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Sunday, August 1, 2010

'छिनाल': दिमागी दिवालियेपन की उपज!

यह तो हद हो गई! अगर सीमा पार कर उद्दंड-अश्लील बन जाने का भय नहीं होता तब मैं यहां श्लीलता की सीमापार वाले शब्दों का इस्तेमाल करता! वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के उप-कुलपति विभूतिनारायण राय ऐसे दुस्साहस के लिए उकसा रहे हैं। अगर उनकी मानें तो देश की हिन्दी 'लेखिकाओं' में होड़ लगी है, यह साबित करने की कि उनसे बड़ी छिनाल (वेश्या) कोई नहीं है ... यह विमर्श बेवफाई के विराट उत्सव की तरह है।' क्या राय की इस टिप्पणी को कोई सिरफिरा भी स्वीकार करेगा? अगर राय अपना मानसिक संतुलन खो बैठे हैं तब फिर वे इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर कायम कैसे हैं? विश्वविद्यालय की कुलाधिपति महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से भी यह सवाल पूछा जाना चाहिए। पूर्व आईपीएस अधिकारी राय जब से इस विश्वविद्यालय के उपकुलपति बने हैं, विवादों के घेरे में ही रहे हैं। विश्वविद्यालय की नियुक्तियों में धांधली, जातिवाद और प्रशासनिक अक्खड़पन के आरोप उन पर लगते रहे हैं। विश्वविद्यालय में उनके खिलाफ आंदोलन भी चले। वर्तमान युग की सामान्य व्याधियां मान इनकी एक हद तक उपेक्षा की जा सकती है। किंतु ताजा प्रकरण? समझ से परे है। कोई सामान्य व्यक्ति, वह भी एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय का उपकुलपति, भारतीय पुलिस सेवा का वरिष्ठ अधिकारी रहा व्यक्ति जब हिन्दी लेखिकाओं को छिनाल निरूपित करने लगे तब उसके सिर की तलब तो की ही जाएगी। अत्यंत ही प्रतिष्ठित संस्थान भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित पत्रिका 'नया ज्ञानोदय' को दिए एक साक्षात्कार में राय ने लेखिकाओं के लिए ऐसे आपत्तिजनक बल्कि अश्लील शब्दों का इस्तेमाल किया है। राय लेखिकाओं में स्वयं को सबसे बड़ी छिनाल साबित करने की होड़ को एक प्रवृत्ति करार देते हैं। एक अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के उपकुलपति को शायद शब्दों के अर्थ और उनकी गरिमा की जानकारी नहीं है। अपने विचार को विस्तार देते हुए राय यह बताने से नहीं चूकते कि लेखिकाओं में ऐसी प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। लेखिकाओं की रचनात्मकता को विभूतिनारायण राय 'कितने बिस्तरों में कितनी बार' के संदर्भ में देखते हैं। धिक्कार है ऐसे कुत्सित विचारधारक उपकुलपति पर। शिक्षा जैसे ज्ञान के पवित्र मंदिर का मुखिया बने रहने का हक राय जैसे व्यक्ति को कदापि नहीं। इस प्रसंग में पीड़ादायक बात तो यह भी कि ज्ञानपीठ जैसा सुविख्यात संस्थान जो स्वर्गीय रमा जैन की स्मृति में प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया करता है, द्वारा प्रकाशित पत्रिका में विभूतिनारायण राय का घोर आपत्तिजनक अश्लील साक्षात्कार प्रकाशित किया ही क्यों गया? सुख्यात लेखिका मैत्रेयी पुष्पा के अनुसार 'ज्ञानोदय' के संपादक रवीन्द्र कालिया ने विभूति की बकवास को इसलिए संपादित नहीं किया क्योंकि उनकी पत्नी ममता कालिया को विभूति ने अपने विश्वविद्यालय में नौकरी दे रखी है। इस पाश्र्व में रवीन्द्र कालिया को भी ज्ञानोदय का संपादक पद त्याग देना चाहिए। स्वयं नहीं छोड़ते तो निकाल देना चाहिए। रवीन्द्र कालिया से पूछा जाना चाहिए कि क्या वे विभूति के विचारों से इत्तेफाक रखते हैं? कालिया इस तत्थ्य को ध्यान में रखकर जवाब दें कि स्वयं उनकी पत्नी उसी हिन्दी की एक लेखिका हैं जिसकी लेखिकाओं को विभूति छिनाल अर्थात्ï वेश्या बता रहे हैं। ताज्जुब तो इस बात पर भी कि स्वयं विभूतिनारायण राय की पत्नी पद्मा राय भी एक लेखिका हैं। फिर विभूति ने पद्मा को अपने घर में कैसे रख छोड़ा है, उसे 'सही स्थान' पर बैठा दें। मैत्रेयी पुष्पा विभूति को लफंगा मानती हैं। उन्होंने उदाहरण देकर यह साबित भी कर दिया है। अब इस लफंगे का क्या किया जाए? फैसला देश करे, देश की महिलाएं करें, लेखिकाएं करें। चूंकि विभूतिनारायण राय ने ऐसी टिप्पणी कर संविधान का भी अपमान किया है, इनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी हो। अन्यथा पुरुष-प्रधान भारतीय समाज का कलंक और गहरा हो जाएगा। पुरुषों के समकक्ष नारी को स्थान दिए जाने का दावा खोखला साबित हो जाएगा।

4 comments:

Arvind Mishra said...

'फिर विभूति ने पद्मा को अपने घर में कैसे रख छोड़ा है, उसे 'सही स्थान' पर बैठा दें।'
और यहाँ तुमने अपनी औकात दिखा दी ...

पंकज मिश्रा said...

बहुत सही। पूरी पोस्ट में सवाल ही सवाल हैं। और जवाब की दरकार। सबसे बड़ी बात यह है कि इतने बड़े और वरिष्ठ साहित्यकारों के बीच का व्यक्ति इतना गैर जिम्मेदाराना बयान कैसे दे सकता है????

लोकेन्द्र सिंह said...

कभी-कभी आदमी बौरा जाता है शायद राय साहब भी बौरा गए होंगे। इन्हें पद छोड़कर आराम से इलाज करवाना चाहिए। आप कितने भी तुरम्मखां बने रहो कम से कम स्त्री जाति का इतना अपमान करने का हक आपको नहीं है।

Arun sathi said...

चर्चा में बनने के लिये पगल बनते हें