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Tuesday, December 21, 2010

गलतबयानी कर रहे हैं प्रधानमंत्री!

अशिष्ट, असभ्य, असंस्कृति निरुपित किए जाने की पीड़ादायक संभावना के बीच मैं इस टिप्पणी के लिए मजबूर हूँ कि हमारे विद्वान अर्थशास्त्री, ईमानदार प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने झूठ बोला है, देश को गुमराह किया है और संसद का अपमान किया है। कांग्रेस महाअधिवेशन के अंतिम दिन सोमवार को उनके भाषण से ऐसा लगा ही नहीं कि उन्हें देश या संसद की चिंता है। हो भी कैसे? एक दिन पूर्व ही तो उनकी प्रेरणास्त्रोत सोनिया गांधी उन्हें ईमानदारी की प्रतिमूर्ति बता चुकी थीं! फिर वे किसी और के प्रमाणपत्र की चिंता करें तो क्यों? आखिर उन्हें प्रधानमंत्री बनाया तो सोनिया ने ही! आम मतदाता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधि भी तो नहीं हैं वे! फिर जनता की परवाह क्यों करें? भारत जैसे महान शक्तिशाली देश के डा. मनमोहन सिंह एक ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो बगैर लोकसभा का चुनाव लड़े प्रधानमंत्री बनते आ रहे हैं। आजादी पश्चात संसदीय लोकतंत्र की परिकल्पना को मूर्त रुप देनेवाले हमारे दिवंगत राष्ट्रनिर्माता परलोक में चाहे सौ-सौ आंसू बहा लें, लोकतंत्र के साथ 'छलÓ का यह शर्मनाक उदाहरण इतिहास में दर्ज हो चुका है। लोकतंत्र का यह एक स्याह पक्ष है कि प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति देश के मतदाता के प्रति सीधे जिम्मेदार नहीं। फिर कौन सा मूल्य? कैसा सिद्धांत? और कैसी पारदर्शिता? फिर क्या अचरज कि पार्टी अधिवेशन के मंच से उन्होंने घोषणा कर डाली कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए वे परंपरा तोड़कर संसदीय लोकलेखा समिति के सामने पेश होने को तैयार हैं। वे कुछ छुपाना नहीं चाहते। इस बिन्दु पर प्रधानमंत्री को एक सीधी चुनौती। जब वे परंपरा तोड़कर लोकलेखा समिति के सामने पेश होने को तैयार हैं, तब वे स्थापित परंपरा को आगे बढ़ाते हुए घोटाले की जांच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से करवाने से क्यों भाग रहे हैं? अचरज है कि प्रधानमंत्री ने यह घोषणा संसद के अंदर क्यों नहीं की - पार्टी के मंच से क्यों किया? क्या यह संसदीय प्रणाली की अवमानना नहीं! सभी जानते हैं कि लोकलेखा समिति (पीएसी) के अधिकार सीमित हैं। यह समिति सिर्फ नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट के दायरे में ही जांच कर सकती है। पीएसी के सामने पेश होने की मंशा को जाहिर कर तालियां बटोरने वाले प्रधानमंत्री अगर इस तथ्य से अपरिचित हैं, तब प्रधानमंत्री पद की गलतबयानी कर रहे हैं प्रधानमंत्री! उनकी पात्रता पर ही सवाल खड़े हो जायेंगे।
जेपीसी की विपक्ष की मंाग को राजनीति से जोड़कर प्रधानमंत्री ने देश की संसदीय प्रणाली का मखौल उड़ाया है। भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपनी सरकार को पाक-साफ बताने के क्रम में प्रधानमंत्री गलतबयानी करते चले गए। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाला व अन्य घोटालों के संदर्भ में प्रधानमंत्री का यह बयान कि उन्होंने ऐसे मामलों में तुरंत कार्रवाई करते हुए केवल संदेह के आधार पर ही मंत्री और मुख्यमंत्री हटाए, बिल्कुल गलत है। झूठ बोला है प्रधानमंत्री ने! स्पेक्ट्रम घोटाले को ही लें। संप्रग - 1 की उनकी सरकार के समय से ही यह घोटाला चर्चित था। तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए-राजा के खिलाफ भ्रष्टाचार व अनियमितता के आरोप लगाए जा रहे थे। लेकिन तब प्रधानमंत्री मौन रहे। कोई कारवाई नहीं की। संप्रग - 2 मंत्रिमंडल में भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ए. राजा