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Saturday, July 17, 2010

क्यों टूटे कलाम की 'चिंतन कुटी'?

देश के अखबारों में एक खबर छपी- ''कलाम की चिंतन कुटी तोड़ दी जाएगी''। इस छोटी सी खबर ने हृदय को बेध डाला। देश के विज्ञानी, चिंतक, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने अपने कार्यकाल के दौरान राष्ट्रपति भवन के मुगल गार्डन में एक झोपड़ी बनवाई थी। कलाम प्यार से उसे 'चिंतन कुटी' (थिंकिंग हट) भी कहा करते थे। आगन्तुकों को भाव विह्वïल होकर बताया करते थे कि उन्होंने अपनी 2 पुस्तकें इसी 'चिंतन कुटी' में बैठकर लिखी थी। कहते हैं इसी 'चिंतन कुटी' ने कलाम की रचनात्मकता को धार दिया था, नया आयाम दिया था। अब इस झोपड़ी को हटा दिया गया है। क्योंकि इससे राष्ट्रपति भवन की सुंदरता पर पैबंद लग रहा था। शर्म! शर्म!! राष्ट्रपति भवन को उसके मूल स्वरूप में लाने के लिए बनी विशेषज्ञों की कमेटी ने कलाम के 'गरीब प्यार' को सुंदरता के लिहाज से उपयुक्त नहीं माना। कमेटी ने लूटियंस द्वारा डिजाइन की गई ब्रिटिश और मुगलशैली के समन्वय से निर्मित राष्ट्रपति भवन के स्थापत्य की शोभा के पक्ष में कुटी को हटाने की सिफारिश की।
अब एक स्वाभाविक सवाल यह कि क्या किसी राष्ट्रीय धरोहर में राष्ट्रीय स्वाभिमान को स्थान नहीं मिलना चाहिए? आजादी के पश्चात रायसीना हिल पर निर्मित अंग्रेजी के 'पैलेस ऑफ द वाइसराय ऑफ इंडिया' को राष्ट्रपति भवन के रूप में बदल डाला गया। भारत के संवैधानिक सर्वोच्च राष्ट्रपति का आवास बन गया यह। छह दशक से अधिक हो गए जब अंग्रेज राष्ट्रपति भवन खाली कर चले गए। फिर आज हम एक अंग्रेज आर्किटेक्ट की कल्पना की मौलिकता के प्रति इतने संवेदनशील कैसे बन बैठे कि अपने एक राष्ट्रपति कलाम के 'चिंतन' को धराशायी करने को तैयार हो गए? मैं यहां किसी की नीयत पर शक नहीं कर रहा लेकिन अंजाने में ही सही राष्ट्रीय स्वाभिमान, संवेदना के विपरीत आचरण पर विरोध दर्ज कर रहा हूं। अव्वल तो मैं यह मानने को तैयार नहीं कि कलाम की चिंतन कुटी से राष्ट्रपति भवन बदरंग हो रहा था। और अगर हो भी रहा था तब भी एक अंग्रेज आर्किटेक्ट लूटियंस की कल्पना पर अपने देश के एक राष्ट्रपति की पसंद की बलि नहीं चढ़ाई जानी चाहिए थी। इन विशेषज्ञों की योग्यता तो तब मुखर दिखती, सिद्ध होती जब 'चिंतन कुटी' को साबूत रखते हुए राष्ट्रपति भवन की सुंदरता पर आंच नहीं आने देते। राष्ट्रपति भवन को उसके मूल स्वरूप में लाने की कल्पना ही विस्मयकारी है। क्या हम इसे पुन: वायसराय पैलेस बनाना चाहते हैं? हमारे देश के राष्ट्रपति निवास स्थल निश्चय ही राष्ट्रपति की रुचि-संस्कृति का गवाह होना चाहिए। राष्ट्रपति पूरे राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह समझ से परे है कि आज राष्ट्रपति को राष्ट्रपति भवन की जगह पुन: वायसराय पैलेस में रखने की कोशिश क्यों की जा रही है? राष्ट्रपति भवन को उसका कथित मूल स्वरूप देकर क्या हम अंग्रेजों की स्मृति को संरक्षित करना चाहते हैं? राष्ट्रपति भवन में रहेंगे तो राष्ट्रपति ही। इसे खाली करवाकर सिर्फ एक राष्ट्रीय धरोहर के रूप में म्युजियम तो नहीं बनाना है। मुझे याद है देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने पूरे राष्ट्रपति भवन में 'हारिए न हिम्मत बिसारिये न हरिनाम, जाही विधि रखे राम ताही विधि रहिए' की पंक्तियों को सुशोभित कर रखा था।
