अमेरिकी सुरक्षा कवच से लैस पाकिस्तान के विदेश सचिव सलमान बशीर हमारी ही भूमि पर चेतावनी दे रहे हैं कि 'भारत हमें लेक्चर न दे।' यही नहीं बशीर मुंबई पर 26/11 के हमले की गंभीरता को हवा में उड़ाते हुए यह भी कह गए कि 'भारत ने एक मुंबई हमला झेला है, हम हजारों मुंबई हमले झेल चुके हैं।' भारत के शांत, सौम्य शील गालों पर पाकिस्तान के इस तमाचे के बाद हमारे प्रधानमंत्री क्या जवाब देंगे? अमेरिकी दबाव में झुक कर पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए तैयार होने पर पाकिस्तान के ऐसे रुख की कल्पना किसी ने की थी? साफ है कि पाकिस्तान ने हमें असहाय, मजबूर मान लिया है, वर्ना ऐसी अकड़ वह न दिखाता। उसने अमेरिका के सामने भारत को साष्टांग जो देख लिया है। उसकी धृष्ठता विदेश सचिव के सिर चढ़ कर बोल रही थी।
दोनों देशों के बीच सचिव स्तर पर बातचीत के तत्काल बाद आई पाकिस्तान की ऐसी प्रतिक्रिया गंभीर है। भारत पर आतंकवादी हमलों का मास्टर माइंड हाफिज सईद को सौंपने की मांग भारत करता आया है। भारत ने उसके खिलाफ और दो डॉजियर भी सौंपे, लेकिन पाकिस्तान के विदेश सचिव ने इसकी खिल्ली उड़ाते हुए कह डाला कि हाफिज सईद पर हमें जो कुछ दिया गया है, वह डॉजियर नहीं बल्कि साहित्य का नमूना मात्र है। क्या यह पाकिस्तान की असली नीयत को रेखांकित नहीं करता? साफ है कि पाकिस्तान किन्हीं गुप्त कारणों से भारत से बातचीत का नाटक रचते हुए समय खरीद रहा है-अमेरिका की मिली भगत से। भारतीय विदेश सचिव अनुपमा राव के साथ बातचीत के दौरान एजेंडा को कश्मीर केंद्रित कर पाकिस्तान ने अपनी कुटिल मंशा का इजहार कर दिया है। बातचीत के पूर्व बशीर ने कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी नेताओं से बातचीत भी की थी। बशीर की यह टिप्पणी भी पाकिस्तानी कुटिलता को चिन्हित करती है कि 'कश्मीर में हो रहे मानवधिकार उल्लंघन से पाकिस्तान चिंतित है।' यही कहीं पाकिस्तानी विदेश सचिव यह ऐलान करने से भी नहीं चूके कि पाकिस्तान कश्मीर में चल रहे संघर्ष को राजनीतिक, कूटनीतिक और नैतिक समर्थन देता रहेगा। क्या इन्हीं सब बातों का ऐलान करवाने के लिए भारत ने पाकिस्तान को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था? कश्मीर मुद्दे पर कोई भी समझौता न करने की बार-बार घोषणा करने वाली भारत सरकार को अपने देशवासियों को यह बताना पड़ेगा कि सचिव स्तर की बातचीत में ऐसी क्या चर्चा हुई कि पाक सचिव उत्साहित व आक्रमक नजर आए? शिष्टाचार की मर्यादा तोड़ते हुए पाक सचिव ने भारत को उसकी औकात बताने की कोशिश कैसे की? लेक्चर न देने की चेतावनी और मुंबई हमले का अवमूल्यन कर पाकिस्तान ने भारत को उकसाने की कोशिश की है। क्या हमारे प्रधानमंत्री और उनके सलाहकार तटस्थ बने रहेंगे? मुझे भय है कि शायद ऐसा ही हो। देशवासियों को भ्रमित करने के लिए कुछ भाषण होंगे, इससे अधिक कुछ नहीं। भारत सरकार और सत्तापक्ष का इतिहास भी इसी बात की चुगली कर रहा है। मुंबई पर 26/11 के आतंकी हमले के बाद भारतीय संसद ने एकमत से प्रस्ताव पारित किया था कि 'जब तक आतंकी हमले की योजना बनाने और उसमें मदद करने वाले तत्वों को सजा नहीं मिल जाती तब तक भारत सरकार खामोश नहीं बैठेगी।' पाकिस्तान ने तो अपनी ओर से ऐसी किसी भी संभावना से इंकार कर दिया है। संदिग्धों के खिलाफ भारत द्वारा उपलब्ध कराए गए सबूतों का वह मजाक उड़ा रहा है। आतंकी हमले की योजना बनाने वाले और उसके सहयोगी पाकिस्तान में बेखौफ विचरण कर रहे हैं। अब सवाल यह है कि भारत अपनी ओर से क्या करेगा? मुंबई हमले के बाद पुणे पर भी हमला हो चुका है। पाकिस्तान की अंतर्लिप्तता अंधी आँखें भी देख सकती हैं। फिर किस बात की प्रतीक्षा है भारत सरकार को? सत्तापक्ष के नीतिनिर्णायक और बकौल प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, भारत के भविष्य राहुल गांधी ने 26/11 के हमले के बाद कहा था कि 'हर भारतीय जान की कीमत आतंकियों को चुकानी होगी।' क्या राहुल के शब्द भी लफाजी मात्र थे? आज यह सवाल हर भारतीय की जुबान पर है। पाक विदेश सचिव की हेठी के बाद तो हर भारतीय मन उद्वेलित है। वे जानना चाहते हैं कि आतंकवाद का पोषक, भारत पर आतंकवादी हमलों का जिम्मेदार पाकिस्तान को भारत स्थाई सबक कब सिखाएगा?
1 comment:
हमारे राजनीतिबाजों को अकल आयेगी ही नहीं. इन्हें भी नोबेल चाहिये शांति का.
Post a Comment