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Friday, August 12, 2016

आंदोलनों की भीड़ जुटाने लगे 'मंडी’ के पहलवान!


विरोधी पार्टियों की सक्रियता से ही महानगर पालिका चुनाव की सरगर्मी का अहसास किया जा सकता है। कांग्रेस के साथ ही राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी भी पूरे जोश से मैदान में उतर आई है। कभी पानी तो कभी बिजली को लेकर मनपा प्रशासन का घेराव किया जा रहा है। दरअसल विपक्ष को जो मुद्दे वर्ष भर पहले उठाने थे, उन्हें ऐन चुनाव को देखते हुए उठाए जा रहे हैं। आखिर अचानक राजनीतिक पार्टियों को जनता की समस्याएं कैसे याद आई। दरअसल इन दिनों उपराजधानी के मीडिया में विरोधी पक्ष और उनके नेताओं को एक सोची-समझी रणनीति के तहत 'हाईलाइटकिया जा रहा है। मीडिया मंडी के कुछ वरिष्ठतम लोगों का इन आंदोलन को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान है। गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले मीडिया मंडी के कुछ लोगों का इन नेताओं के साथ छिपा एजेंडा चलाया जा रहा है। कल तक जो अपनी कलम से इन्हीं लोगों के विरोध में लिखा करते थे, आज उन्हीं की तारीफ करते नहीं थक रहे हैं। हालांकि बड़े नेताओं को 'पब्लिसिटीकी आवश्यकता तो नहीं है, लेकिन ऐसे अनेक पदाधिकारी है जिन्हें अपने-अपने वार्ड से टिकट चाहिए। पार्टी टिकट तभी देगी जब इन पदाधिकारियों का जनता के बीच संपर्क बढ़ेगा। ऐसे अनेक कार्यकर्ता और पदाधिकारी मिल जाएगे जिन्हें उनके वार्ड के ही लोग नहीं जानते। इन नेताओं को तैयार करने का कार्य  मीडिया मंडी के कुछ लोग ही कर रहे हैं। हर दिन विविध तरह के आंदोलन भी इन्हीं मीडिया मंडी के लोगों की देन मानी जा रही है। आंदोलन के माध्यम से लोगों का ध्यान आकर्षित करने की रणनीति दरअसल मीडिया मंडी के लोगों ने ही बनाकर दी है। इसके बदले इन पार्टी पदाधिकारियों ने अपनी-अपनी जेबें भी गरम की है। दरअसल मीडिया मंडी के कुछ लोग पिछले दिनों से इस कार्य में लगे हुये हैं। किसी भी मुद्दे पर आंदोलन के लिए उकसाने और उन्हें अपने अखबारों में प्रमुखता से जगह देने का कार्य किया जा रहा है। इसका ताजा उदाहरण पिछले दिनों राष्ट्रवादी कांग्रेस के एक आंदोलन में भी देखने मिला। आंदोलन में शामिल हुये कई कार्यकर्ता ऐसे भी थे, जिनका अब तक मतदान पहचान पत्र तक नहीं बना है। आंदोलनकारियों की गिनती भी की जाती तो 50 से अधिक नहीं होते। लेकिन उन्हें मालूम है कि कुर्सियां हाथ में लेकर जिंदाबाद के नारे लगाने से ही फोटो बनेगा और यही फोटो प्रथम पृष्ठ में सुर्खियां बटोरेगा। मीडिया मंडी के लोगों ने इस तरह के कार्यकर्ताओं को 'प्रमोटकरने का पूरा ठेका ही ले रखा है। ठेके की रकम की हिस्सेदारी भी बराबर तरीके से की जा रही है। यही वजह है कि इन दिनों नागपुर के समाचार पत्र देखने के बाद अनुमान लगाया जा सकता है कि राजनीतिक पार्टियों के आंदोलनों में कितना दम है। पानी के लिए महानगर पालिका पर मोर्चा निकाला जा रहा है। वहीं एसएनडीएल के खिलाफ भी मोर्चेबंदी की जा रही है। जानकार मानने लगे हैं कि, इस तरह के आंदोलन पूरी तरह प्रायोजित हैं और किसी किसी स्तर पर मीडिया मंडी के लोगों को 'सेटकर आगे बढ़ाए जा रहे हैं। वैसे मीडिया मंडी के लोग महानगर पालिका के चुनाव में अपनी जेबें गरम करने की पहले से ही योजना बना चुके हैं। इसके लिए नेताओं से संपर्क अभियान भी बढ़ा दिया है। हालांकि मीडिया मेें पेड न्यूज तो चलेगी ही, इसके अलावा भी मीडिया मंडी के लोग अलग से अपना हिसाब बनाने में लग गये हैं। हालांकि मीडिया मंडी के लोग भले ही इन छुटभैये नेताओं को प्रमुखता से जगह देकर 'हीरोबनाने में लगे हुए हैं, लेकिन क्या यह नेता इस तरह के प्रचार से चुनाव में बाजी मार सकेंगे? जानकार तो यह भी बताते हैं कि मीडिया मंडी के कुछ खबरची राजनीतिक पार्टियों के प्रचार मुहिम की भी पूरी योजना बनाकर दे रहे है। मीडिया मंडी के लोग जानते हैं कि सत्तासीन पार्टी अपनी जेब ढीली करने को तैयार नहीं है। यही वजह है कि उनकी नजर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पर ही आकर टीक गई है। इस दौर था जब इस तरह के समाचार भीतरी पृष्ठों पर जगह लेते थे, वहीं समाचार आज प्रथम पृष्ठ पर सुर्खियां बटोर रहे हैं। लेकिन नेताओं को भी समझ लेना चाहिए कि केवल अखबारों में छाये रहने से चुनाव नहीं जीता जा सकता। मीडिया मंडी के यह लोग अवसरवादिता का परिचय देते हुए समय रहते माल बटोर लेना चाहते हैं। अब महानगर पालिका चुनाव के लिए ज्यादा महीने नहीं रह गये है। करीब 5 महीने आचार संहिता भी लागू हो जाएगी। दरअसल विपक्ष में बैठे नेताओं की झटपटाहट की मुख्य वजह यह है कि उनके पास जनता को गिनाने के लिए खामियां नहीं है। इस हालत में उन्हें भी मालूम है कि अखबार की सुख्रियां उन्हें घर-घर पहुंचा सकती है। पत्रकारिता की नैतिकता को दरकिनार कर केवल खुद के बारे में विचार करने वाले इन मीडिया मंडी के लोगों की वजह से व्यवस्था खराब हो रही है। अब तो पाठकों को भी लगने लगा है कि यह चुनावी वर्ष है और यहां ऐसे भी चेहरे सुर्खियां बनेंगे जिनके कभी दर्शन तक नहीं होते थे।

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