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Saturday, December 25, 2010

'1989' के पुनर्मंचन की ओर !

ईमानदारी का लबादा ओढ़ देश को भ्रष्टाचार के दलदल में आकं ठ डुबो चुके प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह में अगर थोड़ी भी शर्म बाकी है, नैतिकता का एक कतरा भी उनमें शेष है, देश और जनता के हक में थोड़ी भी हमदर्दी है और इन सबों से ऊपर अगर वे स्वयं को सभ्य मानव अथवा मनुष्य मानते हैं तो वे तत्काल अपने पद से इस्तीफा दे दें। सिर्फ इस्तीफा ही न दें बल्कि एक भारतीय नागरिक का हक अदा करते हुए तमाम घोटालों, भ्रष्टाचारों के सच को स्वयं अनावृत कर दें। घोटालों, भ्रष्टाचार के दोषियों के चेहरों से नकाब नोच उनकी असलियत को बेपर्दा कर दें। चूंकि अनेक भ्रष्टाचार उनकी जानकारी (मजबूरी में ही सही) में ही हुए हैं, उनमें लिप्त लोगों के लिए दंड क ी राह वे खुद दिखाएं। सत्ता मोह त्याग कर मनमोहन सिंह उन चेहरों को भी बेनकाब करें जो सीधे सत्ता में न होते हुए भी सत्ता संचालन कर रहे हैं और परदे के पीछे रहक र अब तक उन्हें कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर भ्रष्टाचार को बढ़ावा और संरक्षण देते रहे हैं। हां, यहां मेरा इशारा कांग्रेस अध्यक्ष और संप्रग प्रमुख सोनिया गांधी की ओर ही है।
निष्पक्ष, तटस्थ हर व्यक्ति इस बात की पुष्टि करेगा कि सोनिया की अध्यक्षता वाली संप्रग सरकार में जिस पैमाने पर घोटाले हुए वैसा कभी नहीं हुआ। आम जनता के धन से निर्मित सरकारी कोष को दोनों हाथों से लूटा गया। नियम-कानून को धता बताया गया, सरकारी तंत्रों का स्वहित में इस्तेमाल किया गया, अधिकारों का दुरुपयोग किया गया, संवैधानिक संस्थाओं का अवमूल्यन कि या गया, देश में घाटालेबाजों और दलालों का बोलबाला हो गया, न्यायपालिका को प्रभावित करने की कोशिशें की गईं और यहां तक कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के रूप में मान्य मीडिया को भी प्रलोभन के जाल में फंसा भ्रष्ट करने की कोशिशें की गईं। और ये सब देश-समाज विरोधी कार्रवाइयां होती रहीं प्रधानमंत्री की जानकारी में। फिर क्या अचरज कि विश्वमहाशक्ति बनने की ओर अग्रसर भारत आज महाभ्रष्ट- घोटालेबाजों-दलालों के देश के रूप में देखा जाने लगा है। आज पूरा संसार भारत का नाम ले हंस रहा है कि विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में मंत्रियों की नियुक्तियां भी पतित दलालों की अनुशंसाओं पर की जाती हैं! दलाल सोने-चांदी के सिक्कों से न केवल सरकारी अधिकारियों बल्कि महिमामंडित मीडियाकर्मियों को भी खरीद रहे हैं? विषकन्यायुक्त ऐसी दलाल मंडली का भरपूर उपयोग बड़े औद्योगिक घरानों सहित राजनीतिज्ञ भी कर रहे हैं। इस पाश्र्व मेंं भारत देश आज गर्व करे तो किस बात पर? हमारी सारी उपलब्धियां भ्रष्टाचार के गंदले तालाब मेंं समा गई हैं। निश्चय ही इन सबों के लिए हमारे प्रधानमंत्री सीधे जिम्मेदार हैं। अपनी पार्टी अध्यक्ष और पार्टी के अन्य बड़े नेताओं से ईमानदारी का प्रमाणपत्र ले प्रधानमंत्री भले खुश हो लें, देश की नजरों में वे गिर चुके हैं, आम आदमी उन्हें देश का गुनाहगार मान रहा है। हाल के चर्चित घोटालों से उत्पन्न राष्ट्रीय आक्रोश के प्रति उनकी असंवेदनशीलता निंदनीय है। उनसे अब ऐसी कोई अपेक्षा भी नहीं। दो टूक बात यह कि वे तत्काल प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दें और पापों के प्रायश्चित के लिए भ्रष्टाचार के विरोध में स्वयं सड़क पर निकलें। क्षमाशील देश संभवत: उन्हें क्षमा कर देगा। अन्यथा, देश की मान-मर्यादा-गरिमा के पक्ष में लोकतंत्र के प्रति समर्पित जनता 1989 को दोहरा देगी। उन्हें याद दिलाने के लिए दोहरा दूं कि तब बोफोर्स घोटाले की चित्कार के बीच जनता ने राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व वाली सरकार को उखाड़ फेंका था। 2014 अधिक दूर नहीं।

2 comments:

ABHISHEK MISHRA said...

very nice post

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

इस देश के लोगो के कान-आंख-मुंह सब बन्द हैं..