पी. चिदंबरम अगर नैतिकता का अर्थ समझते हैं, संविधान का सम्मान करते हैं, राष्ट्रभक्त हैं, राष्ट्रीय अस्मिता को कायम रखना चाहते हैं और चाहते हैं कि भारतीय लोकतंत्र जन-गण इच्छा आधारित रहे, तो वे तत्काल मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दें। कम से कम गृह मंत्रालय का त्याग तो कर ही दें, क्योंकि वे संविधान और देश के अपराधी बन बैठे हैं। आज देश उनके कृत्य पर शर्मिंदा है, संविधान विलाप कर रहा है। जिस गृह मंत्रालय के अधीन व्यवहार के स्तर पर राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार की जिम्मेदारी है, उसका मंत्री जब घोषणा करे कि उसे हिन्दी नहीं आती, वह हिन्दी में नहीं बोल सकता तब पद पर बने रहने का उसे कोई अधिकार नहीं। चिदंबरम के मुख से हिन्दी के प्रति अज्ञानता की बात सुनकर देश स्तब्ध रह गया। कोई आपसी बातचीत में नहीं, जम्मू में एक पत्रकार सम्मेलन के दौरान उन्होंने बताया कि 'आई कैनाट स्पीक इन हिन्दी।' सुनने वाले दंग, कि हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्थापित करने की जिम्मेदारी वाले मंत्रालय का मंत्री ऐलान कर रहा था कि उसे हिन्दी अर्थात्ï राजभाषा का ज्ञान नहीं है। शर्म ! शर्म!! शर्म !!!
क्या सचमुच चिदंबरम हिन्दी नहीं समझ सकते, नहीं बोल सकते? विश्वास करना कठिन है। उक्त सम्मेलन में कुछ पत्रकारों द्वारा हिन्दी में पूछे गए सवालों का समाधानकारक जवाब गृहमंत्री अंग्रेजी में दे रहे थे। साफ है कि वे हिन्दी समझते हैं। जिज्ञासावश मैंने चिदंबरम के विभाग में काम कर चुके एक पूर्व वरिष्ठ अधिकारी से पूछा। जवाब मिला- चिदंबरम हिन्दी समझते हैं और बोल भी सकते हैं। फिर उन्होंने हिन्दी में कुछ सवालों का जवाब दिए जाने के एक अनुरोध को ठुकराते हुए हिन्दी न समझने की बात क्यों कही? यह आश्चर्यजनक है। क्या वे राजभाषा के मुद्दे पर किसी दबाव में हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि दक्षिण की खतरनाक हिन्दी विरोधी राजनीति के वे भी एक किरदार बन बैठे हैं? राजभाषा के व्यवहार के मुद्दे पर देश के गृहमंत्री का यह आचरण निश्चय ही अलगाववादी प्रवृत्ति को चिन्हित करने वाला है। यह भविष्य के एक अत्यंत ही विकट झंझावात का पूर्वाभास है। गृहमंत्री के रूप में चिदंबरम के ऊपर देश की एकता-अखंडता और आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी भी है। राजभाषा को सम्मान दिलवाने की जिम्मेदारी भी उन पर ही है। इसके बावजूद जब वे राजभाषा के प्रति अपनी अज्ञानता को सार्वजनिक कर रहे हैं, तब इसमें कोई गुत्थी है अवश्य। यह विस्मयकारी है कि वे अपनी नेता सोनिया गांधी से कुछ नहीं सीख पाए। इटली से आईं सोनिया गांधी हिन्दी से बिल्कुल अंजान थीं। लेकिन उन्होंने राजभाषा को सम्मान देते हुए, देश की जरूरत को देखते हुए हिन्दी सीखी और इतनी सीखी कि आज वे फर्राटेदार हिन्दी बोल रही हैं। फिर हमारे गृहमंत्री क्या यह बताएंगे कि जिस संविधान की शपथ लेकर वे मंत्री बने हैं, उस संविधान में घोषित संघ की राजभाषा हिन्दी से वे दूर कैस्े हैं? क्या ऐसे व्यक्ति के अधीन गृह मंत्रालय की जिम्मेदारी रहनी चाहिए? कदापि नहीं। अंग्रेजी और अंग्रेजियत के ऐसे पोषक जब तक सत्ता में मौजूद रहेंगे, देश में स्वभाषा, स्वसंस्कृति और स्वदेशाभिमान उत्पन्न हो तो कैसे? फिर क्या आश्चर्य कि देश के कुछ भागों में हिन्दी विरोध की चिंगारी सुलगते दिखने लगी है।
3 comments:
सर, एक बड़ा मुद्दा उठाया है आपने। देश के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से राष्ट्रभाषा के साधारण ज्ञान और राष्ट्रभाषा के सम्मान की न्यूनतम अपेक्षा तो करनी ही चाहिए।
धिक्कार, धिक्कार. देश तोड़क नेताओं के लिये धिक्कार है. क्या ये किसी राज ठाकरे का ही दूसरा पहलू नहीं है?
क्या विनोद जी,
साजिश नहीं, अफसरशाही है ये
देश में केंद्रीय हिंदी समिति वो लोग चला रहे हैं जिन्हें हिंदी से कोई लेना है. इन्हें हिंदी बोलने में शर्म आती है-
उनमें एक चिदंबरम हैं, दूसरे मनमोहन, तीसरे की जानकारी लेनी हो तो इस लिंक पर जाइए-
http://hrudyanjali.blogspot.com/2010/02/blog-post_5844.html
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