Thursday, September 30, 2010
सलाम हिन्दुस्तान!
पूरे देश के होंठों पर आज ये दो शब्द थिरक रहे हैं तो बिल्कुल सही ही। एक बार नहीं, बार-बार, हजार बार, आज हर जुबां से यही निकल रहा है-सलाम हिन्दुस्तान। अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद पर लगभग छह दशकों बाद आया हाईकोर्ट का फैसला किसी के खिलाफ नहीं है। अत्यंत ही संवेदनशील इस मुद्दे पर गुलाम भारत से लेकर आजाद भारत तक के शासक किसी फैसले से परहेज करते आए थे। उन्हें लगता था कि इस विवाद में हाथ डाला तो खुद के हाथ जल जाएंगे। धार्मिक आस्था से जुड़े इस मामले में राजनीति के प्रवेश ने दुखद रूप से एक सांप्रदायिक मोड़ दे दिया था। कोर्ट की राजनीति से जुड़ 'मंदिर-मस्जिद' विवाद इतना विस्फोटक बना कि इसने सांप्रदायिक आधार पर खून के खेल तक खेल डाले। लेकिन नमन हिन्दुस्तान की न्यायपालिका को जिसने सभी शंकाओं-कुशंकाओं की तपिश पर ठंडा जल डालते हुए विवाद का निपटारा कर डाला। फैसले की तिथि की घोषणा के साथ ही मीडिया में प्रचार का ऐसा दौर चला मानो फैसले के साथ ही पूरा का पूरा हिंदुस्तान देश विभाजन के कालखंड का हिंदुस्तान बन जाएगा। केंद्र से लेकर राज्य सरकारों की नींद उड़ गई थी। हर स्थिति से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर तैयारियां की गईं। लेकिन बदलते हिंदुस्तान की अवाम ने फैसले के साथ ही यह दिखा दिया कि न उसे हिंदुस्तान की न्यायपालिका के प्रति सम्मान है-विश्वास है बल्कि हिंदुस्तान की प्राचीन अनुकरणीय संस्कृति पर गर्व भी है। फैसला आया तो किसी की जय-पराजय के रूप में नहीं बल्कि हिंदुस्तान और हिंदुस्तानियों के पक्ष में। अब एक और महत्वपूर्ण अपेक्षा। हिंदुस्तानियों के संयम ने जिस प्रकार पूरे विश्व के सामने हर दृष्टि से एक अनुकरणीय मिसाल पेश की है, एक पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड भी हिंदुस्तान के पक्ष में अनुकरणीय मिसाल पेश करे। फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की जिद वह छोड़ दे। जब खुद उसके नेता यह कह रहे हैं कि फैसला न किसी पक्ष की हार है और न किसी पक्ष की जीत, तब इसे स्थायी समाधान मानने में अड़चन क्यों? हमारे हिंदुस्तान में मंदिर-मस्जिद, गिरिजाघर व गुरुद्वारों की मौजूदगी हर जगह है। सभी कौम के लोग पूरे सम्मान के साथ इन सभी धार्मिक स्थलों के सामने सिर झुकाते हैं। सर्वधर्म समभाव का अद्भुत स्थल है हिंदुस्तान। जब हाईकोर्ट वक्फ बोर्ड को भी विवादित भूमि का एक तिहाई देने का फैसला दिया है तब उसे सहर्ष स्वीकार किया जाए। सबूतों एवं साक्ष्योंं के आधार पर जब हाईकोर्ट ने विवादित गर्भगृह को रामलला का मान लिया तब उसे कोई चुनौती न दे। निर्मोही अखाड़े के दावे को स्वीकार करते हुये उसे भी एक तिहाई जगह देने का आदेश दिया है। पूरी विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांट, आबंटित करने का हाईकोर्ट का फैसला हर दृष्टि से न्याय के पक्ष में दिया गया फैसला है। हमें हिंदुस्तान पर अभिमान यूं ही नहीं है। दशकों पुराने इस विवाद का निपटारा चूंकि आपसी बातचीत के जरिये नहीं हो पा रहा था, मामला अदालत में चला गया। फैसले के पूर्व सभी पक्षों ने फैसला मानने का वचन दिया था। अब फैसला आ गया है और अदालत ने गर्भगृह पर रामभक्तों के अधिकार की पुष्टि कर दी तब कोई विवाद न हो। इसी प्रकार अदालत ने यह भी साफ कर दिया कि मस्जिद के पहले उस स्थान पर मंदिर था और वह मस्जिद निर्माण वस्तुत: इस्लाम के खिलाफ था तब इस पर भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अब कोई नया विवाद खड़ा न करें। अदालती फैसले को सम्मान देते हुए उसे स्वीकार कर लिया जाए। बेहतर हो तीन महीने यथावत स्थिति के दौरान ही सभी पक्ष फैसले को स्वीकार करते हुए उसे क्रियान्वित कर डालें। सर्वोच्च न्यायालय की जरूरत ही न पड़े। और तब सही अर्थ में धर्मनिरपेक्ष हिंदुस्तान की गूंज पूरे विश्व में सुनी जा सकेगी।
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2 comments:
आमीन !!!
यह फैसला अगर कुछ वर्ष पूर्व आ गया होता तो और भी अच्छा होता..
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