किसी ने बिल्कुल ठीक कहा है कि सियासत को तवायफ का दुपट्टा कभी किसी की आंसुओं से गीला नहीं होता। अनेक 'गंध' मिलकर स्वच्छ वातावरण व उसकी पवित्रता को चुनौती देने वाली 'दुर्गन्ध' पैदा करता रहता है यह दुपट्टा। एक शाश्वत सत्य है। आश्चर्य है कि इस अटूट स्थापित सत्य से अच्छी तरह परिचित होने के बावजूद पक्ष-विपक्ष दोनों के कतिपय नेता अंजान बन इस सड़ांध को हवा दे रहे हैं। केन्द्र में सत्ता का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस तो गूंगी, बहरी, अंधी बन इसे सहेज रही है। प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार हरीश खरे ने सार्वजनिक रूप से कांग्रेस को निकम्मी-नालायक निरूपित कर शायद सच को चिन्हित कर दिया है। खरे के इस आकलन को क्या कांग्रेसी नेता चुनौती दे सकते हैं कि कांग्रेस का एकमात्र लक्ष्य चुनाव जीतना है। मूल्य-सिद्धांत, सेवा से कोई लेना-देना नहीं। खरे के आकलन पर प्रधानमंत्री के मौन को फिर हम स्वीकारोक्ति क्यों न मान लें?
प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के कुछ बड़े नेता भी इस 'दुर्गन्ध' के पोषक बन गए हैं। मूल्य आधारित राजनीति करने का दावा करनेवाली भाजपा के वर्तमान नए नेतृत्व को सतर्क रहना होगा। दलदली दिल्ली में मठाधीश की भूमिका में राजनीति करनेवाले कुछ कथित बड़े नेता वही लोग हैं जिनकी निजस्वार्थ राजनीति के कारण सन् 2004 और 2009 में केन्द्रीय सत्ता कांग्रेस नेतृत्व के संप्रग की गोद में अनायास पहुंच गई। इन दोनों चुनावों में भाजपा की हार का कारण इन अहंकारी नेताओं की स्वार्थजनित नीतियां थीं। इन लोगों ने अपने स्वार्थ के आगे पार्टी व देशहित की बलि चढ़ा दी। इनका स्वार्थ नये युवा नेतृत्व को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है। नितिन गडकरी के रूप में भाजपा को प्राप्त नया राष्ट्रीय अध्यक्ष आशा की लौ तो जगा रहा किन्तु मठाधीशों का अहंकार व षडय़ंत्र पुन: पार्टी की विकास यात्रा के मार्ग में अवरोध पैदा कर रहे हैं। अगर बकौल हरीश खरे कांग्रेस का एकमात्र लक्ष्य येनकेन प्रकारेण चुनाव जीतना है तो भाजपा के इन मठाधीशों का एकमात्र लक्ष्य नितिन गडकरी के 'विजन 2014' को विफलता की खाई में फेंक देना है। हां, यही सच है- कड़वा सच है। पिछले 2 लोकसभा चुनावों में भाजपा का बंटाढार करने वाले ये मठाधीश भला यह कैसे बर्दाश्त कर लें कि गडकरी की संगठन कुशलता और दूरदृष्टि के परिणामस्वरूप सन् 2014 में भाजपा को सफलता मिल जाए। इनकी कलई जो खुल जाएगी। अध्यक्ष पद संभालने के पूर्व और पश्चात् इस 'गैंग' ने गडकरी को अनुभवहीन व अकुशल नेता के रूप में प्रचारित करवाने का षडय़ंत्र रचा था। बाद में मीडिया के अपने पिट्ठुओं द्वारा प्रचारित कराया गया कि गडकरी में निर्णयक्षमता का अभाव है। वे मठाधीशों के बंदी हैं। पूरे देश में पार्टी के बीच तालुका स्तर पर इस दुष्प्रचार को पहुंचाया गया। वस्तुत: यह 'गैंग' गडकरी की कार्यक्षमता व बुद्धिमत्ता को कम कर आंक रही थी। गडकरी के नजदीकी आश्वस्त थे कि सही समय पर सही निर्णय लेकर गडकरी पार्टी हित के ग्राफ को ऊपर ले जाएंगे। झारखंड में भाजपा नेतृत्व की सरकार के गठन ने इसे प्रमाणित भी कर दिया। कश्मीर के मुद्दे पर प्रधानमंत्री द्वारा आहूत सर्वदलीय बैठक में नितिन गडकरी के सकारात्मक विचारों को सुन स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह स्तब्ध रह गए थे। भाजपा के मठाधीश बेचैन हो उठे। उन्होंने मीडिया में मौजूद अपने पिट्ठुओं की पीठें ठोंकी व उन्हें सक्रिय किया। भाजपा से जुड़े नागपुर के 2-3 व्यापारियों को निशाने पर लेकर दुष्प्रचार कर एक नया अभियान शुरू किया। नितिन गडकरी पर कार्पाेरेट घरानों का हित साधने का घिनौना आरोप लगाया गया। इस अभियान में मीडिया का एक वर्ग अनर्गल बातों को हवा देता रहा। मैं इस तथ्य को चिन्हित यूं ही नहीं कर रहा हूं। सिर्फ एक उदाहरण देना चाहूंगा। पिछले दिनों जब झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा नागपुर आए थे तब उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय जाकर संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत से मुलाकात की थी। दिल्ली व अन्य शहरों से प्रकाशित एक बड़े अंग्रेजी दैनिक ने खबर छापी कि जब अर्जुन मुंडा संघ प्रमुख मोहन भागवत से मिलने गये थे तब गडकरी के नजदीकी एक उद्योगपति अजय संचेती भी मुंडा के साथ गए थे। बड़ी चालाकी से अखबार ने इस तथ्य को छुपा लिया कि संचेती भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के एक सदस्य भी हैं। खबर बिल्कुल झूठी थी। यह दावा इसलिए कि अर्जुन मुंडा के साथ संचेती नहीं बल्कि मैं स्वयं गया था- झारखंड का होने व अपने पुराने व्यक्तिगत संबंधों के कारण, भाजपा या संघ के कारण नहीं। दु:ख व आश्चर्य इस बात का है कि ऐसी खबरें भाजपा का ही एक वर्ग मीडिया में प्लांट करवा रहा है। कारण साफ है, यह वर्ग नितिन गडकरी से भयभीत है। उसे भय है कि अगर नितिन गडकरी की योजना सफल हुई तब सन् 2014 में भाजपा नेतृत्व का राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन केंद्रीय सत्ता में वापसी कर लेगा और तब नया युवा नेतृत्व भाजपा व देश को नई दिशा, नई पहचान देने में भी सफल रहेगा। आरंभ से गडकरी को अक्षम व अनुभवहीन करार देते रहने वाले विघ्नसंतोषियों की बेचैनी समझी जा सकती है। बेहतर हो कि नए अध्यक्ष नितिन गडकरी की योजना को क्रियान्वित करने में सहयोगी बनें। उनके विरुद्ध षडय़ंत्र रच बदनाम करने का अभियान त्याग दें। गडकरी जो कुछ कर रहे हैं, पार्टी व देशहित में कर रहे हैं।
2 comments:
आप ठीक लिख रहे हैं, कुछ लोगों के पेट में दर्द होना प्रारम्भ हो गया है..
बेहतरीन लेख। वाकई भाजपा में कई ऐसे नेता आ गए हैं। जिनके चलते भाजपा की छवि बिल्कुल उलट गई है।
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