हां, इस पर बहस जरूरी है। 'सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता' का ऐसा हव्वा खड़ा कर दिया गया है जिससे युवा पीढ़ी ही नहीं, एक वर्ग विशेष को छोड़ कर समाज के तमाम लोग भ्रमित हैं। लोगों के दिलों में डर पैदा कर दिया गया है। ऐसा डर कि हिंदू और हिंदुत्व की बात करना गुनाह हो गया है। अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए, ऐसा कहने वाले तत्काल सांप्रदायिक निरूपित कर दिये जाते हैं। जबकि अयोध्या में मस्जिद बननी चाहिए, ऐसा कहने वाले धर्मनिरपेक्ष मान लिए जाते हैं? न्याय का यह कैसा तराजू? पूरे देश में सर्वेक्षण करवा लें, लोग इस सवाल पर कतराते मिलेंगे। पूरा देश कायर कैसे हो गया? क्या देश की पूरी की पूरी आबादी बुद्धिहीन है, विवेकहीन है? लोगों के दिलों में ऐसा डर कैसे पैदा हो गया कि कोई भी अल्पसंख्यक समुदाय पर टिप्पणी नहीं कर पाता? क्योंकि ऐसा करने वाले को तत्काल सांप्रदायिक करार दिया जाएगा। क्या है यह सांप्रदायिकता? इतिहास के पन्नों को पलट लें, मालूम हो जाएगा कि दरअसल यह शब्द अंग्रेजों का दिया हुआ है। सेना और सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए वे इसका इस्तेमाल करते थे। फूट डालो और राज करो की नीति को वे इसी सांप्रदायिक शब्द से चलाते थे। आजादी बाद कांग्रेस सरकार ने वस्तुत: अंग्रेजों के दिखाए रास्ते पर चलते हुए इसे वोट बैंक में बदल डाला। मुस्लिम तुष्टिकरण का एक भयावह सिलसिला चला। संविधान में धारा 370 जोड़ कर जम्मू और कश्मीर को ऐसी स्वायत्तता दे दी गई, जो आज पड़ोसी पाकिस्तान के लिए मददगार साबित हो रहा है। कहने को तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है किन्तु क्या कश्मीर को मिला विशेषाधिकार उसे भारत से अलग नहीं कर देता? तब श्यामाप्रसाद मुखर्जी पं. नेहरु के मंत्रिमंडल के सदस्य थे। उन्होंने इसका विरोध करते हुए इस्तीफा दे दिया और जनसंघ की स्थापना की। अब हालत ये है कि धारा 370 को हटाने की मांग करने वालों को सांप्रदायिक घोषित कर दिया जाता है। अगर भाजपा और संघ की ऐसी मांग सांप्रदायिक है तब पूरे भारत को सांप्रदायिक क्यों न घोषित कर दिया जाए?
अयोध्या में राममंदिर निर्माण का मुद्दा हो, या रामेश्वरम में राम सेतु का मुद्दा, भारत सरकार के पक्ष को समर्थन नहीं दिया जा सकता। अयोध्या का मामला तो फिलहाल न्यायालय में लंबित है। लेकिन रामसेतु के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार द्वारा दायर शपथ पत्र को क्या कहेंगे? सरकार के अनुसार राम के अस्तित्व का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। क्या यह विशाल हिंदू समाज को अपमानित करने और उसकी भावना को भड़काने का काम नहीं? लेकिन आपको मौन रहना होगा। कोई आवाज उठाएगा तो वह सांप्रदायिक करार दिया जाएगा। कैसा देश है यह? कैसे शासक हैं हमारे? दुनिया के किसी भी इस्लामी देश में हिंदुओं के लिए अलग कानून नहीं है। लेकिन भारत में इस्लाम की धारणा और शरीयत का आदर करते हुए विशेष कानून मौजूद है। मैं इसका विरोध नहीं कर रहा। मैं तो देशवासियों की उस भावना को व्यक्त कर रहा हूं जो यह जानना चाहती है कि हिंदू और हिंदुत्व की बात करना सांप्रदायिक कैसे बन जाता है। और यह कि भाजपा या संघ को बगैर सोचे समझे हर अवसर-कुअवसर पर सांप्रदायिक कैसे करार कर दिया जाता है? कहते हैं अगर महात्मा गांधी नहीं होते तब न तो कांग्रेस को अपने लिए जमीन मिलती और न ही भारत आजादी की सफल लड़ाई लड़ पाता। महात्मा गांधी ने रामराज्य की कल्पना की थी। और सीने पर गोली लगने के बाद मरते-मरते उनके मुंह से राम शब्द ही निकला। उनके भजन 'रघुपति राघव राजाराम' देश के बच्चे-बच्चे की जुबान पर था। तब तो गांधी भी सांप्रदायिक हुए और पूरा देश सांप्रदायिक हुआ। देश की युवा-पीढ़ी को इस तथ्य की जानकारी जरूरी है। उन्हें मालूम होना चाहिए कि हिंदू धर्म को छूत बताने वाले सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करते आये हैं। धर्म का शब्दकोशीय अर्थ कर्तव्य है। फिर कर्तव्य पालन सांप्रदायिक कैसे हो गया? कांग्रेस व कथित धर्मनिरपेक्ष दलों की ओर से बार-बार यह कहा जाता है कि संघ परिवार ने आजादी की लड़ाई में हिस्सा तक नहीं लिया। लेकिन क्यों और कैसे यह बताने से वे मुकर जाते हैं। संघ से पहले मुस्लिम लीग की स्थापना हो चुकी थी और आजादी की लड़ाई में वो कांग्रेस के साथ थी। संघ की स्थापना के साथ डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने सभी को हिंदू धर्म अंगीकार करने का आह्वान किया। उन्होंने साफ-साफ कहा कि हर हिंदू का धर्म है कि वह विदेशियों का राज खत्म करें। कांग्रेस डर गई। उसने आजादी की लड़ाई में मुस्लिम लीग को तो साथ रखा पर संघ को अलग रखा। उसे डर था कि विशाल हिंदू संगठन के नाते आंदोलन कांग्रेस के हाथ से निकल जाएगा। नेहरू , गांधी और पटेल के साथ हेडगेवार का पत्र व्यवहार इस बात का प्रमाण है। देश विभाजन का आधार क्या था? धर्म के नाम पर विभाजन को स्वीकार करने वाली कांग्रेस अगर धर्मनिरपेक्षता की बात करती है तब यह विडंबना ही तो है। आज भी कांग्रेस व तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति पर चल रहे हैं। किन्तु वे धर्म निरपेक्ष बने हुए हैं। राष्ट्रीयता अथवा राष्ट्रवाद की बात करने वाली भाजपा व संघ परिवार सांप्रदायिक घोषित कर दिये जाते है। निश्चय ही यह पूरे देश की सोच व विवेक का अपमान है। सारे तथ्यों को सामने रखकर, इतिहास के पन्नों को पलटते हुए इस पर राष्ट्रीय बहस हो। इस पर तटस्थता की नीति खतरनाक होगी। पूरे भारत का भविष्य इससे जुड़ा हुआ है। अंतिम रूप से यह फैसला हो ही जाना चाहिए कि, वास्तव में सांप्रदायिकता क्या है, साम्प्रदायिक कौन है।
2 comments:
क्या करिएगा यही दुख सभी को शाल रहा है। हम करें तो गुनाह वे करें तो इवादत।
baat to sahi hain lekin kaun samzegaa aapki baat.
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