को न केवल शामिल किया बल्कि वही दूरसंचार विभाग दे डाला! क्यों और कैसे देश इसे अब जान चुका है। सत्ता और कार्पोरेट क्षेत्र की एक दलाल के प्रभाव में ए. राजा उपकृत किए गए। दलाल और उसके दलालों को उपकृत क्यों किया प्रधानमंत्रीने? स्पेक्ट्रम की नीलामी अथवा आवंटन के लिए गठित मंत्रियों के समूह के अधिकारों में संशोधन कर स्वयं प्रधानमंत्री ने ए. राजा को मनमानी करने की छूट दी थी। इस मामले में घोटालों की गूंज की अनदेखी क्या प्रधानमंत्री लगातार नहीं करते रहे? वर्षों चुप बैठने के बाद ए.राजा के खिलाफ कारवाई तब की गई जब मीडिया ने इस मामले को प्रतिदिन उछालना शुरु किया और सीएजी की रिपोर्ट सार्वजनिक हुई। तब तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का मौन क्या घोटाले पर परदा डालना साबित नहीं करता? प्रधानमंत्री चाहे जितना इन्कार कर लें, देश की जनता अब जान चुकी है कि 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला अगर हुआ तो प्रधानमंत्री की जानकारी में!
जेपीसी की मांग को ठुकराना और विपक्ष पर संसद का वक्त जाया करने का आरोप लगाना स्वयं प्रधानमंत्री की नीयत को संदिग्ध बनाता है। भ्रष्टाचार के आरोपों पर त्वरित कारवाई करने का प्रधानमंत्री का आरोप भी खोखला है। पूर्व केंद्रीय मंत्री कुंवर नटवर सिंह का उदाहरण देना हास्यास्पद हैं। तेल के बदले अनाज घोटाले में लिप्तता के आरोप में नटवर सिंह को तो हटाया गया किंतु तब यह साफ-साफ दिख रहा था कि स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उस मामले में संदिग्ध भूमिका अदा की थी। नटवर सिंह को तो बलि का बकरा बनाया गया था। भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़कर फेंकने और भ्रष्टाचारियों को दंडित किए जाने का दावा करनेवाले प्रधानमंत्री क्या यह बतायेंगे कि मुंबई के आदर्श सोसायटी घोटाले के लिए अशोक चव्हाण की बलि तो ली गई किंतु उसी घोटाले में संदिग्ध विलासराव देशमुख और सुशिलकुमार शिंदे अभी तक उनके मंत्रिमंडल में कैसे बने हुए हैं? कहां गया संदेह पर तुरंत कारवाई का उनका दावा? प्रधानमंत्री से देश यह भी जानना चाहेगा कि जब यह बात सार्वजनिक हो गई कि हाईकोर्ट के एक जज ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखकर सूचित किया था कि एक केंद्रीय मंत्री ने फोन कर उन्हें कुछ आरोपियों को जमानत देने को कहा था और धमकाया था, तब उन्होंने पारदर्शिता के पक्ष में उस मंत्री की पहचान कर उन्हें दंडित क्यों नहीं किया? देश को बताया क्यों नहीं? भारत के सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति का मामला तो भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी को सरकारी प्रश्रय सरंक्षण दिए जाने का ज्वलंत उदाहरण ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा लताड़े जाने के बावजूद प्रधानमंत्री खामोश हैं। बताएंगे क्यों? निश्चय ही प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार को संवैधानिक मान्यता देने का अपराध करते रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके शब्द दिखावा मात्र हैं। यह आक्रोश व्यक्तिगत नहीं, बल्कि राष्ट्रीय भावना का प्रदर्शन है। परिपक्व भारतीय नागरिक ऐसे छलावे में अब नही आयेंगे। देश ने अगर अपने लिए संविधान का निर्माण कर लोकतांत्रिक संसदीय प्रणाली को अपनाया है तो वह जिम्मेदारी सुनिश्चित करने में भी सक्षम है। आम जनता को मूर्ख और उसकी स्मरणशक्ति को कम आंकने की भूल प्रधानमंत्री न करें।

2 comments:

ABHISHEK MISHRA said...

आप की लेखनी में बेहद सच्चाई और शक्ति है ,

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

गोएबल्स की नीतियां हमेशा इख्तियार कर बेवकूफ बनाया है..