''अंकल सॅम'' के वारिस ओबामा और क्या करते? भारत आकर वे वही सब कर रहे हैं, कह रहे हैं, जो पहले के अमेरिकी राष्ट्राध्यक्षों ने किया। ओबामा को कोई दोष न दे। उन्होंने तो भारत की धरती पर पांव रखते ही दो टूक शब्दों में घोषणा कर दी कि अमेरीकी हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। फिर ओबामा से ऐसी शिकायत क्यों कि उन्होंने एक आतंकवादी राष्ट्र के रूप में पाकिस्तान का नाम क्यों नहीं लिया? सुरक्षा परिषद में भारत की स्थाई सदस्यता पर ओबामा की चुप्पी (अब तक) पर भी सवाल इस आलोक में निरर्थक है। यह सवाल भी फिर बेकार ही है कि मुंबई के ताज होटल पर पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले के सूत्रधार डेविड कोलमन हेडली के मामले में ओबामा लगातार झूठ क्यों बोलते रहे हैं? कोई पूछ कर देख ले, ओबामा सीधे इनके जवाब नहीं देंगे। अमेरिकी नीति उन्हें इसकी इजाजत नहीं देती। अब सवाल यह कि फिर हमने अर्थात भारत ने उनसे ऐसी अपेक्षाएं की ही क्यों की थी? वस्तुत: यह हमारी अमेरिका के प्रति आसक्ति और समर्पण आधारित सोच की परिणति है। हमारा सरल दिल भावनाओं के साथ बह जाता है। बौद्धिक रूप से अभी भी गुलाम हमारा मन-मस्तिष्क सचाई पर परदा डाल देता है। अमेरिका और ओबामा के सच के साथ भी हमने ऐसा ही किया। आतंकवाद के खिलाफ जंग में हमारा साथ देने की घोषणा करनेवाले ओबामा और उनका देश अमेरिका सामरिक कारणों से पाकिस्तान को व्यवहार के स्तर पर नाराज कर ही नहीं सकता। और अब आर्थिक कारणों से वह भारत को भी नाराज करने की स्थिति में नहीं है।
भारत और पाकिस्तान दोनों उसकी मजबूरी बन चुके हैं। अन्यथा, मुंबई के हमलावरों को माफी के लायक नहीं माननेवाले ओबामा पाकिस्तान का नाम लेने से स्वयं को नहीं बचा लेते! अमेरिकी खुफिया एजंसियों द्वारा इस तथ्य की पुष्टि किए जाने के बावजूद कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर पाकिस्तान को दी गई आर्थिक एवं सैन्य सहायता का भारत के खिलाफ उपयोग किया गया, ओबामा की अमेरीकी सरकार ने पुन: पाकिस्तान को 2 अरब डालर की सहायता क्यों की?
अब यह सच सामने आ चुका है कि मुंबई पर 26/11 के हमले की योजना को अंजाम दिलवाने वाले हेडली के संबंध में अमेरिकी खुफिया एजंसियों को पूर्व जानकारी थी। अगर अमेरीकी एजंसियां भारत को पहले सतर्क कर देतीं तब आतंकवादी अपने मनसूबे को पूरा करने में सफल नहीं होते। उन्हें पहले ही गिरफ्त में ले लिया जाता। इस तथ्य के उजागर होने के बावजूद ओबामा ऐसा दावा कैसे कर गए कि दोनों देशों की खुफिया एजंसियों के बीच बेहतर तालमेल है? और तो और, अमेरिका अभी भी हेडली को हमें सौंपने को तैयार नहीं है। ठीक उसी प्रकार जैसे भोपाल त्रासदी के मुख्य अभियुक्त वॉरन एंडरसन को वह भारत को सौंपने को तैयार नहीं। अमेरीकी कथनी और करनी में फर्क का इतिहास पुराना है। ओबामा भारत से वापस जायेंगे अमेरीकी हितों का पुलिंदा लेकर! अमेरिका वापस जाकर वे अपने देशवासियों को 'सफल भारत यात्रा' का विवरण दे अपने लिए फूल-हार बटोर लेंगे। अमेरीकी यह जानकर प्रसन्न हो जायेंगे कि उनके राष्ट्रपति ने भारत को यह एहसास करवा दिया कि अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली एवं धनि देश है। भारत सरकार पूर्व की भांति यथास्थिति में संतुष्ट रहेंगी।
1 comment:
भारत के नेताओं में कुछ बचा भी है..
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