कांग्रेस की स्थापना के 125वें वर्ष पर आयोजित समारोह में सभी थे। अध्यक्ष सोनिया गांधी मौजूद थीं, प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह थे और छोटे-बड़े वे सभी सिपहसालार मौजूद थे जो अपनी उपस्थिति के द्वारा वफादारी साबित करना चाहते थे। किंतु इस ऐतिहासिक मौके पर राहुल गांधी अनुपस्थित थे। जिस राहुल को पार्टी की ओर से भावी अध्यक्ष और भावी प्रधानमंत्री के रूप में सगर्व पेश किया जाता रहा है उनकी अनुपस्थिति पर समारोह में एक बेचैन खामोशी छाई थी। लेकिन, किसकी मजाल जो जुबान खोले! ऐसे किसी अवसर पर मीन-मेख निकालने वाले मीडिया ने भी मौन साध रखा। कांग्रेस के माध्यम प्रबंधक (मीडिया मैनेजर) यहां विजयी रहे। उन्होंने मीडिया की खामोशी को सुनिश्चित कर रखा था। राहुल को महिमामंडित करते रहने की 'जिम्मेदारी' ले लेने वाले भला उनकी शान में कोई गुस्ताखी करें तो कैसे करें। वे देश को प्रमुखता से यह नहीं बता पाए कि राहुल गांधी अपनी बहन प्रियंका व उसके परिवार के साथ 'नव-वर्ष' का स्वागत करने छुट्टियों पर बाहर चले गए हैं। इस बड़ी खबर को दबा दिया गया। लेकिन राहुल गांधी की प्राथमिकता उस दिन चिन्हित हो गई। पार्टी की ऐतिहासिक 125वीं वर्षगांठ को हाशिए पर रखकर उन्होंने नववर्ष को प्राथमिकता दी।
मैंने दिल्ली के अपने पत्रकार मित्रों से जानकारी लेनी चाही तो वे सिर्फ रहस्यमय मुस्कान ही दे पाए। हां, यह अवश्य बताया कि इसमें अजूबा क्या है? देश की भोली-भाली गरीब जनता के बीच 'गांधी' बन पहुंचने वाले राहुल गांधी इस सच को जान गए हैं कि गरीब, शोषित बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक वर्ग की सुध लेकर ही चुनावी वैतरणी पार कर सकते हैं। सभा, समारोह, संसद की उपयोगिता सीमित है। फिर क्या आश्चर्य कि जब संसद में बाबरी मस्जिद विध्वंस संबंधी लिबरहान आयोग की रिपोर्ट पर गरमागरम बहस चल रही थी, राहुल गांधी अलीगढ़ में मुस्लिम छात्रों को संबोधित कर रहे थे! और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे विदेश दौरे पर। 'गांधी दर्शन' कथित रुप से आत्मसात कर लेने वाले राहुल गरीबों की झोपडिय़ों में जा उनके साथ चाय पीते हैं, भोजन करते हैं। ठीक उसी तरह जैसा कभी लालू प्रसाद यादव किया करते थे। फर्क यह है कि राहुल के झोपड़ी में पहुंचने से पूर्व सुरक्षाकर्मी झोपड़ी की न केवल साफ-सफाई कर दिया करते हैं बल्कि उस गरीब परिवार की झोपड़ी में अच्छे खाद्य पदार्थ भी पहुंचा दिया करते हैं। लालू के लिए ऐसी व्यवस्था नहीं की जाती थी। वे अचानक पहुंचते थे और जो उपलब्ध रहता था उसे खा-पी लिया करते थे। किन्तु उनका 'नाटक' बेअसर रहा। जनता ने उन्हें, उनकी पार्टी को नकार दिया। बिहार में उनकी सत्ता समाप्त हुई और बाद में केंद्रीय शासन से भी अलग कर दिए गए। राहुल के भविष्य पर अभी कोई टिप्पणी नहीं। लालू और नेहरु-गांधी परिवार में फर्क तो है ही। नेहरु-गांधी परिवार के प्रति आकर्षण कांग्रेस पार्टी की अतिरिक्त शक्ति है। पार्टी की 125वीं वर्षगांठ समारोह में कांग्रेस और नेहरु गांधी परिवार का राष्ट्र निर्माण व विकास में योगदान पर लंबे चौड़े भाषण दिए गए। यहां तक तो ठीक था। किंतु जब आर्थिक सुधार और उदार अर्थनीति के लिए राजीव गांधी को श्रेय दिया गया तब लोगों की भौंहे तन गई। आर्थिक सुधारों के लिए राजीव गांधी को श्रेय दिए जाने से बड़ा झूठ और कुछ नहीं हो सकता। वह भी प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की उपस्थिति में। वह तो नरसिम्हा राव थे जिन्होंने 1991 में प्रधानमंत्री बनने के बाद डॉ. मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाया। राव ने तब डॉ. सिंह के साथ मिलकर आर्थिक सुधार की रूपरेखा तैयार की। उदारवादी नीति को अपनाया। आर्थिक सुधार के क्षेत्र में वस्तुत: तब क्रांति का बीजारोपण हुआ था। मुझे अच्छी तरह याद है सन 2004 में नरहिम्हा राव की दिल्ली में मृत्यु के बाद शोक प्रकट करते हुए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था, 'नरसिम्हा राव देश में आर्थिक सुधार के जनक थे।' खेद है कि उसी मनमोहन सिंह की मौजूदगी में आर्थिक क्रांति का श्रेय राव से छीनकर राजीव गांधी को दे दिया गया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री का मौन शर्मनाक था। लेकिन, परिवारवाद को सिंचित कर रही कांग्रेस पार्टी की संस्कृति किसी अन्य को महिमामंडित किए जाने की अनुमति नहीं देती। बेचारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह क्या करते! क्या लोकतांत्रिक भारत अपनी इस अवस्था पर गर्व करे?
3 comments:
बहुत सुन्दर, आपको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
काहे का गर्व......देश की भेड़ चाल के कारण....और कुछ लोगो की अंधभक्ति के कारण जनता को सहन करना पड़ रहा है सब कुछ.....।
आपको व आपके परिवार को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
नया साल मुबारक,
परिवारवाद किस पार्टी मैं नही है,ज़रा उस पार्टी का नाम बताएँ.
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