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Thursday, December 2, 2010

भ्रष्ट को तोहफा, भ्रष्टाचार को संरक्षण!

क्षमा करेंगे। एक 'कमजोर व दबाव में काम करने वाले प्रधानमंत्री' की अपनी छवि से निजात पाना तो दूर, प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह इसे बार-बार मोटे अक्षरों में लिख स्वयं ही चिन्हित कर रहे हैं। अब तक कुख्यात हो चुके 2जी स्पेक्ट्रम और राष्ट्रमंडल खेल घोटालों में अपनी संलिप्तता को अनावृत कर चुके प्रधानमंत्री केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) के पद पर एक दागदार अधिकारी पी.जे. थॉमस की नियुक्ति और बाद में उनके बचाव के कारण पूरा का पूरा भारतीय लोकतंत्र सदमे में है। थामस का ताजा मामला लोकतंत्र व संविधान के रक्षकों, संसद व न्यायपालिका के गालों पर तमाचे मार रहा है। क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस मामले में भी अपनी संदिग्ध भूमिका से इन्कार कर पाएंगे? तर्कसंगत शब्दों के सहारे तो कदापि नहीं। कुतर्क या झूठ की बात कुछ और है। लेकिन अंतत: ये अपने मुंह के बल ही गिरते हैं। भारत के सतर्कता आयुक्त के पद पर नियुक्ति से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को मानते हुए केंद्र सरकार ने लोकतांत्रिक भावना का आदर करते हुए एक स्वस्थ प्रक्रिया अपनाई थी। प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और नेता विपक्ष की समिति को नियुक्ति की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इस प्रक्रिया को सम्मान दिया गया। किन्तु थॉमस के मामले में नेता विपक्ष सुषमा स्वराज की बिल्कुल जायज आपत्ति को नजरअंदाज कर नियुक्ति कर दी गई। थॉमस के दागदार पाश्र्व के आलोक में सुषमा ने थॉमस की नियुक्ति के खिलाफ मंतव्य दिया था। भ्रष्टाचार और अनियमितता के आरोप में जमानत पर चल रहे थॉमस जैसे व्यक्ति को भला भारत का सतर्कता आयुक्त नियुक्त कैसे किया जा सकता है? सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी नियुक्ति पर सवालिया निशान जड़ते बिल्कुल सही टिप्पणी की थी कि जिस व्यक्ति पर भ्रष्टाचार के मामले चल रहे हों वह दूसरों के भ्रष्टाचार की जांच कैसे कर सकता है? साफ है कि सर्वोच्च न्यायालय ने थॉमस की पात्रता को अयोग्य घोषित कर दिया। इसके बावजूद अगर थॉमस पद पर बरकरार हैं तब निश्चय ही पूरा का पूरा मामला एक महाघोटाले की चुगली कर रहा है। आखिर वह कौन सी मजबूरी है जिसके दबाव में प्रधानमंत्री थॉमस को हटा नहीं पा रहे हैं? सर्वोच्च न्यायालय के मंतव्य की उपेक्षा और नियुक्ति पैनल की सदस्य नेता विपक्ष सुषमा स्वराज की आपत्ति को दरकिनार कर भ्रष्ट पी.जे. थॉमस को पुरस्कृत करना निश्चय ही भ्रष्टाचार को संरक्षण प्रदान करना माना जाएगा। चाहे कोई कितना भी इन्कार कर ले, प्रधानमंत्री किसी दबाव में हैं अवश्य। क्या यह बताने की जरूरत है कि प्रधानमंत्री पर दबाव कौन बना सकता है? यह एक अत्यंत ही खतरनाक घटना विकासक्रम है। पूरा का पूरा भारतीय लोकतंत्र आज दांव पर लगाया जा रहा है। यह नहीं भूला जाना चाहिए कि सत्तर के दशक के आरंभ में जब लोकतांत्रिक संस्थाओं को दबाने और अवमूल्यन की प्रक्रिया की शुरुआत हुई थी तब परिणति स्वरूप ही देश में आंतरिक आपातकाल लगा। संवैधानिक संस्थाएं तक कैद हो बिलखने को मजबूर थीं। अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित नागरिक दूसरी गुलामी की जिंदगी जीने को बाध्य थे। वह तो भारतीय लोकतंत्र की मजबूत नींव थी जिसने लोकतंत्र को पुनर्जीवित कर दिया था। आज संसद और न्यायपालिका के अवमूल्यन का प्रयास अगर हो रहा है तो इस प्रवृत्ति को तुरंत दफना दें। पी.जे. थॉमस की यह घोषणा कि वे पद पर कायम हैं, लोकतंत्र को मुंह चिढ़ा रही है। और केंद्र सरकार का यह निर्णय कि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच की निगरानी से केंद्रीय सतर्कता आयुक्त थॉमस दूर रहेंगे, कमजोर प्रधानमंत्री और कमजोर सरकार के आरोप को ही सही ठहरा रहा है। बेहतर हो थॉमस को तुरंत हटा दिया जाए अन्यथा देश का मजबूत लोकतंत्र जब अंगड़ाई लेगा तब एक बार फिर इतिहास दोहराया जाएगा। भारत देश भ्रष्ट को पुरस्कृत किए जाने और भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के कृत्य को कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता।

1 comment:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

भ्रष्टाचार ऐसे ही खत्म किया जाता है, ये नई तकनीक है..