शायद यह बात कड़वी लगे, लेकिन 'कुनैन' के रूप में ही सही यह आत्मघाती सत्य मौजूद है कि हमारे ही कुछ लोग देश को टुकड़ों में बांट डालने के लिए जमीन तैयार कर रहे हैं। अनजाने में ही सही ये तत्व भारत की प्रगति से बौखलाए कतिपय विदेशी ताकतों के मंसूबे को अंजाम दे रहे हैं। इसके पूर्व कि अत्यधिक विलंब हो, इस बात का फैसला हो जाए कि क्या हम देश को भाषा के आधार पर टुकड़ों में बंटते देखना चाहेंगे? अगर हां तो आज ही भारत के लिए एक नवीन शोकगीत रच डालें। अगर नहीं तो ऐसे तत्वों को राष्ट्रीय एकता-अखंडता के पक्ष में सही रास्ते पर लाया जाए।
मैं आज अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की करीब डेढ़ दशक पुरानी एक रपट को पुन: उद्धृत करने के लिए मजबूर हूं। महाराष्ट्र सरकार के ताजे कदम ने मुझे इसके लिए विवश किया है। 90 के दशम में सीआईए ने अमेरिकी सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी। रिपोर्ट में संसार के वैसे संभावित देशों की सूची दी गई थी जिनका भविष्य में भाषा के आधार पर विघटन हो सकता है। सूची में भारत का नाम शीर्ष पर था। रिपोर्ट में कहा गया था कि भविष्य में भाषा और प्रांतीयता के नाम पर भारत का विघटन संभव है। अगर मराठी संस्कृति और भाषा को संरक्षित करने के उपाए सरकार करती है, तब उस पर कोई आपत्ति नहीं। बल्कि बहुभाषी, बहुसंस्कृति वाले भारत की पहचान कायम रखने के लिए ऐसे कदम उठाए ही जाने चाहिए। सभी प्रदेशों का यह कर्तव्य है। किन्तु इस प्रक्रिया में राष्ट्रीय संस्कृति, एकता और अखंडता पर आंच न आए, यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता की कीमत पर ऐसा कोई प्रयास न हो। ऐसे में महाराष्ट्र सरकार को यह सुझाव देना कि सभी सरकारी समारोहों को राज्य के मंत्री सिर्फ मराठी में संबोधित करें और विदेशी अतिथियों के साथ भी मराठी में ही वार्तालाप करें, दुखद है। राज्य में आयोजित समारोहों को मराठी में संबोधित किया जाना तो ठीक है। किन्तु, दुभाषिये की मदद से विदेशी अतिथियों के साथ मराठी में बातें करना उचित नहीं होगा। ऐसी प्रवृत्ति खतरनाक साबित होगी। खतरनाक संक्रामक रोग की तरह इसका विस्तार पूरे देश में हो जा सकता है। यह रोग तो ठाकरे एंड कंपनी के बाड़े से निकल कर बाहर आई है। इसका विस्तार महाराष्ट्र सरकार न करे। विदेशी अतिथियों के सामने मराठी में विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जा सकते हैं। अतिथि मराठी संस्कृति और भाषा से रूबरू हो पाएंगे। कोई भी विदेशी अतिथि जब यहां आता है तब वह भारत देश आता है, किसी राज्य विशेष में नहीं। होना तो ये चाहिए कि विदेशी अतिथियों के साथ नेतागण राजभाषा हिन्दी में ही बातें करें। राष्ट्र ध्वज की तरह राष्ट्रभाषा भी देश की पहचान कराती है। संसार के प्राय: सभी देशों में ऐसा प्रचलन है। विदेशी अतिथियों के साथ और विदेश के दौरों में उनके राष्ट्राध्यक्ष सहित अन्य सभी मंत्री अपनी राष्ट्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं। भारत को इनका अनुकरण करना चाहिए। महाराष्ट्र सरकार अपनी मराठी संस्कृति, मराठी भाषा का सरंक्षण करे, प्रचार-प्रसार करे, इस पर किसी को आपत्ति नहीं होगी, किन्तु राष्ट्रीय संस्कृति और राष्ट्रभाषा की कीमत पर ऐसा न हो। बड़ा देश है, प्रदेश नहीं।
2 comments:
जो हालात है उसे देख कर तो ऐसा ही लगता है!ये राजनेता अपने स्वार्थों की खातिर देश को बाँटने में तुले है,लेकिन कल को इन्हें भी ज़मीन नसीब नहीं होगी क्यूंकि देश फिर से किसी और के अधीन होगा...
जो हालात है उसे देख कर तो ऐसा ही लगता है!ये राजनेता अपने स्वार्थों की खातिर देश को बाँटने में तुले है,लेकिन कल को इन्हें भी ज़मीन नसीब नहीं होगी क्यूंकि देश फिर से किसी और के अधीन होगा...
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