा ही है। देश के अभिभावक दल के रूप में परिचित कांगे्रस दल की ओर से ऐसे छल पर देश का लोकतंत्र हमेशा शर्मिंदा होता आया है। चाहे देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के चयन का मामला हो, उनकी पुत्री इंदिरा गांधी के चयन का मामला हो या फिर इंदिरा-पुत्र राजीव गांधी की प्रधानमंत्री पद पर नियुक्ति का मामला हो, हर बार देश के लोकतंत्र के साथ छल किया गया-कपट-खेल खेला गया। और अब वंशवाद के ताजा प्रतीक राहुल गांधी के लिए भी ऐसे ही 'नाटक' के मंचन की तैयारी शुरू हो गई है। बिल्कुल एक 'युवराज' की ताजपोशी की है यह तैयारी! क्या यह लोकतंत्र की मूल भावना के साथ खिलवाड़ नहीं? दु:ख और शर्म इस बात का कि यह सब कुछ होगा लाकेतंत्र के नाम पर। जब कभी राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने का निर्णय लिया जाएगा, लोगों की आंखों में धूल झोंकते हुए 'लोकतंत्र' का खेल खेला जाएगा। संसदीय दल की बैठक होगी, राहुल का नाम प्रस्तावित होगा और सर्व सम्मान से कथित 'निर्वाचन' की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। राष्ट्रपति को अग्रसारित अनुशंसा पत्र में कहा जाएगा कि सर्व सम्मति से प्रधानमंत्री के लिए राहुल गांधी के नाम मुहर लगाई गई है। लोकतंत्र के नाम पर वंशवाद को सींचित करने की ऐसी परंपरा पर क्या कभी विराम लग पाएगा? यह आश्चर्यजनक है कि लगभग सवा सौ करोड़ आबादी वाले देश में देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस को नेतृत्व के लिए सिर्फ नेहरू-गांधी परिवार के आंगन में जाना पड़ता है। अगर परिवार की ओर से कोई अदभूत क्षमता या अतुलनीय नेतृत्व वाला कोई सुपात्र सामने लाया जाता है तब किसी को भी आपत्ति नहीं होगी। वंश के नाम पर भी किसी को आपत्ति नहीं होगी। वंश के नाम पर किसी योग्य पात्र को अस्वीकार करना गलत होगा। लेकिन यहां तो 'पात्र' ही लचर है, कमजोर है। कतिपय कांग्रेस नेताओं की ओर से राहुल के पक्ष में उठाई जाने वाली आवाज असुरक्षा की बुनियाद पर चाटुकारिता की अति है। समझ में नहीं आता कि विशाल कांग्रेस के अंदर इन्हें कोई और 'सुयोग्य' पात्र क्यों नहीं मिल रहा। अगर कांग्रेस दल सचमुच लोकतांत्रिक है तब वह 'वंश' के वाड़े से बाहर निकल कुशल, योग्य पात्र की तलाश करे । कांग्रेस के पतन को रोकने का यह एक तरीका होगा।
सिर्फ नेता के चयन में ही कांग्रेस लोकतंत्र को नहीं रौंद रही। अन्य मामलों में भी उसने तानाशाही अलोकतांत्रिक रवैया अपना रखा है। भ्रष्टाचार के विरुद्ध और लोकपाल की नियुक्ति को लेकर चलाए जा रहे अन्ना हजारे के आंदोलन के प्रति कांग्रेस का रवैया हर दृष्टि से अहंकार व तानाशाही की श्रेणी का है। एक केंद्रीय मंत्री का वक्तव्य कि, '.....अन्ना टीम अपनी मांगों की पूर्ति के लिए संयुक्त राष्ट्र में जाए', देश के लोकतंत्र का अपमान है। टिप्पणीकार मंत्री इस सचाई को कैसे भूल गए कि वे संयुक्त राष्ट्र द्वारा नियुक्त मंत्री नहीं बल्कि भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा नियुक्त मंत्री हैं।
मंत्री का बोल ठीक वैसा ही है जैसा 70 के दशक में आपात काल के पूर्व जयप्रकाश आंदोलन को लेकर कांग्रेस के मंत्री बोला करते थे। तब कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री ने आंदोलन के प्रणेता जयप्रकाश नारायण के लिए टिप्पणी की थी कि 'उन्हें (जेपी) असली 'मुकाम' पहुंचा दिया जायेगा।' देश जानता है, तथ्य इतिहास में दर्ज हो चुका है कि जनता ने तब कांगे्रस को ही असली 'मुकाम' पर पहूॅंचा दिया था। ऐतिहासिक सबक दी थी। क्या कांग्रेस इतिहास की पुनरावृत्ति चाहती है?

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