डॉ. प्रसाद के बाद जब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्ट्रपति बने तो उन्होंने राजेंद्र बाबू की इन पंक्तियों को राष्ट्रपति भवन में बरकरार रखा। इसके बाद जब डॉ. जाकिर हुसैन राष्ट्रपति बने तब इन पंक्तियों को राष्ट्रपति भवन से हटा दिया गया। उसके बाद जितने भी राष्ट्रपति आए, सभी ने अपनी पसंद के आधार पर आंतरिक सजावट में परिवर्तन किया। डॉ. राजेंद्रप्रसाद की तरह सीधे-सरल डॉ. कलाम ने कोई तामझाम नहीं किया। अपने पढऩे-लिखने के लिए सिर्फ एक कुटिया का निर्माण करवाया। बेहतर तो होता कि डॉ. कलाम की 'चिंतन कुटी' को भी भविष्य की राष्ट्रीय धरोहर के रूप में सुरक्षित रखा जाता। पता नहीं क्यों आज भी हमारे नीति निर्धारक गुलाम मानसिकता से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। नीतिकार चाहे जितने भी तर्क दें, डॉ. कलाम की 'चिंतन कुटी' के हटाने के पक्ष में कोई हाथ नहीं उठेगा। विदेश अनुसरण और चिंतन के कायल हमारे नीति निर्धारकों को मैं यूरोप के एक महान विचारक का स्मरण दिलाना चाहूंगा। सनं 1748 में जेसी हर्डर नामक विख्यात विचारक ने 'आइडियाज ऑन फिलासफी ऑफ हिस्ट्री आफ मैनकाइंड' पुस्तक लिखी थी। हर्डर ने लिखा था, ''किसी विदेशी तौरतरीकों का अनुकरण लोगों को छिछला और कृत्रिम बनाता है। सच्ची सभ्यता स्थानीय मूल से ही विकसित होती है।'' अगर महत्व विदेशी विचारक को देना है तब हर्डर के इन शब्दों पर विचार क्यों नहीं? राष्ट्रपति भवन को भारतीय परिप्रेक्ष्य में देखते हुए भारतीय संस्कृति, सभ्यता के रूप में ही विकसित किया जाए। इसे अंग्रेजों ने बनाया यह इतिहास है, अब यह भारत के राष्ट्रपति का निवास है और यह आजाद भारत का सच है। किसी ने ठीक ही कहा है कि किसी विशेष प्राकृतिक भूखंड पर किसी विशेष संस्कृति और विशेष जीवन रचना के प्रति आग्रही भाव रखने और अपनी परंपरा के प्रति स्वाभिमानी वैशिष्ट्ïय से युक्त जन राष्ट्र होता है।

2 comments:

Bhavesh (भावेश ) said...

देश के गद्दार और सत्ता लोलुप नेताओ की जमात ने कब अपने स्वार्थ से ऊपर कुछ सोचा है. डा. कलाम जैसे पढ़े लिखे, सीधे और सच्चे लोगो को देश ने हमेशा से ही हाशिए पर रखा है. ये तो भला हो अटलजी का, कि उनकी वजह से काबिल व्यक्ति डा कलाम राष्ट्रपति बन सके. बाकि तो सब राजीनीति कि बिसात पर अपनी गोटी भिडाने में लगे रहते है.

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

इसके बाद जब डॉ. जाकिर हुसैन राष्ट्रपति बने तब इन पंक्तियों को राष्ट्रपति भवन से हटा दिया गया।

क्या बात है....