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Monday, January 3, 2011

प्रधानमंत्री की 'विदाई' की पटकथा!

देश के अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह सावधान हो जाएं। कांग्रेस के 'वफादारों' ने उनकी विदाई की पटकथा लिखनी शुरू कर दी है। अब इसे कांग्रेस संस्कृति का अंग कहें या षडय़ंत्र! कांग्रेसी दीवार पर लिखी जा रहीं ताजा इबारतें उनकी विदाई की चुगली कर रही हैं। आखिर कांग्रेस को भी तो भ्रष्टाचार और महंगाई से त्रस्त जनता के प्रहार से बचने के लिए कोई बलि का बकरा चाहिए ही! जेहन में कुछ ऐसे सवाल उठ रहे हैं जिनके जवाब कांग्रेसी खेमे से चाहिए। नैतिक रूप से पराजित नेतृत्व तो जवाब नहीं ही देगा, पार्टी में मौजूद कुछ विचारवानों-बुद्धिमानों से अपेक्षा है कि वे आगे आएं। वे बताएं कि क्या केंद्रीय वित्तमंत्री व पार्टी के वरिष्ठतम नेता प्रणब मुखर्जी वास्तव में सठिया गये हैं? क्या उनकी स्मरणशक्ति ने काम करना बंद कर दिया है? क्या उन्होंने अपनी बुद्धि को गिरवी रख दिया है? क्या वे चाटुकारों का ही नेतृत्व करना चाहते हैं? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी बड़े राजनैतिक खेल के एक प्यादे के रूप में नेतृत्व उनका इस्तेमाल कर रहा है। कांग्रेस पार्टी के ताजा प्रकाशित 'इतिहास' के संपादक के रूप में अपनी फजीहत करा चुके मुखर्जी एक बार फिर 'हास्य-नाटक' के नायक बन उभरे हैं। संसदीय लोकलेखा समिति (पीएसी) के समक्ष हाजिर होने की पेशकश के कुछ दिन बाद प्रणब मुखर्जी का बयान आता है कि प्रधानमंत्री को समिति के सामने पेश नहीं होना चाहिए। क्योंकि वे लोकसभा के प्रति जिम्मेदार हैं, किसी समिति के प्रति नहीं। कांग्रेस पार्टी की कार्यप्रणाली और कायदे-कानून का जानकार कोई भी व्यक्ति दावे के साथ इस पर टिप्पणी करेगा कि यह विचार प्रणब मुखर्जी का न होकर कांग्रेस पार्टी का है। कांग्रेस नेतृत्व ने प्रणब का इस्तेमाल कर उनके माध्यम से प्रधानमंत्री को सलाह दी है। अब सवाल यह कि प्रणब ने सार्वजनिक तौर पर ऐसी सलाह क्यों व कैसे दी। वे प्रधानमंत्री से प्रत्यक्ष मिलकर अकेले में ऐसी सलाह दे सकते थे। भला एक मंत्री प्रधानमंत्री द्वारा उठाए गए किसी ऐतिहासिक कदम पर सार्वजनिक आपत्ति कैसे जता सकता है? जाहिर है कांग्रेसी नाट्ïयमंच पर परदे के पीछे कोई बड़ी साजिश रची गई है। साजिश को अंजाम देने की प्रक्रिया में प्रणब मुखर्जी को मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया गया है। जरा गौर करें। 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच के लिए विपक्ष संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की मांग पर अड़ा हुआ है। किन्हीं कारणों से कांग्रेस जेपीसी जांच नहीं चाहती। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व कांग्रेसाध्यक्ष सोनिया गांधी जेपीसी जांच के खिलाफ बोल चुके हैं। पूरा का पूरा कांग्रेसी कुनबा एकजुट हो जेपीसी जांच की मांग का विरोध कर रहा है। पिछले माह कांग्रेस महाअधिवेशन में जेपीसी जांच की मंाग को निरर्थक निरूपित करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए स्वयं को पीएसी के सामने पेश होने की पेशकश कर डाली। उन्होंने यह भी कह डाला था कि वे पीएसी अध्यक्ष डा. मुरलीमनोहर जोशी को पत्र लिखकर अपनी इच्छा बताएंगे। प्रधानमंत्री ने मुरलीमनोहर जोशी को पत्र लिख भी डाला। अब प्रणब मुखर्जी यह कैसे कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री ने बगैर पार्टी से परामर्श किए ऐसा फैसला किया? यह रहस्यपूर्ण है। प्रणब की यह बात भी हास्यास्पद है कि 'अगर प्रधानमंत्री मुझसे इस बारे में विमर्श करते तो मैं उन्हें ऐसा प्रस्ताव न देने की सलाह देता।' प्रणब की ऐसी अपेक्षा कि प्रधानमंत्री किसी निर्णय के पूर्व उनसे परामर्श करें, स्वयं में रहस्य से भरा हुआ है। प्रणब का तर्क कि प्रधानमंत्री सिर्फ लोकसभा के प्रति जिम्मेदार हैं, किसी समिति के प्रति नहीं, स्वीकार्य नहीं। जिस संयुक्त संसदीय समिति की मांग विपक्ष कर रहा है वह संसद का ही प्रतिनिधित्व करती है। लोकलेखा समिति के मुकाबले जेपीसी के पास व्यापक अधिकार होते हैं। इस तथ्य की अनदेखी कर जब प्रणब मुखर्जी जैसा अनुभवी सांसद, राजनेता बच्चों सरीखी दलील देता दिखता है तब निश्चित ही दाल में काला रेखांकित होता है। पिछले कुछ समय से कांग्रेस खेमे से ऐसे संकेत मिलने शुरू हो गए हैं कि नेतृत्व अब प्रधानमंत्री पद की कुर्सी पर किसी अन्य को बिठाना चाहता है। क्या यह मात्र संयोग है कि पिछले कुछ समय से प्रणब मुखर्जी व कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह यह दोहराते घूम रहे हैं कि राहुल गांधी में प्रधानमंत्री पद की सारी पात्रता मौजूद है, राहुल अगले प्रधानमंत्री हो सकते हैं। भ्रष्टाचार व कुशासन के आरोपों से घिरी कांग्रेस नेतृत्व की केंद्र सरकार इन दिनों बचाव की मुद्रा में है। कांग्रेस हर मोर्चे पर पराजित हो रही है। अपनी सारी शक्ति लगा देने के बावजूद पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में वहां उसका लगभग अस्तित्व ही समाप्त हो गया। ऐसे में कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस नेतृत्व सरकार में भ्रष्टाचार, कुशासन और पार्टी की चुनावी विफलताओं का ठीकरा प्रधानमंत्री के सिर फोड़ उनकी बलि लेने की सोच रहा है? कांग्रेस और विशेषकर नेहरू-गांधी परिवार का इतिहास इसके पक्ष में चुगली कर रहा है। अगले वर्ष होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के राजनीतिक महत्व ही नहीं बल्कि अपने अस्तित्व की रक्षार्थ कांग्रेस पार्टी कोई बड़ा दांव खेल सकती है। क्या आश्चर्य कि उस चुनाव के पूर्व ही मनमोहन सिंह को विश्राम दे 'युवराज' की ताजपोशी कर दी जाए! और तब युवा नेतृत्व, युवा शक्ति की हवा चला कांग्रेस मतदाता के सामने गिड़गिड़ाती दिखे!

1 comment:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

दूर की कौड़ी लाये हैं... लेकिन यह बिल्कुल सम्भव है..