Friday, November 5, 2010
राहुल गांधी की परिपक्वता?
राहुल गांधी मानते हैं कि राजनीतिक रूप से वे उन लोगों से ज्यादा परिपक्व हैं जो उन्हें 'बच्चाÓ समझते हैं। अगर यह सच है तो उन्हें सलाम। लेकिन अब उनके सामने चुनौती अपने शब्दों को सच साबित करने की है। और यह तभी संभव हो पाएगा जब वे मन, वचन, कर्म से उन चाटुकारों को स्वयं से दूर रखें जिन्हें वे 15 मिनट के अंदर पार्टी से निकाल बाहर करने की घोषणा कर चुके हैं। इसके लिए जरूरी है कि वे स्वाध्याय की प्रवृत्ति को संरक्षित कर स्वयं अध्ययन करें, दूसरों द्वारा बताए-सुझाए गए शब्दों पर न चलें। अपने लिए राजनीतिक परिपक्वता की बात उन्होंने बिहार चुनाव अभियान के दौरान कही। शंका भी यहीं से उठी। इसी चुनाव अभियान के दौरान राहुल एक जगह यह कह बैठे कि ''बिहार के चमकने का श्रेय नीतीश (मुख्यमंत्री) को नहीं जाता है।ÓÓ याद दिला दूं कि बिहार में ही राहुल कुछ दिनों पूर्व यह कह चुके हैं कि ''बिहार में कोई विकास नहीं हो रहा है... प्रदेश पिछड़ा का पिछड़ा है।ÓÓ अब सच क्या है? अगर बिहार में कोई विकास नहीं हुआ, कोई बदलाव नहीं हुआ तब फिर राहुल किस 'चमकÓ के श्रेय से नीतीशकुमार को वंचित करना चाह रहे हैं? साफ है कि बिहार चमक रहा है अर्थात्ï विकास हुआ है- हो रहा है। राहुल गांधी तथ्यों से दूर एक अत्यंत ही अपरिपक्व राजनीतिक की भांति व्यवहार कर रहे हैं। अपने पक्ष में परिपक्वता का उनका दावा खोखला है। मैं यहां उनकी नीयत पर शक नहीं कर रहा। उस सचाई को रेखांकित कर रहा हूं जो नागपाश बन राहुल गांधी को जकड़ चुकी है। उन्हें इससे मुक्त होना पड़ेगा। अन्यथा उन्हें हर अवसर पर शातिर राजनीतिक शर्मिंदा करते रहेंगे। परस्पर विरोधाभासी वक्तव्य दिलाकर उन्हें कटघरे में खड़ा करते रहेंगे। जहां तक बिहार और कांग्रेस के भविष्य का प्रश्न है, राहुल गांधी को पहले सच की खोज करनी पड़ेगी। उस सच की जो चीख-चीखकर कह रहा है कि प्रदेश में अब पार्टी को सर्वमान्य नेतृत्व की जरूरत है। आर्थिक दृष्टि से अत्यंत ही पिछड़ा यह प्रदेश दुखद रूप से जात-पात के जहर का शिकार है। झारखंड के अलग होने के बाद इसकी आय का स्रोत भी लगभग बंद हो चुका था। अगर विभाजन के समय ही प्रदेश में कृषि पर ध्यान दिया जाता तो बिहार डेनमार्क बन अत्यधिक समृद्ध हो जाता। लेकिन अगर ऐसा नहीं हो पाया तो इसका मुख्य कारण सत्ता में व्याप्त भ्रष्टाचार और वहां कांग्रेस का प्रभावहीन हो जाना रहा। उत्तरप्रदेश की तरह कभी बिहार भी कांग्रेस का गढ़ रहा था। किन्तु जातीय राजनीति ने धीरे-धीरे इसे निगल लिया। कांग्रेस नेतृत्व किन्हीं कारणों से जानबूझकर इसे अनदेखा करता गया। परिणाम सामने है। राहुल गांधी तो प्रयास कर रहे हैं किन्तु जनसमर्थन अभी भी कोसों दूर है। राहुल का प्रयास इसलिए फलदायक नहीं हो सकता कि उन्हें यथार्थ से दूर रखा जा रहा है। जातीय समीकरण के नाम पर आधारहीन नेताओं को प्रश्रय दे राहुल गांधी दल को मजबूती नहीं दे पाएंगे। प्रदेश कांग्रेस आमूलचूल परिवर्तन का आग्रही है। राहुल इस सच को भी जान लें कि बिहार कभी भी पूर्वाग्रही नहीं रहा है। उसने हमेशा ईमानदार नेतृत्व का साथ दिया है। भ्रष्टाचार उसे सहन नहीं। कोई आश्चर्य नहीं कि भ्रष्टाचार और कुशासन के खिलाफ जयप्रकाश नारायण ने इसी बिहार की धरती से सफल 'संपूर्ण क्रांतिÓ का संचालन किया था। उनकी क्रांति को राष्ट्रीय समर्थन मिला था और तब इंदिरा गांधी जैसी शक्तिशाली नेता व उनकी पार्टी कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। लेकिन इंदिरा के क्षमा मांग लेने के बाद बिहार ने फिर उनका साथ भी दिया था। परंतु कांग्रेस इस भावना को समझ नहीं पाई। उसने फिर बिहार की उपेक्षा की। नतीजतन आज कांग्रेस वहां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। राहुल का लक्ष्य युवाओं को साथ ले पार्टी को पुनर्जीवित करने का है। लेकिन यही काफी नहीं। पहले वे दिल्ली के चाटुकारों से छुटकारा पा प्रदेश स्तर पर सर्वमान्य नेतृत्व ढूंढें- इस मुकाम पर जातीय समीकरण को दूर रखें। प्रदेश का इतिहास गवाह है कि जातीय आधार पर अल्पमत में रहने के बावजूद प्रदेश में समय-समय पर अच्छे कुशल नेतृत्व सामने आ चुके हैं। राहुल इस तथ्य को ध्यान में रख सरलता-सहजता से लोगों के पास जाएं। लोगों के बीच से नेतृत्व तलाशें, लोगों के विश्वास को जीतें। हां, इस बात को हमेशा ध्यान में रखें कि वहां के लोग सरलता को स्वीकार करते हैं, चालबाजी को नहीं। बेहतर हो राहुल तत्काल इसे समझ लें।
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2 comments:
राहुल अभी परिपक्व नहीं है और उनकी सलाहकार मंडली और अधिक अपरिपक्व है..
राहुल गाँधी अपरिपक्व हैं यह कहना बहुत सहज है पर परिपक्वता के मार्ग पर उनके बढ़ते क़दमों की आह्ट को पहचानना एवं उसकी सराहना भी करनी चाहिए .परिपक्वता अचानक नहीं आती . राहुल समय और परिस्थितियों से सबक लेते हुए अपनी पहचान बना रहे हैं , यह कहना आज का यथार्थ है .
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