कभी बंगाल की बाघिन के रूप में विख्यात केन्द्रीय रेल मंत्री ममता बैनर्जी गलत नहीं हैं। उनका यह आरोप बिल्कुल सही है कि बंगाल में सरकार प्रायोजित हिंसा हो रही है। ममता अगर इसके लिए केन्द्र सरकार को भी दोषी ठहरा रहीं हैं तो बिल्कुल ठीक ही। यह एक विडंबना है कि एक ओर तो केन्द्र सरकार छह राज्यों में माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन ग्रीन हंट चलाकर उनका सफाया करना चाहती है, वहीं दूसरी ओर तमाम सबूतों की मौजूदगी के बावजूद बंगाल के लालगढ़ को सेना के हवाले करने से कतरा रही है। बंगाल की माक्र्सवादी सरकार नियोजित तरीके से लालगढ़ में पुलिस ऑपरेशन के नाम पर अपनी जमीन तैयार कर रही है। वहां केन्द्र सरकार की शिथिलता को फिर क्या कहा जाए? किसी सफाई की जरूरत नहीं। लालगढ़ में जारी गतिविधियां प्रमाण हैं कि बंगाल सरकार के मंसूबे को लालगढ़ में अंजाम देने के लिए केन्द्र का समर्थन मिल रहा है।
मां, माटी और माणुष की राजनीति करने का दावा करनेवाली ममता बैनर्जी के इस कथन को चुनौती नहीं दी जा सकती कि बंगाल में माओवादियों और माक्र्सवादियों की मिलीभगत से प्रतिदिन हिंसा हो रही है। ममता की तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की हत्याएं हो रही हैं। इन हत्याओं पर केन्द्र सरकार का मौन क्या रहस्यमय नहीं? साफ है कि केन्द्र सरकार माक्र्सवादियों के सामने पहले की भांति अभी भी नतमस्तक है। शायद यह गठबंधन सरकार की मजबूरी है। डॉ. मनमोहन सिंह की नेतृत्ववाली पिछली केन्द्र सरकार सत्ता में बनी थी तो माक्र्सवादियों के समर्थन से। वैसे मनमोहन सिंह का नाम सिर्फ तकनीकी तौर पर ही लिया जा सकता है। यह सर्वविदित है कि सत्ता का असली केन्द्र प्रधानमंत्री कार्यालय न होकर 10,जनपथ अर्थात सोनिया गांधी का आवास था-आज भी है। सन् 1969 में जब इंदिरा गांधी की सरकार अल्पमत में आ गई थी तब कम्युनिस्ट के समर्थन से ही उनकी सरकार बची थी। आपातकाल के दौरान भी जब पूरा देश इंदिरा गांधी शासन के खिलाफ एकजुट हो कुर्बानियां दे रहा था तब इंदिरा को कम्युनिस्टों का समर्थन प्राप्त था। ठीक उसी तरह जैसे कम्युनिस्टों ने आजादी की लड़ाई के समय ब्रिटिश शासकों का साथ दिया था। यह तो भारत है जो अपने ऊपर हुए हर प्रताडऩा को भूल जाता है। 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया था तब माक्र्सवादियों की चीन समर्थक भूमिका को क्या कोई झुठला सकता है। पीड़ा होती है इस तथ्य को रेखांकित करने में कि तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की मौत का कारण भी ऐसे ही सदमे थे। लेकिन गांधी परिवार किन्हीं अज्ञात कारणों से कम्युनिस्टों को शरण देता रहा और कम्युनिस्ट शरण लेते रहे।
बंगाल में माओवादियों के मंसूबे को सिंचित करनेवाली माक्र्सवादी सरकार को बर्दाश्त कर केन्द्र भविष्य के लिए खतरा मोल ले रहा है। ममता बैनर्जी केन्द्र में संप्रग सरकार में शामिल हैं। उनकी बातों को तरजीह न देकर केन्द्र सरकार राजनीति का एक घिनौना खेल खेल रही है। गठबंधन युग में अपने लिए समर्थक के रूप में माक्र्सवादियों को जमीन मुहैया कराकर कांगे्रस क्या अपने ही सहयोगी दल को धोखा नहीं दे रही? कांग्रेस वस्तुत: ममता की तृणमूल कांग्रेस के समर्थन को स्थायी नहीं मानती। बेबाक-ईमानदार-निर्भीक ममता के लिए भी कांग्रेस स्थायी मित्र नहीं हो सकती। जबकि हकीकत यही है कि दिन-ब-दिन बंगाल के हर कोने में अपनी जड़ें जमाती जा रही ममता ही माक्र्सवादी सरकार को उखाड़ फेंकने का माद्दा रखती हैं। चुनौती है कांग्रेस नेतृत्व को, केन्द्र सरकार को, अगर वो सचमुच माओवादियों के सफाए के प्रति गंभीर है तो वह बंगाल में ममता के अभियान को समर्थन दे। जनता अब ममता के साथ है। क्या कांग्रेस जनता की इच्छा के खिलाफ जाना चाहेगी?
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