Thursday, July 1, 2010
अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का राजनीतिक खेल!
सामान्य बुद्धि धारक देश के लोगों का एक दिलचस्प किंतु गंभीर सवाल! उनकी जिज्ञासा है कि क्या देश-विदेश के अल्पसंख्यक मुस्लिम नेता-प्रतिनिधि एक मंच पर एकत्रित हो कथित रूप से दलित मुसलमानों के लिए अनुसूचित जाति के दर्जे की मांग करें तब क्या ऐसे जमावड़े और मांग को क्यों न सांप्रदायिक निरूपित कर दिया जाए? सवाल के साथ इस तथ्य को जोड़ दिया जाए कि जमावड़ा और मांग ऐन चुनाव के वक्त हो रहे हैं। और तीखा सवाल यह भी कि अगर इसी तरह का कोई जमावड़ा बहुसंख्यक हिंदू वर्ग की तरफ से हो तब क्या प्रतिक्रिया होगी? अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण की नीति और बहुसंख्यकों की उदारता, सहनशीलता, व्यापक दृष्टिकोण और परस्पर सामाजिक सौहाद्र्र के कारण समय-समय पर उत्पन्न सांप्रदायिक तनाव के परिप्रेक्ष्य में इन पर मनन जरूरी है! बिहार में विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। वहां पर जनता दल (यू) और भारतीय जनता पार्टी की मिली-जुली सरकार है। कह सकते हैं कि लगभग पिछले पांच वर्षों से सफलतापूर्वक गठबंधन सरकार चल रही थी। इस बीच सोलह प्रतिशत मुस्लिम वोट पर गिद्ध दृष्टि रखने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अचानक 'धर्मनिरपेक्ष' बन गए! दलितों-महादलितों के मसीहा बन बैठे। बीमार बिहार को गंभीर व्याधियों से मुक्त करा विकास की रेल पर गतिमान करने का दावा करनेवाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर आज '1 जुलाई' को पटना में 'ऑल इंडिया पसमंदा मुस्लिम मेहस (AIPMM)' का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित है। सम्मेलन में नीतीश तो रहेंगे ही, वल्र्ड इस्लामिक फोरम (यू.के.) के अध्यक्ष मोहम्मद ऐस्सा मौनसूरी, ऑल इंडिया मोमिन कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष मौलाना जुनैद अहमद अंसारी के साथ-साथ पूरे देश से मुस्लिम धर्मप्रचारक और बुद्धिजीवी भी शिरकत कर रहे हैं। सम्मेलन का उद्देश्य दलित मुस्लिम और दलित क्रिश्चियन को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाना है। लेकिन सम्मेलन का समय व अवसर चीख-चीख कर इसके राजनीतिक होने की गवाही दे रहा है। दोहराने की जरूरत नहीं कि यहां राजनीति का अर्थ 'वोट' की राजनीति है। जरा ध्यान दें, 1994 के बाद से अब तक राज्य में मुस्लिम मदरसों को मान्यता नहीं दी जा रही थी। 1994 में मुसलमानों के लिए मौलाना कहे जानेवाले लालूप्रसाद यादव मुख्यमंत्री थे। फिर पत्नी राबड़ीदेवी उनकी उत्तराधिकारी बनीं। दोनों ने मिलकर लगभग पंद्रह वर्षों तक बिहार पर राज किया। इन पंद्रह वर्षों के दौरान इन्होंने एक भी मदरसे को शासकीय मान्यता नहीं दी है। फिर भाजपा के सहयोग से जद (यू) के नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने। लगभग साढ़े चार वर्ष के शासन के बाद अब उन्होंने 1127 मदरसों को मान्यता प्रदान की! क्या लालू यादव, राबड़ी देवी और नीतीश कुमार अनेक वर्षों तक मदरसे के मुद्दे पर अपनी उदासीनता का कारण बताएंगे? अचानक उठ रहे मुस्लिम प्रेम का कारण भी इन्हें बताना होगा। अलंकारिक शब्दों का जाल प्रस्तुत कर ये नेता राजनीतिक सफाई देने में माहिर हैं। सो, जवाब तो दे देंगे किंतु देश की समझ को चुनौती देना आसान नहीं होगा! हालांकि देशवासियों का संयम, उदारता और राजनीतिक कारणों से धर्मसंप्रदाय जैसे संवेदनशील मुद्दों पर तटस्थता हमेशा छद्म धर्मनिरपेक्षता को हवा देती रही है। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। बिहार विधानसभा के चुनाव में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को 'स्टार प्रचारक' के रूप में उतारने की भाजपाई मंशा ने नीतीश, लालू, रामविलास के साथ-साथ कांग्रेस को भी सकते में डाल दिया है। सच कहूं तो ये सभी अब खुलकर हिंदू-मुस्लिम का खेल खेलने लगे हैं। इसी बिंदु पर देशवासी जानना चाहते हैं कि धर्मनिरपेक्षता का नगाड़ा पीटनेवाले इन लोगों को सांप्रदायिक क्यों नहीं करार दिया जाता? जब भाजपा नरेंद्र मोदी को सामने कर कथित हिंदूवादी मतदाता को अपने पक्ष में एकजुट करना चाहती है तब तो उसे बगैर किसी हिचकिचाहट के हिंदू बुद्धिजीवी सांप्रदायिक घोषित कर देते हैं। और जब खुलेआम मुस्लिम मतदाता को एकजुट करने की कार्रवाई होती है तब यह कवायद 'धर्मनिरपेक्ष' कैसे हो गई? क्या सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता का यह राजनीतिक खेल कभी खत्म नहीं होगा? यहां हम एक और अल्पसंख्यक व बहुसंख्यक की चर्चा कर लें। कथित धर्मनिरपेक्षता का हौवा खड़ा करनेवाला वर्ग अल्पसंख्या में है, किंतु आक्रामक है। सर्वधर्म समभाव की भावना के साथ समाज में सांप्रदायिक सौहाद्र्र देखनेवाला वर्ग बहुसंख्यक है, किंतु संयमी व उदार! क्या यह विडंबना नहीं कि ऐसे बहुसंख्यक वर्ग के खिलाफ हमेशा शोर मचा अल्पसंख्या वाला उपर्युक्त वर्ग मौन कर देता है? चिंतकों व दर्शनशास्त्रियों से युक्त विशाल भारत आखिर कब तक इस विडंबना को ढोता रहेगा?
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3 comments:
इस्लामी शासन दिखाई दे रहा है...
अच्छा ही है मुसल्मानो को अगडा पिछडा दलित मे बाट दो फ़िर इनका भी वही हाल होगा जैसे हिन्दुओ क हुआ . सब समस्या खतम
अच्छा ही है मुसल्मानो को अगडा पिछडा दलित मे बाट दो फ़िर इनका भी वही हाल होगा जैसे हिन्दुओ क हुआ . सब समस्या खतम
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