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Wednesday, February 10, 2010

शरद पवार-बाल ठाकरे का साझा एजेंडा?

कहीं बाल ठाकरे-शरद पवार किसी साझा एजेंडे पर तो काम नहीं कर रहे हैं? ऐसी शंका अनेक लोगों के जेहन में उठ रही है। पिछले एक सप्ताह की घटनाओं पर गौर करें। बाल ठाकरे फरमान जारी करते हैं कि करण जौहर निर्मित और शाहरुख खान अभिनित फिल्म 'माई नेम इज खान' के प्रदर्शन की अनुमति नहीं दी जाएगी। शर्त लगा दी कि जब तक खान माफी नहीं मांगते, फरमान लागू रहेगा। अमेरिका से शाहरुख खान बयान जारी करते हैं कि वे माफी नहीं मांगेगे। जो कहा है (मुंबई पर सभी का अधिकार है) सही कहा है। राहुल गांधी की मुंबई यात्रा का विरोध करते हुए बाल ठाकरे शिवसैनिकों को आदेश देते हैं कि मुंबई में राहुल का स्वागत काले झंडों से किया जाए। राहुल मुंबई पहुंचते हैं, लोगों से मिलते-जुलते हैं, लोकल ट्रेन में सफर करते हैं और यह टिप्पणी कर वापस चले जाते हैं कि मुंबई भी अन्य शहरों की तरह भारत का एक अंग है। बाल ठाकरे व उनके शिवसैनिक राहुल का कुछ नहीं बिगाड़ पाते। राहुल की यात्रा को शेर की मांद में घुस चुनौती के रूप में निरूपित किया गया। कहा गया कि राहुल ने बाल ठाकरे को उनकी औकात बता दी। दूसरे दिन बाल ठाकरे घोषणा कर देते हैं कि शाहरुख की फिल्म के प्रदर्शन पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। तीसरे दिन शरद पवार, भारत सरकार के एक मंत्री, बाल ठाकरे के दरबार में हाजिर होते हैं। दो घंटे गुफ्तगू होती है। प्रचारित किया गया कि आईपीएल के क्रिकेट मैचों में ऑस्ट्रेलिया के खिलाडिय़ों को खेलने देने की अनुमति लेने पवार पहुंचे थे। चौथे दिन पवार का नसीहत सामने आता है कि बाल ठाकरे अब बूढ़े हो चुके हैं, उन्हें घर बैठना चाहिए और नई पीढ़ी को राष्ट्रीय एकता के लिए काम करने के लिए कहना चाहिए। पांचवें दिन अर्थात्ï आज बुधवार, 9 फरवरी 2010 को बाल ठाकरे की पूर्व घोषणा के उलट शिवसैनिक सड़कों पर उतरते हैं, नारेबाजी करते हैं, उन थिएटरों में तोडफ़ोड़ करते हैं जहां शाहरुख की फिल्म का प्रदर्शन होना है। क्यों? क्या शिवसैनिक अपने सुप्रीमो के आदेश का उल्लंघन कर रहे थे?
यह तो सभी जानते हंै कि बगैर बाल ठाकरे की रजामंदी के शिवसैनिक टॉयलेट तक नहीं जा सकते। जाहिर है कि आज की तोडफ़ोड़ शिवसैनिकों ने बाल ठाकरे के आदेश पर ही की। और ऐसा हुआ मराठा क्षत्रप शरद पवार से मुलाकात के बाद! पवार को नजदीक से जानने वाले इस बात की पुष्टि करेंगे कि उनका अब एक ही एजेंडा है। सुपुत्री सुप्रिया सुले की ताजपोशी। वे अपनी विरासत सुप्रिया के हाथों सौंपना चाहते हैं। वसंतदादा पाटिल को धोखा देकर कभी खुद मुख्यमंत्री बनने वाले शरद पवार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा सर्वविदित है। सीताराम केसरी से कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में पराजित होने वाले पवार ने कांगे्रस का त्याग किया- सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर। तब इनकी हिम्मत की दाद दी गई थी। लेकिन सत्ता सुख के आदी पवार उसी सोनिया गांधी के दरबार में हाजिर हो गए। कांग्रेस की गठबंधन सरकार में अपने सहयोगियों के साथ मंत्री बन बैठे। उत्तराधिकारी के रूप में अब तक पेश किए जाते रहे भतीजे अजितदादा पवार को किनारे कर बेटी सुप्रिया को सामने लाया गया। सुप्रिया का राजनीति में प्रवेश पूर्वनियोजित था। पवार की तरह अपने राजनीतिक जीवन की अंतिम पारी खेल रहे बाल ठाकरे ने भी पूर्व में घोषित उत्तराधिकारी भतीजे राज ठाकरे को किनारे कर पुत्र उद्धव ठाकरे को विरासत सौंपने की घोषणा कर दी। मुंबई में आतंक की पर्याय शिवसेना को वर्तमान तोडफ़ोड़ की राजनीति में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। पवार इसका अवसरवादी उपयोग करना चाहते हैं। बाल ठाकरे से उनकी मुलाकात एक सोची-समझी योजना के अंतर्गत हुई। वर्तमान राजनीति का यह एक स्याह पक्ष है। पवार ने मुंबई के 'घायल शेर' ठाकरे को जीवित रखने के लिए उनसे मुलाकात की। भारत सरकार और महाराष्ट्र सरकार की अवमानना की कीमत पर। सहसा विश्वास नहीं होता लेकिन इस बात के पुख्ता संकेत मिल रहे हैं कि अगर भयादोहण व दबाव के समक्ष मनमोहन सिंह की संप्रग सरकार झुकी नहीं तब शरद पवार और बाल ठाकरे मराठी माणुस की अस्मिता का नया खेल खेलेंगे। शरद पवार की राकांपा कांग्रेस को और शिवसेना भाजपा को धता बता राज्य की सत्ता पर कब्जे के लिए एक साथ कदमताल करेंगे। जिस नई पीढ़ी को सामने लाने की बात पवार ने कही है, उसकी दो पंक्तियों में से एक में सुप्रिया सुले और दूसरी में उद्धव ठाकरे आगे दिखेंगे। रही बात दिल्ली की तो अवसर आने पर गठबंधन की राजनीति की मजबूरी का फायदा तो ये उठा ही लेंगे। क्या लोकतंत्र के इन खिलाडिय़ों के चरित्र पर आप विलाप करना चाहेंगे?