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Thursday, May 5, 2016

राम नाईक, गोविंदा और राजनीति का अपराधीकरण !


क्या राम नाईक झूठ बोल रहे हैं? राजनीतिक विरोधी भले ही उत्तर 'हां' में दें, मैं पूरे विश्वास के साथ अपना उत्तर 'ना' में अंकित कर रहा हूं। कानूनी अखाड़े में जरूरी प्रमाण भले ही राम नाईक उपलब्ध न करा पाएं, उनके शब्दों को चुनौती नहीं दी जा सकती। जानकार जब अपना हृदय टटोलेंगे तो वहां से भी उत्तर राम नाईक के आरोप की पुष्टि करनेवाले ही मिलेंगे।
वैसे महाराष्ट्र के एक दिग्गज नेता, वर्तमान में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल, राम नाईक अपने अनेक वक्तव्य को लेकर विवादों में घिरते रहे हैं। किंतु सहज-सरल राम नाईक पर कोई भी झूठ बोलने का आरोप नहीं लगा सकता। आलोच्य प्रसंग में भी नहीं।
राम नाईक ने अपनी ताजा प्रकाशित पुस्तक 'चरैवेति-चरैवेति' में आरोप लगाया है कि उत्तर मुंबई लोकसभा सीट से चुनाव में उन्हें हराने के लिए कांगे्रस के अभिनेता उम्मीदवार गोविंदा ने 'अंडरवल्र्ड डॉन' दाऊद इब्राहिम और बिल्डर हितेंद्र ठाकुर की मदद ली थी। उल्लेखनीय है उस चुनाव में गोविंदा ने राम नाईक को 11,000 मतों से पराजित किया था। स्वाभाविक रूप से कांग्रेस और स्वयं गोविंदा ने आरोप को झूठा करार दिया है। कांग्रेस का कहना है कि अपनी पुस्तक की बिक्री में इजाफा करने के लिए राम नाईक ने सनसनी का सहारा लिया है। मैं नहीं समझता कि धीर-गंभीर राम नाईक पुस्तक की बिक्री के लिए ऐसे हथखंडे अपना सकते हैं।
राम नाईक के इस खुलासे ने एक बार फिर राजनीति में नेताओं और अपराधियों के बीच गठजोड़ पर बहस छेड़ दी है। मुंबई में ऐसे गठजोड़ को लेकर नेताओं पर आरोप पहले भी लगते रहे हैं। स्वयं मराठा छत्रक शरद पवार को भी ऐसे आरोपों से जूझना पड़ा हैं। पवार पर भी 'अंडरवर्ल्ड' बल्कि दाऊद के साथ संबध होने के आरोप लग चुके हैं। बताया जाता है कि 'वोरा आयोग' ने अपनी 'रिपोर्ट' में ऐसे संबधों की पुष्टि की थी। आयोग ने राजनीतिकों और  'अंडरवर्ल्ड' के बीच संबधों की पड़ताल की थी। चूंकि आयोग की 'रिपोर्ट' कभी सार्वजनिक नहीं की गयी दावे के साथ कुछ कहा नहीं जा सकता, किंतु चर्चा जोरों पर रही कि शरद पवार के दाऊद के साथ संबधों की पुष्टि हुई थी। मुंबई में तब एक कथित घटना की चर्चा जोर-शोर से हुई थी। जिसमें पवार और दाऊद के संबंधों को लेकर चटखारे लिए गए थे। घटना 90 के दशक के आरंभ की है जब शरद पवार भारत के रक्षामंत्री थे। कहते हैं कि एक पांच सितारा होटल में तब के एक बड़े बिल्डर सपत्नीक रात्रि भोजन पर गए थे। तब व्याप्त चर्चा के अनुसार होटल के लॉबी में एक व्यक्ति ने बिल्डर की पत्नी को छेड़ दिया। स्वाभाविक रुप से बिल्डर ने आवेश में उस व्यक्ति का कॉलर पकड़ लिया। तत्काल चारों और से कई 'स्टेनगन' धारियों ने बिल्डर और उसकी पत्नी को निशाने पर ले लिया। बताते हैं वह व्यक्ति और कोई नहीं बल्कि दाऊद का भाई इकबाल था। होटल प्रबंधन ने बीच-बचाव कर मामले को शांत किया। उक्त बिल्डर पत्नी के साथ वापस घर चले गए। घर पर उन्हें एक फोन आता है। फोन पर बिल्डर को निर्देश मिलता है, वह सुबह आठ बजे अपनी पत्नी को लेकर 'इकबाल साहब' के पास पहुंच जाए, अन्यथा दोनों को गोली मार दी जाएगी। बिल्डर के पवार के साथ नजदीकी संबंध थे। उसने पवार को इस घटना की जानकारी दी। लेकिन शरद पवार अर्थात भारत के रक्षामंत्री भी लाचार साबित हुए, बिल्डर की मदद नहीं कर पाए। कहते हैं कि उक्त बिल्डर निर्धारित समय पर इकबाल के पास पहुंचा, माफी मांगी, एक बड़ी राशि का भुगतान किया और तब जाकर उन्हें मुक्ति मिली।
