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Friday, December 11, 2009

अब तो जागो विदर्भवादी!

क्या अब भी मुंबई दरबार में 'विदर्भ की नपुंसक राजनीति' ठुमके लगाकर खुश होती रहेगी? पृथक तेलंगाना राज्य के निर्माण की लड़ाई में अपनी जान की आहुति दने को तैयार चंद्रशेखर राव की सफलता के बाद यह सवाल विदर्भवासी पूछ रहे हैं। नब्बे के दशक में झारखंड, छत्तीसगढ़, उत्तरांचल राज्यों के गठन के बाद भी यह सवाल पूछा गया था। समय-समय पर विदर्भ आंदोलन को तेज करते रहने वाले नेता अपनी पीठ पर छुरे के वार होते देख सवाल को टाल जाते थे। कभी दोष केंद्र सरकार पर, तो कभी दोष विदर्भ की जनता के सिर मढ़ ये नेता पल्ला झाड़ते रहे हैें। झूठ बोलते रहे ये! विदर्भवासियों को मूर्ख समझने वाले ये कथित आंदोलनकारी नेता क्या यह बताएंगे कि जब केंद्र की ओर से कहा गया था कि महाराष्ट्र विधानसभा पृथक विदर्भ के पक्ष में प्रस्ताव पारित कर भेजे, तब वे सोए क्यों रह गए थे? विदर्भवासियों की इस हेतु उदासीनता का तर्क देने वाले भी वस्तुत: अपना नकारापन ही छुपाते रहे हैं। या फिर 'मुंबई मोह' संबंधी उनके स्वार्थ पृथक विदर्भ की मांग के आड़े आते हैं! हिम्मत है तो नेतागण इस सचाई को स्वीकार करें और आंदोलन के कथित नेतृत्व से अलग हो जाएं। विदर्भवासी नया नेतृत्व ढूंढ लेंगे। आंध्र के चंद्रशेखर राव ने मार्ग दिखा दिया है। अब विदर्भवासी मौन नहीं रहेंगे। उसने देख लिया कि लगभग दिवास्वप्न हो चली पृथक तेलंगाना की मांग में चंद्रशेखर राव ने कैसे नई ऊर्जा का संचार किया। उनकी जीवटता ने सपने को साकार कर ही दम लिया। यह अंतिम नहीं है। ऐसी अनेक मांगों की चिंगारियां और भी जगह राख के नीचे दबी हुई हैं। विदर्भवासी यह मान कर चल रहे थे कि तेलंगाना के साथ पृथक विदर्भ भी अस्तित्व में आ जाएगा। लेकिन विदर्भ में एक 'राव' की कमी के कारण यह साकार नहीं हो पाया। विदर्भ अभी भी हाशिए पर है। शर्म आती है विदर्भ की इस अवस्था पर। क्या केंद्र में तेलंगाना के मुकाबले विदर्भ का वजन कम है? क्या कर रहे हैं केंद्रीय मंत्रिमंडल में विदर्भ का प्रतिनिधित्व करने वाले मंत्रिगण? क्या कर रहे हैं यहां से निर्वाचित खासदार? निर्णायक लड़ाई लडऩे से इनका कतराना निश्चय ही असली 'नीयत' को दर्शाता है। इनकी राजनीतिक यात्रा का यह 'गुप्त अध्याय' विदर्भवासियों की इच्छा-भावना का दमन करता है। मुंबई दरबार में ठुमके वाली बात पिछले दिनों विरोधी पक्ष के एक नेता ने कही थी। क्या यह हकीकत नहीं? विदर्भ के हिस्से की राशि कई बार पश्चिम महाराष्ट्र हड़प कर चुका है। आपत्ति करने वालों की झिड़की खाते ही घिग्गी बंध जाती है। दिल्ली की बात तो दूर, राजधानी मुंबई में भी विदर्भ बेबस नजर आता है। पृथक तेलंगाना के पक्ष में चंद्रशेखर राव के आंदोलन की निरंतरता और अनशन की सफलता ने यह तो साबित कर ही दिया कि केंद्र अंतत: दबाव के सामने ही झुकता है। इसके पूर्व पंजाबी सूबा आंदोलन के प्रणेता संत फतह सिंह के सामने पंडित जवाहरलाल नेहरू के झुकने का उदाहरण भी मौजूद है। चंद्रशेखर राव के ताजा आंदोलन और अनशन ने कांग्रेस और केंद्र सरकार दोनों को गहरे दबाव में ला दिया था। खेद है कि विदर्भ के राजनीतिक पटल पर वैसा एक भी चेहरा नहीं दिख रहा जो राव जैसा प्रभाव छोड़ सके। निश्चय ही कारण 'राजनीतिक इमानदारी' का अभाव है, विदर्भ विकास के प्रति उनकी स्वार्थभरी उदासीनता है। राव ने जिस तरह भगीरथ प्रयास किया, कोई विदर्भवादी नेता उनका अनुसरण क्यों नहीं करता? राव ने तो दिल्ली दरबार की चौखट चूमने की प्रवृत्ति से खुद को अलग करते हुए दिल्ली दरबार को ही तेलंगाना में ला नंगा खड़ा कर दिया। क्या कोई विदर्भवादी नेता ऐसी ताकत दिखाने को तैयार है? तेलंगाना के पक्ष में केंद्र के ताजा फैसले पर समीक्षकों का कहना है कि अब उत्तर प्रदेश में हरित प्रदेश और बुंदेलखंड तो महाराष्ट्र में विदर्भ, बंगाल में गोरखालैंड से लेकर तमाम अलग राज्य की मांग करने वाले झंडे उठा लेंगे। यह गर्म लोहे पर हथौड़े मारने का सुअवसर है। विदर्भ के नेता इस अवसर को हाथ से नहीं जाने दें। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों की ओर से उठी ताजा आवाजों का स्वागत है। सुनिश्चित यह करना होगा कि ये आवाजें अवसरवादी आवाज बन कर न रह जाए। दलीय प्रतिबद्धता से इतर विदर्भ में सभी दल एकजुट होकर आगे बढ़ें, विदर्भवासी पुष्पहार लेकर उनके स्वागत को तैयार मिलेंगे। नागपुर में जारी शीतसत्र के पहले मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने ऐलान किया था कि विदर्भ की धरती पर विदर्भ की समस्याओं को प्राथमिकता दी जाएगी। लेकिन अब तक ऐसा हो नहीं पाया। सत्र से फिलहाल विदर्भ नदारद है। 'फयान' ने जोर पकड़ा लेकिन यहां प्राय: प्रतिदिन किसानों के घरों में तांडव मचाने वाली 'फयान' की सुध नहीं ली गई। विदर्भ की धरती क्या यूं ही प्राण-आहुतियां देने को मजबूर होती रहेगी। विदर्भवासियों को जवाब चाहिए, कथित विदर्भवादी नेताओं से।

1 comment:

शब्द सितारे... said...

agar alag rajya hue to kya vidhrbh ke logonko puraa nyay milega?