नेताओं और  'अंडरवर्ल्ड' के बीच रिश्तों तथा  'अंडरवर्ल्ड' के दबदबे को बताने के लिए यह एक उदाहरण काफी है। बताते हैं कि 'वोरा आयोग' की 'रिपोर्ट' में नेताओं और  'अंडरवर्ल्ड' के बीच मधुर रिश्तों की विस्तार से चर्चा की गई है। अनेक बार रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने की  मांग तो उठी, किंतु रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई। यह अपने आप में एक शोध का विषय है कि जिस रिपोर्ट को जनहित में सार्वजनिक किया जाना था उस पर स्वयं विभिन्न सरकारें क्यों कुंडली मार बैठी हैं?
राम नाईक के दावे को झुठलाने की कोशिश करनेवाले पहले अपने गिरेबान में झांके। क्या वे इस बात से इंकार कर सकते हैं कि मुंबई पर वास्तविक नियंत्रण आज भी 'अंडरवर्ल्ड' का ही है?  'अंडरवर्ल्ड' के साथ नेताओं की सांठगांठ के किस्से आम हैं। पुलिस प्रशासन की सहभागिता भी हमेशा चर्चा का विषय बनती रही है।  राजनीति में भ्रष्टाचार और अपराधीकरण का मेल अगर खतरनाक साबित हो रहा है, तो दोषी वह 'व्यवस्था' है जो वर्तमान राजनीति की देन है और जिसे नकारात्मक ऊर्जा राजनीतिक उपलब्ध कराते रहे हैं। जनप्रतिनिधि के रुप में संविधान की शपथ लेने वाले ये राजनीतिक अपराध और बाहुबलियों को संरक्षण देते समय भूल जाते हैं कि भ्रष्टाचार और अपराधीकरण का बेरोजगारी, अशिक्षा, क्षीण स्वास्थय सेवाओं आदि जैसी गंभीर समस्याओं पर सीधा प्रतिकूल असर पड़ता है। राजनीति के इस अपराधीकरण ने प्रशासन और पुलिस को अपने शिकंजे में कस इतना पंगु बना डाला कि  'अंडरवर्ल्ड' के रुप में एक पृथक साम्राज्य निर्मित हो गया। बंबई अर्थात मुंबई इसका एक गंभीर शिकार हुआ है। राम नाईक गलत नहीं हैं। मुझे आज भी याद है भारत के पूर्व कैबिनेट सचिव डी. जी. देशमुख की वह टिप्पणी, जिसमें उन्होंने इस महानगर को लेकर गंभीर चेतावनी दी थी। देशमुख ने टिप्पणी की है कि, ' यदि गैंगों (गिरोह) द्वारा की जा रही हत्याओं को रोकने के लिए शीघ्र सख्त कदम नहीं उठाये गये तो आशंका है कि मुंबई 30 के दशक के शिकागो जैसा बन जाएगा। उस समय इस अमेरिकी शहर पर माफिया गिरोह राज करते थे। हममें से कई लोग तो हमेशा सोचते रहे हैं कि मुंबई सबसे सुरक्षित शहर है। यहां की पुलिस की गौरवपू़र्ण परंपरा और प्रतिष्ठा रही है, फिर इसे क्या हो गया कि यहां माफिया गैंग सरेआम लोगों की हत्या कर रहे हैं।  इसे कई कारण है मगर सबसे महत्पवूर्ण है राजनीति का अपराधीकरण'।
फिर राम नाईक गलत कैसे हो सकते हैं। बगैर किसी पुख्ता जानकारी के राम नाईक प्रसिद्ध अभिनेता गोविंदा पर ऐसे आरोप नहीं लगा सकते। प्रत्युत्तर में गोविंदा जिस 'जनसमर्थन' की दुहाई दे चुनाव में जीत का दावा कर रहे हैं, वह लचर है। अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं जिसमें जेलों में बंद बाहुबली चुनाव लड़ते रहे हैं और विशाल बहुमत से जीतते रहे हैं। वह बहुमत बाहुबली की लोकप्रियता अथवा जनसमर्थन को चिन्हित नहीं करता बल्कि उसके आतंक अथवा भय की परीणति को चिन्हित करता है। विजय हासिल करने वाले बाहुबलियों के दावों से इतर सच यही है कि बेचारा आम मतदाता उनके कहर के डर से अपना मत उसके पक्ष में डाल देता है। सच यही है। गोविंदा की लोकप्रियता संबंधी लचर दलील को मुंबईवासी स्वीकार नहीं करेंगे। समस्या अत्याधिक गंभीर व खतरनाक है। राम नाईक ने विषय छेड़ा है तो उन्हें चुनौती देने की जगह निदान के उपाय ढूंढे जाने चाहिए। 

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